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________________ *गीता दर्शन भाग-4* मया ततमिदं सर्व जगदव्यक्तमूर्तिना। | तो द्वार तो है प्रभु में प्रवेश का, लेकिन वापस निकलने के लिए मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः।।४।। | कोई द्वार नहीं है। इसलिए अगम है पहेली। और कृष्ण ने इसीलिए न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम् । | श्रद्धा की बात अर्जुन से पहले कही कि अब तू श्रद्धायुक्त है, तो मैं भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः।।५।। | तुझे उन गोपनीय रहस्यों की बात कहूंगा, जो कि श्रद्धायुक्त मन न यथाकाशस्थितोनित्यं वायुः सर्वत्रगो महान् । हो, तो कहे नहीं जा सकते। इस सूत्र को समझने के पहले श्रद्धा के तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ।।६।। संबंध में थोड़ी बात और समझ लेनी जरूरी है, तभी यह सूत्र स्पष्ट और हे अर्जुन, मेरे अव्यक्त स्वरूप से यह सब जगत | हो सकेगा। परिपूर्ण है और सब भूत मेरे में स्थित हैं। इसलिए वास्तव | अस्तित्व में चार प्रकार के आकर्षण हैं। या तो कहें चार प्रकार में मैं उनमें स्थित नहीं हूं। के आकर्षण या कहें कि एक ही प्रकार का आकर्षण है, चार उसकी और वे सब भूत मेरे में स्थित नहीं है, किंतु मेरे । | अभिव्यक्तियां हैं। या कहें कि एक ही है राज, लेकिन चार उसकी योग-सामर्थ्य को देख कि भूतों को धारण-पोषण करने | सीढ़ियां हैं। या कहें कि एक ही है सत्य, चार उसके आयाम हैं! वाला और भूतों को उत्पन्न करने वाला भी मेरा आत्मा अगर बहुत स्थूल से शुरू करें, तो समझना आसान होगा। वास्तव में भूतों में स्थित नहीं है। वैज्ञानिक कहते हैं, इस जगत के संगठन में, आर्गनाइजेशन में क्योंकि जैसे आकाश से उत्पन्न हुआ सर्वत्र विचरने वाला जो तत्व काम कर रहा है, उस तत्व को हम मैग्नेटिज्म कहें, उस महान वा सदाही आकाश में स्थित वैये संपर्ण भत | | तत्व को हम कहें एक चंबकीय ऊर्जा. एक चंबकीय शक्ति जिससे मेरे में स्थित है, ऐसे जान। पदार्थ एक-दूसरे से सटा है और एक-दूसरे से आकर्षित है। अगर विद्यत की भाषा में कहें, तो वह निगेटिव और पाजिटिव, ऋण और धन विद्युत है, जो जगत के अस्तित्व को बांधे हुए है। पदार्थ भी OT द्धा की बात कहकर कृष्ण ऐसी ही कुछ बात शुरू संगठित नहीं हो सकता, अगर कोई ऊर्जा आकर्षण की न हो।। M करेंगे. यह सोचा जा सकता था, जिसे कि तर्क मानने एक पत्थर का टुकड़ा आप देखते हैं, अरबों अणुओं का जाल को राजी न हो। यह सूत्र अतयं है, इल्लाजिकल है। है। वे अणु बिखर नहीं जाते, भाग नहीं जाते, छिटक नहीं जाते; इस सूत्र को कोई गणित से समझने चलेगा, तो या तो सूत्र गलत किसी केंद्र पर, किसी आकर्षण पर बंधे हैं। वैज्ञानिक खोज करता होगा या गणित की व्यवस्था गलत होगी। यह सूत्र तर्क की संगति | है, आकर्षण दिखाई पड़ने वाला नहीं है। लेकिन बंधे हैं, तो खबर में नहीं बैठेगा। यह सूत्र रहस्यपूर्ण है और पहेली जैसा है। मिलती है कि आकर्षण है। एक तो पहेली ऐसी होती है, जिसका हल छिपा होता है, लेकिन हम एक पत्थर को आकाश की तरफ फेंकें, तो वापस जमीन पर खोजा जा सकता है। एक पहेली ऐसी भी होती है, जिसका कोई गिर जाता है। हजारों-हजारों साल तक आदमी के पास कोई उत्तर हल होता ही नहीं; खोजने से भी नहीं खोजा जा सकता है। नहीं था कि क्यों गिर जाता है। लेकिन न्यूटन को सूझा कि जरूर यह सूत्र दूसरी पहेली जैसा है। जापान में झेन फकीर जिसे | | जमीन खींच लेती होगी। वह जो खिंचाव है, न्यूटन को भी दिखाई कोआन कहते हैं। ऐसी पहेली, जो हल न हो सके। ऐसा रहस्य, नहीं पड़ा है। वह खिंचाव किसी ने कभी नहीं देखा है। केवल पत्थरों जिसे हम जितना ही खोजें, उतना ही रहस्यपूर्ण होता चला जाए। | को हमने नीचे गिरते देखा है; परिणाम देखा है। वृक्ष से पत्ता गिरता ऐसा सत्य, जिसे हम जितना जानें, उतना ही पता चले कि हम नहीं | है और नीचे आ जाता है। आप छलांग लगाएं पहाड से और जमीन जानते हैं। जितना हो परिचय प्रगाढ़, उतना ही रहस्य की और पर आ जाएंगे। हर चीज जमीन की तरफ गिर जाती है, खिंच जाती गहराई बढ़ जाए। जितना लें उसे पास, उतना ही पता चले कि वह | है। कोई प्रबल आकर्षण, कोई कशिश, कोई ग्रेविटेशन जरूर पीछे बहुत दूर है। छलांग तो लग सकती है ऐसे रहस्य में, लेकिन ऐसे | | काम कर रहा है जो दिखाई नहीं पड़ता। . रहस्य का कोई पार नहीं मिलता है। सागर में जैसे कोई कूद तो जाए, | | न्यूटन की खोज कीमती सिद्ध हुई, क्योंकि जीवन का बहुत-सा लेकिन फिर सागर के पार होने का उपाय न हो। | उलझाव उसकी खोज के कारण साफ हो गया। जमीन में कशिश 182
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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