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________________ *गीता दर्शन भाग-4% युवक ने उठकर, खड़े होकर बुद्ध की आंखों में देखा था, यह भी वह आपके चरणों में मर चुका है। और जिसे पीड़ा नहीं हो सकती, दिखाई पड़ा था। वह वापस चरणों में झुका था कोई धन्यवाद देने, वही अब बाकी बचा है। यह भी देखा। उसने जो कहा, वह भी सुना। लेकिन बुद्ध ने कहा, | बुद्ध ने कहा, लेकिन तुम मर रहे हो! अब तू वह बात भी इन सबको बता दे, जो किसी को दिखाई नहीं उस युवक ने कहा, जो मर सकता था, वह आपके चरणों में मर पड़ी है। तुझे क्या हो गया है? चुका है। और अब जो नहीं मर सकता, वही केवल शेष है। उस युवक ने चारों तरफ देखा और उसने कहा कि उसे मैं कैसे बुद्ध ने भिक्षुओं को कहा कि देखो! जिसका तुम्हें भरोसा नहीं कहूं? मैं बदलने के लिए आया था और मैं बदल गया हूं। मैं आया था, उसका परिणाम देखो। रूपांतरित होने आया था और मैं रूपांतरित हो गया हूं। मैं किसी श्रद्धा के परिणाम देखे जा सकते हैं। जीवन में शक्तियां दिखाई क्रांति के लिए आया था कि मेरी आत्मा किसी और जगत में प्रवेश नहीं पड़ती हैं, केवल उनके परिणाम दिखाई पड़ते हैं। इसलिए कर जाए, वह प्रवेश कर गई है। आपसे मैं कहता हूं, आप अगर सोचते हों कि श्रद्धालु हैं, तो इतना लोगों ने पूछा, लेकिन यह कैसे हुआ? क्योंकि न कोई साधना, काफी नहीं है। आपकी श्रद्धा का एक ही प्रमाण है कि आपका न कोई प्रयत्न! यह हुआ कैसे? जीवन रूपांतरित होता हो। तो जो आस्तिक कहता है, मैं श्रद्धालु उस युवक ने कहा, मैं नहीं जानता। इतना ही मैं जानता हूं, कोई | हूं, और नास्तिक और उसकी जिंदगी में कोई फर्क नहीं है, तो वह अलौकिक प्रेम मेरे और बुद्ध के बीच घटित हो गया है, कोई श्रद्धा अपने को धोखा दे रहा है। क्योंकि श्रद्धा तो कशिश है, श्रद्धा तो जन्म गई है, कोई भरोसा पैदा हो गया है। बुद्ध को देखकर मुझे | क्रांति है। भरोसा आ गया। उस भरोसे के साथ ही मैं बदल गया। शायद | | तो जो कहता है, मैं श्रद्धालु हूं, उसका सबूत एक ही है कि भरोसे की कमी ही मेरी क्रांति में बाधा थी। बुद्ध को देखकर मुझे | उसका जीवन गवाही दे, उसका अस्तित्व गवाही दे, वह एक यह भरोसा आ गया कि जो बुद्ध में हो सकता है, वह मुझ में भी | विटनेस हो जाए, वह एक साक्षी बन जाए परमात्मा के होने का। हो सकता है। जो बुद्ध को हुआ है, वह मुझे भी हो सकता है। बुद्ध लेकिन अगर वह कहता है कि नहीं, मैं श्रद्धा तो करता हूं, मेरा भविष्य हैं। जो मैं कल हो सकता हूं, वह बुद्ध आज हैं। इस लेकिन मुझ में और नास्तिक में कोई ऐसे फर्क नहीं है, तो जानना भरोसे के साथ ही जब मैं चरणों में झुका और वापस उठा, तो मैं | कि श्रद्धा झूठी है। और झूठी श्रद्धा से सच्चा संदेह भी बेहतर है। दूसरा आदमी हो गया हूं। क्योंकि सच्चा संदेह कभी श्रद्धा तक पहुंच सकता है, लेकिन झूठी लोगों को भरोसा नहीं आया, लेकिन देखा कि वह आदमी बदल श्रद्धा कभी श्रद्धा तक नहीं पहुंच सकती है। गया है। और वह आदमी साधारण आदमी नहीं था. हत्यारा था. डाक | | यह जो श्रद्धा है. जैसा मैंने कहा दो पदार्थों के बीच जो कशिश था, लुटेरा था। और दूसरे दिन वह आदमी गांव में भिक्षा मांगने गया | | है, आकर्षण है भौतिक; दो शरीरों के बीच जीवंत यौन बन जाता है। और लोगों ने अपनी छतों पर खड़े होकर उसे पत्थर मारे हैं, | है; दो मनों के बीच सचेतन प्रेम बन जाता है; दो आत्माओं के बीच क्योंकि लोग तो उसे लुटेरा ही देख रहे थे। वह जो घटना घटी थी, श्रद्धा हो जाती है। अगर दो पदार्थ आपस में न मिलें, तो अस्तित्व वह तो उन्हें दिखाई नहीं पड़ सकती थी कि वह आदमी अब बुद्ध बिखर जाए। और अगर दो शरीर आपस में न मिलें, तो जीवन जैसा हो गया था। वह घटना तो आंख के बाहर थी; अगोचर थी। बिखर जाए। और अगर दो मन आपस में न मिलें, तो जगत से सब उन्होंने पत्थर मारे हैं, क्योंकि वह हत्यारा था, चोर था, लुटेरा सौंदर्य बिखर जाए। और अगर दो आत्माएं आपस में न मिलें, तो था। गांव उससे पीड़ित रहा है। उसे कौन भिक्षा देगा? पत्थरों के परमात्मा के होने का फिर कोई उपाय नहीं है। अतिरिक्त उसे भिक्षा में कुछ भी नहीं मिला। वह पत्थरों में दबकर ___ पदार्थ एक-दूसरे को खींचते हैं, इसलिए अस्तित्व संगठित है, सड़क के किनारे पड़ा हुआ है। बुद्ध भिक्षा मांगने निकले हैं। उन्होंने | आर्गनाइज्ड है। चाहे चांद-तारे घूमते हों; और चाहे सूरज के आकर उसके सिर पर हाथ रखा। उसने आंख खोली और बुद्ध ने | | आस-पास पृथ्वी चक्कर मारती हो; और चाहे परमाणु घूमते हों; कहा, कोई पीड़ा तो नहीं हो रही? जहां भी पदार्थ है, उसका कारण पदार्थ को आपस में बांधने वाली उस मरणासन्न व्यक्ति ने कहा, पीड़ा! पीड़ा जिसे हो सकती थी, | ऊर्जा है। 184
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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