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* अतर्क्स रहस्य में प्रवेश*
हमारी सदी पूछती है, ईश्वर कहां है? असल में हमें पूछना | इसलिए कि पत्नी से भी नीचे गिरा; कुर्सी ज्यादा मूल्यवान है। पत्नी चाहिए, श्रद्धा कहां है? क्योंकि श्रद्धा न हो, तो ईश्वर का कोई | कुर्सी पर चढ़ाई जा सकती है। बच्चे कुर्सी पर चढ़ाए जा सकते हैं। अनुभव नहीं होगा। श्रद्धा न हो, तो ईश्वर न होने जैसा हो जाएगा। वह पहला स्थूल आकर्षण है। ईश्वर के प्रकट होने के लिए जिस आकर्षण की जरूरत है, वह धन, पद, बहुत स्थूल आकर्षण हैं। वे आकर्षण वैसे ही हैं, जैसे श्रद्धा है।
चुंबक के पास लोहा खिंचता है। ऐसे ही हम खिंचे चले जाते हैं। और हर आकर्षण सृजनात्मक है। पदार्थ खिंचता है, तो जगत ध्यान रखना, आप चुंबक नहीं हैं। जब आप धन की तरफ खिंचते निर्मित हो जाता है। अभी तक वैज्ञानिक नहीं समझा पाए कि पृथ्वी हैं, तो ध्यान रखना, धन आपकी तरफ कभी नहीं खिंचता है। आप कैसे बन गई। अब तक वे नहीं समझा पाए कि चांद-तारे कैसे बन | ही धन की तरफ खिंचते हैं। धन चंबक होता है। ध्यान रखना, धन गए! अनुमान हैं बहुत, लेकिन सारे अनुमानों के बीच एक आधार पुरुष हो जाता है, आप स्त्रैण हो जाते हैं। है, और वह आधार यह है कि जरूर किसी ऊर्जा के कारण यह सारा इसलिए धन को प्रेम करने वाला रुपए को ऐसे देखता है, जैसे संगठन फलित हुआ है, किसी शक्ति के कारण। उसके नाम कुछ | अपने प्रेमी को। वह उसका परमात्मा है। रुपए को छूता है ऐसे, भी दिए जा सकते हैं।
जैसे किसी जीवित चीज को भी उसने कभी नहीं छुआ है। रुपए को अगर दो शरीर संयुक्त न हों, तो जीवन की धारा बिखर जाती उलट-पलटकर देखता है! है। इसलिए यौन का, सेक्स का प्रबल आकर्षण है। लेकिन आदमी और हम सबको पता है। स्त्रियों को पता है। इसलिए स्त्रियां आदमी होकर भी पहले आकर्षण से भी ऊपर नहीं उठ पाता, तो | अपने शरीर की उतनी फिक्र नहीं करती हैं, जितनी अपने गहनों की आखिरी आकर्षण तक पहुंचना बहुत मुश्किल है। हममें से अधिक | | फिक्र करती हैं। क्योंकि आस-पास जो लोग हैं, वे पदार्थ से लोग यौन से भी नीचे जीते हैं। यह सुनकर आपको कठिनाई होगी। | आकर्षित होते हैं। अभी शरीर का भी आकर्षण दूर है। हममें से बहुत-से लोग हैं, जिनको यौन का आकर्षण भी ऊपर है। ___ इसलिए स्त्री अपने शरीर को गंवा सकती है, लेकिन अपने हीरे अभी। जो पदार्थ के आकर्षण पर जीते हैं।
को नहीं खो सकती। उसके हाथ में उतना आकर्षण नहीं मालूम अब एक आदमी रुपए इकट्ठे करने के लिए जी रहा है; वह अभी | पड़ता उसे, जितना हीरे की अंगूठी में मालूम पड़ता है। और उसकी यौन के आकर्षण तक भी ऊपर नहीं उठा है। अभी वह पदार्थ के समझ एक लिहाज से सही है। क्योंकि जब भी कोई उसके हाथ को आकर्षण से बंधा है। अभी जब वह रुपए हाथ में रखता है, तो जो देखता है, तो सौ में से नब्बे मौके पर हाथ को देखने वाले बहुत आनंद उसे अनुभव होता है, वह दो पदार्थों के बीच जो आकर्षण कम लोग हैं, हीरे की अंगूठी को देखने वाले ज्यादा लोग हैं। है, उसका ही आनंद है।
इसलिए अगर कुरूप हाथ भी हो और हीरे की अंगूठी हो, तो इसलिए धन के पीछे जो पागल है, वह पहले आकर्षण में जी आपको हाथ का कुरूप होना दिखाई नहीं पड़ता। हीरे की अंगूठी रहा है। इसलिए लोभ काम से भी नीची अवस्था है। लोभ, ग्रीड | का सौंदर्य हाथ पर छा जाता है। इसलिए कुरूप व्यक्ति आभूषणों सेक्स से भी नीचे की अवस्था है, ध्यान रखना। और बहुत-से लोग से अपने को लादता चला जाता है। असल में कुरूपता ही केवल हैं ऐसे, जो धन के लिए सेक्स को कुर्बान कर सकते हैं। और शायद आभूषण के प्रति आकर्षित होती है; क्योंकि वह और नीचे के तल मन में यह भी सोचते हों कि बड़ी ऊंचाई की तरफ जा रहे हैं। धन का आकर्षण है। कमाने के लिए बहुत-से लोग अपने यौन की बलि चढ़ा देते हैं। पुरुष भी भलीभांति जानते हैं कि उनका बड़ा मकान एक स्त्री को शायद सोचते हों कि बड़ा ऊंचा काम कर रहे हैं। वे यौन से भी नीचे | आकर्षित कर सकता है। उनका बैंक बैलेंस एक स्त्री को आकर्षित गिर रहे हैं। वे बिलकुल ही स्थूल आकर्षण में पड़ रहे हैं। कर सकता है। उनकी बड़ी कार एक स्त्री को आकर्षित कर सकती
एक आदमी है, जिसको कुर्सी का मोह है, पद का मोह है, | है। इसलिए पुरुषों को भी अपने शरीर की भी उतनी चिंता नहीं है, सिंहासन का मोह है, वह पहले आकर्षण पर जी रहा है। इसलिए जितनी अपनी कार की है, जितनी अपने मकान की है, जितनी राजनीतिज्ञ अक्सर अपनी पत्नी की फिक्र छोड़ सकता है। इसलिए अपनी तिजोड़ी की है। क्योंकि आदमी के जिस समाज में हम जी नहीं कि वह भी बुद्ध जैसा हो गया है कि पत्नी को छोड़ सकता है; रहे हैं, वह पदार्थ के तल पर आकर्षित हो रहा है; और श्रद्धा बहुत
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