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________________ * अतळ रहस्य में प्रवेश है, कोई मैग्नेटिज्म है, कोई आकर्षण है, कोई खिंचाव है। पदार्थ | | वैज्ञानिक न राजी हों, मनसविद न राजी हों, लेकिन कवि, के तल पर खिंचाव को विज्ञान स्वीकार करता है, यद्यपि खिंचाव साहित्यकार, कलाकार, चित्रकार–वे सब, जिनका सौंदर्य से को कभी किसी ने देखा नहीं है। हमने केवल खिंचाव का परिणाम | | संबंध है-वे राजी हैं। वे मानते हैं कि प्रेम भी एक प्रगाढ़ ऊर्जा है देखा है। हमने देखा है कि एक मैग्नेट को रख दें, तो लोहे के टुकड़े | और उसके परिणाम भी प्रत्यक्ष होते हैं। खिंचे चले आते हैं। खिंचाव नहीं दिखाई पड़ता, लोहे के टुकड़े | लेकिन न तो हम जमीन के आकर्षण को देख सकते हैं, और न खिंचते हुए दिखाई पड़ते हैं। चुंबक दिखाई पड़ता है, लोहे के टुकड़े | | हम यौन के आकर्षण को देख सकते हैं; अनुभव कर सकते हैं। दिखाई पड़ते हैं, वह जो शक्ति खींचती है, वह दिखाई नहीं पड़ती वैसे ही हम प्रेम के आकर्षण को भी नहीं देख सकते हैं। उसे भी है; वह अदृश्य है। शक्ति मात्र अदृश्य है। अनुभव ही कर सकते हैं। लेकिन जब चुंबक खींच लेता है, तो वैज्ञानिक कहता है, | ये तीन सामान्य आकर्षण हैं; एक और चौथा आकर्षण है। मैंने खिंचाव का काम जारी है। जब जमीन खींच लेती है, तो वैज्ञानिक | कहा, दो पदार्थों के बीच, निर्जीव पदार्थों के बीच जो आकर्षण है, कहता है, खिंचाव का काम जारी है। जब एक पत्थर के अणु बिखर | वह विद्युत है; या चुंबकीय ऊर्जा है। दो शरीरों के बीच जो जैविक, नहीं जाते, तो उसका अर्थ है, वे कहीं न कहीं सेंटर्ड हैं, कोई न कोई | | बायोलाजिकल ग्रेविटेशन है, वह यौन है। दो मनों के बीच जो केंद्र उन्हें बांधे हुए है। वह केंद्र दिखाई नहीं पड़ता। वह केंद्र | | आकर्षण है, वह प्रेम है। लेकिन दो आत्माओं के बीच जो आकर्षण अनुमानित है। लेकिन एक बात विज्ञान को साफ हो गई है कि उस | है, उसका नाम श्रद्धा है। वह चौथा आकर्षण है, और परम केंद्र के दो बिंदु हैं; एक जिसे धन बिंदु कहें, एक जिसे ऋण बिंदु | आकर्षण है। कहें, पाजिटिव और निगेटिव कहें। उन दोनों के बीच आकर्षण है। | जब दो मन एक-दूसरे में आकर्षित होते हैं, तो प्रेम बनता है। अगर पदार्थ के तल पर हम मनुष्य की भाषा का उपयोग करें, जब दो शरीर एक-दूसरे में आकर्षित होते हैं, तो यौन निर्मित होता तो कहें कि पदार्थ में भी स्त्रैण और पुरुष जैसे बिंदु हैं। पदार्थ भी है। जब दो पदार्थ एक-दूसरे में आकर्षित होते हैं, तो भौतिक स्त्री और पुरुष में विभाजित है, और उन दोनों के आकर्षण से ही । | कशिश निर्मित होती है। लेकिन जब दो आत्माएं एक-दूसरे में सारे अस्तित्व का खेल है। आकर्षित होती हैं, तो श्रद्धा निर्मित होती है। पदार्थ से ऊपर उठे, तो इसी आकर्षण की दूसरी अभिव्यक्ति हमें | | श्रद्धा इस जगत में श्रेष्ठतम आकर्षण है, और चुंबकीय आकर्षण स्त्री और पुरुष में दिखाई पड़ती है। पदार्थ से ऊपर उठे, तो जीवन | | इस जगत में निम्नतम आकर्षण है। लेकिन न तो चुंबकीय आकर्षण भी इसी ऊर्जा से बंधा हुआ चलता हुआ मालूम पड़ता है। स्त्री और | देखा जा सकता है और न दो आत्माओं के बीच का आकर्षण देखा पुरुष के भीतर भी जीवन की ऊर्जा एक-दूसरे को आकर्षित करती | जा सकता है। जब चुंबकीय आकर्षण जैसी स्थूल बात भी नहीं देखी है। वही आकर्षण जीवन का प्रवाह है। जा सकती, तो श्रद्धा जैसी बात तो कतई नहीं देखी जा सकती। अगर पदार्थ बंधा है किसी आकर्षण से, तो जीवन भी किसी | लेकिन श्रद्धा के भी परिणाम देखे जा सकते हैं। आकर्षण से बंधा है। स्त्री-पुरुष के जगत में वह आकर्षण सेक्स बुद्ध के पास एक युवक आया है। वह उनके चरणों में झुका है। या यौन के नाम से प्रकट होता है। यौन, विद्युत-आकर्षण का ही | उसने आंख उठाकर बुद्ध को देखा है; वापस चरणों में झुक गया दूसरा रूप है, जीवंत। जब चुंबकीय ऊर्जा जीवन को उपलब्ध हो | | है! बुद्ध ने पूछा, किसलिए आए हो? उस युवक ने कहा कि जिस जाती है, तो यौन निर्मित होता है। | लिए आया था, वह बात घट गई, हो गई। अब मुझे कुछ पूछना उससे और ऊपर चलें, तो मनुष्य यौन से ही प्रभावित नहीं होता; नहीं, कुछ कहना नहीं। बुद्ध ने कहा, लेकिन और लोगों को बता कुछ ऐसे प्रभाव भी हैं जिनसे यौन का कोई भी संबंध नहीं है। उन | दो, क्योंकि इन्हें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा है। प्रभावों को हम प्रेम कहते हैं। __वहां कोई दस हजार भिक्षुओं की भीड़ थी। किसी को कुछ भी पदार्थ के बीच जो आकर्षण है, वह है विद्युत। दो शरीरों के बीच दिखाई नहीं पड़ा था। वह युवक आया था, यह दिखाई पड़ा था। जो आकर्षण है, वह है यौन। दो मनों के बीच जो आकर्षण है, वह | वह बुद्ध के चरणों में झुका था, यह भी दिखाई पड़ा था। बुद्ध का है प्रेम। यौन से भी मनसविद राजी हैं। और प्रेम के संबंध में भी | हाथ उस युवक के सिर पर गया था, यह भी दिखाई पड़ा था। उस 183
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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