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________________ * श्रद्धा का अंकुरण * बस, यह मिनटभर का काम है। ऐसा कर लो, और सब हो जाएगा। | बिलकुल नहीं आती। वह भाषा बिलकुल ही कठिन है। कोई भी धोखे में पड़ जाता है। क्योंकि हमारे मन लोभी हैं। लगता इसलिए कृष्ण कहते हैं कि सुनने में तो नहीं है सुगम, लेकिन है, जल्दी कुछ होता हो, तो ठीक है। इससे हमारा शोषण चलता है। अगर तू करे, तो सुगम है। नहीं, कोई शार्टकट नहीं है। यात्रा पूरी ही करनी पड़ेगी। क्योंकि अगर कोई अंधा मुझसे कहे कि प्रकाश मुझे समझा दो, तो उस परम यात्रा में कोई धोखा नहीं चलेगा। और जीवन के शाश्वत | समझाना बहुत कठिन है। लेकिन अगर वह कहे कि मेरी आंग नियम हैं। | इलाज करवा दो. या मेरी आंख का कोई अभ्यास करवाओ. जिससे तो सुगम है बहुत, अगर आपका हृदय भक्त होने की परिभाषा | मेरी आंखें खुल जाएं, तो मैं कहता हूं, वह सुगम है। अंधे की आंख को पूरा करता हो। लेकिन दूसरी बात भी कही है कि इतने से ही खुल सकती है किसी दिन और वह प्रकाश को देख सकता है। कोई सुगम हो जाएगा, ऐसा नहीं है। भक्त का भी हृदय हो। और सुन | मुझसे कहे कि प्रेम समझा दो मुझे, तो कठिन है बहुत। लेकिन अगर लें सिर्फ, तो कुछ भी न होगा। फिर वापस गिर जाएंगे। सौ डिग्री | वह तैयार हो प्रेम में कूद पड़ने को, प्रेम करने को, तो सुगम है। तक पहुंचकर भी वापस गिरने का डर है, जब तक कि भाप बन ही जीवन में अनुभव के अतिरिक्त और कोई सुगमता नहीं है। शब्द न जाएं। इसलिए चलना भी पड़ेगा। सुगम मालूम पड़ते हैं, बिलकुल दुर्बोध हैं। शब्दों से कुछ भी समझ कृष्ण कहते हैं, साधन करने को बड़ा सुगम है। में न कभी आया है, न आ सकता है। सिर्फ अनुभव, सिर्फ अपनी बड़ा सरल है, अगर साधन करना हो। अगर सुनना ही हो, तो | ही प्रतीति, अपना ही साक्षात्कार प्रकट करता है सत्य को। बहुत कठिन है। लेकिन हमें उलटी बात समझ में आती है। हमें | इसलिए कृष्ण कहते हैं, सुगम है, साधन करने को बड़ा सुगम है। लगता है, सुनना हो, तो बड़ा सुगम है; करना हो, तो बड़ा कठिन | | और हे परंतप, इस ज्ञानरूप धर्म में श्रद्धारहित पुरुष मेरे को प्राप्त है। सुनना हमें सरल मालूम पड़ता है। लेकिन मैं भी आपसे कहता | न होकर मृत्युरूप चक्र में परिभ्रमण करते हैं। हूं, सुनना कठिन है। क्योंकि जिसे आप जानते ही नहीं हैं, उसे सुन ___ जो श्रद्धारहित हैं, वे सुन लें, समझ लें, चलने की भी कोशिश कैसे सकिएगा? और जिसका आपको पता ही नहीं है, वह आपकी | करें, तो भी मुझ तक नहीं पहुंचते। मुझ तक तो वे ही पहुंचते हैं, जो समझ में कैसे आएगा? और जिसे आपने जाना ही नहीं है, किसी श्रद्धायुक्त हैं। कारण? के भी शब्द-वे कृष्ण के क्यों न हों—वे शब्द आपको कुछ भी कारण, परमात्मा तक पहुंचने का द्वार हृदय है। कारण, परमात्मा न बता पाएंगे। वह भाषा ही अनजानी, अपरिचित है। | तक पहुंचने का भाव प्रेम है। कारण, उस तक पहुंचने की जो तैयारी एक आदमी अरबी में आपके पास बोल रहा हो. आपको वहम है, वह केवल श्रद्धायक्त हृदय में होती है। यह श्रद्धायक्त हृदय का होता है कि सुन रहे हैं, क्या खाक सुन रहे हैं! एक आदमी चीनी में | अर्थ है, ट्रस्टिंग हार्ट, भरोसा करने वाला हृदय।। बोले चला जा रहा है, आपको लगता है कि सुन रहे हैं, लेकिन क्या ___ छोटा बच्चा है; वह कहता है कि मुझे, सूरज उगता है सुबह, सुन रहे हैं? लेकिन चीनी और अरबी के मामले में झंझट नहीं है। वह देखने चलना है। या कहता है कि बगीचे में सुना है कि फूल आप समझते हैं, यह भाषा हमें आती ही नहीं! खिले हैं, मुझे देखने चलना है। या कहता है कि सागर में बड़ी तरंगें आप भूल में मत पड़ना; यह कृष्ण की भाषा आपको और भी | आई हैं, मुझे देखने चलना है। या कुछ और कहता है। उसका पिता बड़ी अरबी है, और भी बड़ी चीनी है। यह बिलकुल नहीं आ कहता है, मेरा हाथ पकड़ और चल! सकती। अरबी में थोड़ा-बहुत समझ में भी आ जाए, उस आदमी | | बेटा कह सकता है कि तुम्हारा हाथ पकड़कर चलूं? रास्ते में तुम के होंठ की गति खयाल में आ जाए, उस आदमी की आंख का | | छोड़ तो न दोगे? तुम्हें अपने हाथ का पक्का भरोसा है कि मैं भटक इशारा समझ में आ जाए, उसकी भाव-भंगिमा कुछ कह दे। यह | | तो न जाऊंगा? क्या तुम्हें पक्का खयाल है कि तुम जहां ले जा रहे कृष्ण तो भाव-भंगिमा रहित हैं। इनके होंठों से कुछ पता नहीं | हो, वह जगह है? और पहले तुम मुझे सब तर्कयुक्त रूप से समझा चलेगा। इनकी आंखें कुछ न कहेंगी। क्योंकि ऐसे व्यक्ति ऐसे शून्य | | दो कि सूरज है, कि सागर है, कि फूल खिले हैं, कि पक्षी गीत गाते हो गए होते हैं, कठिन है इनसे कुछ पता लगा लेना। और जो ये | | हैं। जब मैं सब समझ लूं, तब मुझे यह भी समझाओ कि तुम कह रहे हैं, वह भाषा समझ में आती हुई मालूम पड़ती है, समझ में | धोखेबाज तो नहीं हो? तब तुम मुझे यह भी बताओ कि तुम्हारे हाथ 179
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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