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________________ * अतयं रहस्य में प्रवेश ४ में जैसे स्त्री पुरुष को अपने द्वारा पुनः जन्माने को आतुर होती है। | हो गया है तुम्हें? कोई चमत्कार! तुम और गीत गुनगुनाओगे! और प्रेम के किसी क्षण में जैसे स्त्री अपने भीतर नए जीवन के लिए, नए | तुमने क्या स्नान भी किया है ? और क्या तुमने ताजे कपड़े भी पहन जीवन को जन्म देने के लिए, गर्भाधान के लिए, पुरुष के प्रति | लिए हैं? समग्ररूपेण समर्पित होती है। ऐसे ही श्रद्धा से भरा हुआ चित्त गुरु ___ वानगाग ने कहा कि हां, किसी ने मुझे आज प्रेम से देख लिया के प्रति अपने सब द्वार खोल देता है, ताकि गुरु की ऊर्जा उसमें | है! किसी के प्रेम का मैं पात्र हो गया हूं! प्रविष्ट हो जाए और जीवन रूपांतरित हो, और एक नए जीवन का ___ अब यह आदमी दूसरा है। प्रेम से गुजरकर दोनों व्यक्तियों का जन्म हो सके। पुनर्जन्म हो जाता है। ___ मैंने कहा कि जब दो पदार्थ मिलते हैं, तब भी नई चीज निर्मित | | श्रद्धा से गुजरकर जो होता है, वह आत्यंतिक क्रांति है। श्रद्धा से हो जाती है। अगर आक्सीजन और हाइडोजन मिल जाते हैं, तो गजरकर पराना तो मर ही जाता है, नए का ही आविर्भाव हो जाता पानी निर्मित हो जाता है। जब एक स्त्री और पुरुष का मिलन होता है। प्रेम में तो पुराना बदलता है, श्रद्धा में पुराना मरता है और नया है, तो एक तीसरे जीवन का जन्म हो जाता है। जब दो प्रेम से भरे आता है। प्रेम में एक कंटिन्युटी है, सातत्य है। श्रद्धा में हुए मन मिलते हैं, तो इस जगत में सौंदर्य के, आनंद के बड़े फूल डिसकंटिन्युटी है; सातत्य टूट जाता है। श्रद्धा के बाद आप वही खिलते हैं। और जब प्रेम से दो व्यक्तियों का मिलन होता है, तब | नहीं होते, जो पहले थे। आप दूसरे ही होते हैं। दोनों के बीच कोई भी वे दो व्यक्ति भी रूपांतरित हो जाते हैं। अगर आपने कभी प्रेम | संबंध भी नहीं होता; दोनों के बीच कोई रेखा भी नहीं होती। पुराना की पुलक अनुभव की है, तो आपने तत्काल पाया होगा, आप दूसरे | बस समाप्त हो जाता है, और नया आविर्भूत हो जाता है। आदमी हो गए हैं। श्रद्धा इस जगत में सबसे बड़ी छलांग है। छलांग का मतलब विनसेंट वानगाग के संबंध में मैंने पढ़ा है। वह एक बड़ा डच | | होता है, पुराने से कोई संबंध न रह जाए। इसलिए श्रद्धा जब भी चित्रकार था। उसे किसी स्त्री ने कभी कोई प्रेम नहीं किया। कुरूप किसी जीवन में घटित होती है, तो इस जगत में सबसे बड़ी क्रांति था। और मन को प्रेम करने वाले तो खोजने कठिन हैं। गरीब था। | घटित होती है। और सब क्रांतियां बचकानी हैं, सिर्फ आत्मक्रांति और धन को प्रेम करने वाले तो चारों तरफ हैं। उसे किसी ने कोई | ही आधारभूत क्रांति है। प्रेम नहीं दिया। वह जवान हो गया, उसकी जवानी भी उतरने के | | इस क्रांति के द्वार पर खड़ा देखकर कृष्ण ने अर्जुन से कहा, हे करीब आने लंगी। उसे कभी किसी ने प्रेम की नजर से नहीं देखा। | अर्जुन, मेरे अव्यक्त स्वरूप से यह सब जगत परिपूर्ण है। वह चलता था तो ऐसे, जैसे मुर्दा चल रहा हो; अपना बोझ खुद | अब ये सब बातें उलटी हैं। कबीर की उलटबांसी के संबंध में खींचता हो। अपने ही पैर उठाने पड़ते, तो लगता कि किसी और आपने सुना होगा। कबीर बहुत उलटी बातें कहते हैं, जो नहीं हो के पैर उठा रहा है। आंख उठाकर देखता तो ऐसे, जैसे आंखों की सकतीं। कहते हैं कि नदी में आग लग गई, जो नहीं हो सकता। कहते पलकों पर पत्थर बंधे हों। हैं कि मछलियां घबड़ाकर दरख्तों पर चढ़ गईं, जो नहीं हो सकता। वह जहां नौकरी करता था, वह मालिक भी परेशान हो गया था लेकिन कबीर इसलिए कहते हैं कि इस जगत में जो नहीं हो उसके आलस्य को देखकर, उसके तमस को देखकर। मालिक | सकता, वह हो रहा है-यहीं, आंखों के सामने। जो हो सकता है, सोचता था. इतने तमस की क्या जरूरत है? इतने आलस्य की. वह तो हो ही रहा है। वह महत्वपर्ण नहीं है। और जो उसको ही देख इतने प्रमाद की? बैठा, तो बैठा रह जाता। उठने की भी कोई प्रेरणा पाता है, जो हो रहा है, वह अंधा है। जो नहीं हो सकता है, वह भी नहीं थी। सोता, तो सोया रह जाता। सुबह किसलिए उडूं, इसका | हो रहा है। जिसको कोई तर्क नहीं कहेगा कि हो सकता है, वह भी भी कोई कारण नहीं था। हो रहा है। कोई गणित जिस निष्पत्ति को नहीं देगा, वह भी हो रहा लेकिन एक दिन मालिक देखकर चकित हुआ कि वानगाग, न | है। इस जगत में अनहोना भी हो रहा है। वही इस जगत में ईश्वर मालूम कितने वर्षों के बाद स्नान करके, न मालूम कितने महीनों के | का सबूत है। वही चमत्कार है। वही मिरेकल है। बाद कपड़े बदलकर, और शायद जीवन में पहली दफा गीत | तो बड़ी अनहोनी बात कृष्ण कहते हैं। वे कहते हैं, मेरे अव्यक्त गुनगुनाता हुआ दुकान में प्रविष्ट हुआ है! उसने पूछा, आज क्या स्वरूप से यह सब जगत परिपूर्ण है। 187
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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