________________
* गीता दर्शन भाग-4
से तुमने कभी किसी को पहुंचाया भी है कि मुझको ही पहुंचाते हो? | | खिलता है, तो उससे अनंत के द्वार खुल जाते हैं। और मैं कैसे मानूं कि तुमने किसी को पहुंचाया है? इसकी कोई तो कृष्ण कहते हैं, श्रद्धारहित होकर, तो फिर मुझ तक कोई नहीं गवाहियां हैं? और फिर मैं कैसे मानूं कि वे गवाहियां तैयार की हुई | | पहुंच पाता है। क्योंकि मुझ तक पहुंचने का द्वार और सेतु ही श्रद्धा नहीं हैं?
| है। और जो मुझ तक नहीं पहुंचता, वह मृत्यु और जन्म, जन्म और यह सब वह पूछने लगे, तो असंभव है यात्रा। लेकिन बेटा | मृत्यु, मृत्यु और जन्म के पहिए में घूमता रहता है, भटकता रहता है। उठकर खड़ा हो जाता है; और पिता का हाथ पकड़ लेता है और आज इतना ही। चल पड़ता है। यह पिता का हाथ पकड़ने में जो भाव बेटे का है, लेकिन उठेंगे नहीं। एक पांच-सात मिनट श्रद्धा रखकर कीर्तन उसका नाम श्रद्धा है।
संन्यासी करेंगे, उसमें सम्मिलित हों। सुनें मत, सम्मिलित हों। श्रद्धा का अर्थ है, एक गहरा अपनापन, एक भरोसा। श्रद्धा का | जिन मित्रों को भी नाचने का भाव हो, वे भी यहां सामने आ अर्थ है, एक आत्मीयता; अज्ञात के प्रति, अनजान के प्रति भी | सकते हैं। शेष सब अपनी जगह बैठे रहेंगे। कोई उठेगा नहीं। ताली भरोसे का भाव।
बजाएं। कीर्तन में सम्मिलित हों पांच-सात मिनट। इसे हमारे ध्यान रहे, श्रद्धा करके भूल भी हो जाए, तो हानि नहीं है; और | संन्यासियों का प्रसाद.समझें। अश्रद्धा करके लाभ भी हो जाए, तो हानि है। अश्रद्धा करके लाभ भी हो जाए, तो हानि है। क्योंकि अश्रद्धा से जो मिलेगा, वह दो कौड़ी का होगा; लेकिन अश्रद्धा मजबूत हो जाएगी, जो कि बहुत बड़ी हानि है। श्रद्धा करके हानि भी हो जाए, तो हानि नहीं है, लाभ ही है। क्योंकि श्रद्धा की, यह बड़ी घटना है।
इस जगत में जो सबसे बड़ी घटना है, वह श्रद्धा है। यह बड़ी हैरानी की बात है। खयाल में न आएगा। क्योंकि श्रद्धा एक असंभव बात है, इंपासिबिलिटी। किसी पर श्रद्धा करना एक असंभव बात है। क्योंकि हमारी पूरी की पूरी बुद्धि सब तरह के अड़ेंगे खड़े करेगी। वह कहेगी अर्जुन से कि यह कृष्ण! यह मेरे साथ खेला है और मुझसे कहता है, श्रद्धा! यह कृष्ण! इसके गले में मैं हाथ डालकर नाचा हूं, कूदा हूं, यह मुझसे कहता है, श्रद्धा! यह कृष्ण! जिससे मौका पड़ा है, तो कुश्ती भी की है, यह कहता है, श्रद्धा! यह कृष्ण जो कि मेरा सारथी होकर खड़ा है इस युद्ध में, मुझसे कहता है, श्रद्धा! यह कृष्ण! इसको भी चोट लग जाती है, तो हाथ से खून निकल आता है। इसको भी भूख लगती है। रात नींद नहीं आती है, तो सुबह थका-मांदा होता है। यह मुझसे कहता है, श्रद्धा! यह कृष्ण भी मरेगा। यह कृष्ण भी एक दिन पैदा हुआ। यह कृष्ण भी प्रेम में पड़ता है; यह गोपियों के साथ नाचता है। यह कृष्ण भी लेन-देन करता है, राजनीति चलाता है। मुझसे कहता है, श्रद्धा! अर्जुन को हजार सवाल आने स्वाभाविक हैं। और बिलकुल प्राकृतिक हैं।
श्रद्धा बड़ी असंभव घटना है। श्रद्धा ऐसा फूल है, जो कभी-कभी करोड़ों में कभी एक बार खिलता है। लेकिन जब
180