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________________ * गीता दर्शन भाग-48 कहते हैं कि साधन करने को सुगम है। पड़ेगा। आपकी पात्रता हो, उस पात्रता के लिए बहुत कुछ करना उसके लिए सुगम है, जो इसका अभ्यास करेगा। जो सुनेगा, पड़ेगा। जैसे मैं कह सकता हूं कि पानी तो एक क्षण में भाप बन उसे बड़ा दुर्गम है। जो सिर्फ सुनेगा, चलेगा नहीं, उसे बड़ा कठिन | | जाता है, लेकिन इसका यह मतलब मत समझ लेना कि पानी को है। जो चलेगा भी, उसे बड़ा सरल है। गरम नहीं करना पड़ता। सौ डिग्री तक तो पानी को गरम होना ही इस सरलता में दो बातें छिपी हैं। एक तो मैंने कहा, यह आठ | | पड़ता है। सौ डिग्री पर एक क्षण में भाप बन जाता है। लेकिन सौ अध्याय के बाद कही गई सुगमता है। अर्जुन तैयार है, पात्र है। | डिग्री की गर्मी एक क्षण में नहीं आती। सौ डिग्री की गर्मी के लिए अगर आप पात्र हैं, तो सुगम होगा। अगर आप पात्र नहीं हैं, तो वक्त लगता है। ये दोनों बातें सच हैं। अगर कोई पूछे कि पानी सुगम नहीं होगा। आप पर सब कुछ निर्भर करता है। इस अध्याय | क्षणभर में भाप बनता है कि समय लेता है, तो क्या कहिएगा? को पढ़कर कई लोग समझते हैं कि बस, बात ही सुगम है। खत्म दो तरह के चिंतन दुनिया में रहे हैं। एक जो कहते हैं, सडेन हो गया, कुछ करने को भी नहीं है। | एनलाइटेनमेंट, तत्काल निर्वाण हो सकता है, उपलब्धि हो सकती इस अध्याय को सीधा मत पढ़ना! आपकी पात्रता निर्मित होनी | है। और एक जो कहते हैं, ग्रेजुअल एनलाइटेनमेंट, क्रमशः, चाहिए। आपकी दोष-दृष्टि खो गई है, तो यह सुगम है; यह शर्त | सीढ़ी-सीढ़ी उपलब्धि होती है। उन दोनों में बड़ा संघर्ष रहा है; है। यह बेशर्त नहीं है। महात्मागण समझाते रहते हैं लोगों को कि | लेकिन एकदम नासमझी से भरा हुआ। क्योंकि उनकी बातचीत कलियुग में तो भक्ति का साधन ही एकमात्र सुगम साधन है। ठीक वैसी ही है, जैसे कोई पानी के संबंध में तय करे कि पानी क्षण सतयुग में कहते, तो थोड़ा ठीक भी होता। क्योंकि भक्ति जितना | | में भाप बनता है कि समय लगता है! क्या कहिएगा? . शुद्ध हृदय चाहती है, उतना सतयुग में भी मुश्किल है। ___पानी दोनों करता है। और पानी को बांटा नहीं जा सकता। सौ महात्मागण समझाते हैं कि भक्ति सुगम साधन है कलियुग में। डिग्री तक गरम होने में उसे वक्त लगता है। और मजे की बात यह अजीब-सी और नासमझी की बात है। भक्त का हृदय जितना शुद्ध है कि निन्यानबे डिग्री से भी पानी अगर गर्म होना बंद हो जाए, तो हो, उतना तो सतयुग में भी पाना मुश्किल होता है, तो कलियुग में वापस लौट जाएगा, भाप नहीं बनेगा। साढ़े निन्यानबे डिग्री से भी कैसे आसान हो जाएगा? वे कहते हैं, राम-राम का नाम ले लिया, वापस लौट जाएगा। रत्तीभर कमी रह जाए सौ डिग्री में, तो पानी पानी तो कलियुग में बड़ा सुगम साधन है। लेकिन नाम लेने के लिए जो | ही रहेगा। और अगर गर्मी देनी बंद हो जाए, तो वापस लौट जाएगा। पात्रता चाहिए, वह कहां से लाइएगा? नाम तो कोई भी ले लेता है। सौ डिग्री पर आकर छलांग घटित होती है, और तत्काल पानी लेकिन जो शुद्ध हृदय चाहिए, जिसमें वह राम के नाम का फूल | भाप हो जाता है। यह घटना तो क्षण में घटती है। कहना चाहिए, लगे, वह शुद्ध हृदय कहां है? क्षण के भी हजारवें हिस्से में घटती है। कहना चाहिए, समय के लेकिन लोगों को, आसान है कोई बात, ऐसा समझकर भी बड़ी बाहर घटती है। जरा भी समय नहीं लगता पानी को भाप बनने में, राहत मिलती है। इसलिए कई बार तो यह हो जाता है कि कठिनाई लेकिन पानी को सौ डिग्री तक पहुंचने में बहुत समय लगता है। से डरे हुए लोग, कोई भी बात कोई कह दे कि आसान है, तो उसके __भक्त बनने में बहुत समय लगता है। भक्त को उपलब्धि तो क्षण पीछे लग जाते हैं। इसलिए नहीं कि वह आसान है, बल्कि इसलिए | में हो जाती है। भक्त सौ डिग्री में उबलता हुआ व्यक्तित्व है। कि वे कठिनाई से बहुत डरे हुए हैं। तो आप यह मत सोचना कि आप उठे और भक्त हो गए! आप और ध्यान रहे, जो कठिनाई से डरा है, वह परमात्मा से कभी | | बिलकुल ठंडे पानी हैं। डर तो यह है कि बर्फ न जमा हो, फ्रोजन; भी न मिल सकेगा। क्योंकि वह परम कठिनाई है। वहां तो अपने जिसको पहले पिघलाना पड़े, तब वह पानी बने। फिर गरमाना पड़े, को खोने की और मिटाने की हिम्मत चाहिए। वहां तो आखिरी दांव | तब कहीं वह सौ डिग्री तक पहुंचे! और सौ डिग्री तक पहुंचने में का साहस चाहिए। वह तो आखिरी एडवेंचर, दुस्साहस है। जैसे | | पचास बार वह कहे कि कोई शार्टकट नहीं है? कहां इतना समय कोई छलांग लगाता हो किसी अनंत गड्ड में, जिसके नीचे की | लगा रहे हैं! तलहटी दिखाई ही न पड़ती हो। वह तो ऐसा है। इसलिए महेश योगी जैसे व्यक्तियों की बातें लोगों को थोड़े दिन तो सरल का मतलब यह नहीं होता कि आपको कुछ करना नहीं के लिए बहुत प्रभावी हो जाती हैं; क्योंकि शार्टकट! वे कहते हैं, 178
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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