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________________ गीता दर्शन भाग-4 लोगों के हाथ में और इतने ढंगों से पहुंच गया कि अब जरूरी हो गया कि सुस्पष्ट हो सके, कि जो-जो बातें लोगों ने बीच में मिला ली होंगी, वे ठीक नहीं हैं। इसलिए स्मृति से उसे कागज तक उतारने की चेष्टा करनी पड़ी। फिर भी उसे सूत्रों में लिखा गया। सूत्र का मतलब होता है, उसे वही समझ सकेगा, जो सूत्र की भाषा में निष्णात है। अगर आइंस्टीन के सापेक्षवाद के सिद्धांत के फार्मूले को हम लिखें, तो तीन छोटे-छोटे शब्दों में पूरा हो जाता है; तीन वर्णों में पूरा हो जाता है। पूरा का पूरा उसका जीवन-दर्शन, जिस पर आधुनिक विज्ञान की सारी आधारशिला खड़ी है, आपके नाखून पर लिखा जा सकता है। बस, उतनी ही उसकी खोज है, शेष सब विस्तार है। लेकिन उस नाखून पर लिखे हुए सूत्र को आप समझ नहीं पाएंगे। वह भाषा सूत्र का मतलब होता है, संक्षिप्त, सार । इतना सार कि उसे वही जान सके, जिसे पूरे विस्तार का पता हो। सूत्र से विस्तार नहीं जाना जा सकता; विस्तार पता हो, तो सूत्र खोला जा सकता है। सूत्र है, वह स्मरण रखने के लिए है; ताकि पूरे विस्तार को याद न रखना पड़े। तो शास्त्र सूत्रों में लिखे गए। फिर उन सूत्रों को भी जहां तक बन सके ओरल ट्रेडीशन से- गुरु शिष्य को कहता रहे, और शिष्य अपने शिष्यों को कहता रहे। सीधा मुंह से ही कहे, ताकि कहने में उसका जीवन भी समाविष्ट हो जाए। ताकि जब वह कहे, तो उसकी आत्मा भी उसमें प्रवेश कर जाए। जब वह कहे, तो उसका अनुभव भी उस कहे हुए को रंग और रूप दे जाए। अन्यथा खाली शब्द चली हुई कारतूस जैसे होते हैं | अनुभव से सिक्त, अनुभव से भरे, अनुभव के रस डूबे हुए और पके हुए शब्द भरी हुई कारतूस की तरह होते हैं। तो सूत्र गुरु अपने शिष्य को कह दे । वह भी कान में कह दे । अभी भी कान में कहे जा रहे हैं सूत्र ! लेकिन बड़े अजीब सूत्र । कान में गुरु किसी से कह देता है कि राम राम जपना, यह मंत्र दे दिया । कान में वही बातें कही जाती थीं, जो सुनने वाले ने पहले कभी सुनी ही न हों। राम नाम का आप सूत्र दे रहे हैं उसको, वह भलीभांति सुना हुआ है। और फिर भी उसको कह रहे हैं कि किसी को बताना मत, गुप्त रखना! कभी-कभी चीजें बेहूदगी की सीमा को भी पार कर जाती हैं ! सूत्र थेवे, जो सुनने वाले ने कभी सुने ही नहीं थे। जो उसकी चेतना में पहली दफे अवतरित किए जा रहे थे। और इसलिए गुरु ही कहे उनको, क्योंकि उसके पास उसके पूरे जीवन से निकला हुआ, | अनुभव से आया हुआ सूत्र है । वह दूसरे की चेतना पर ट्रांसफर करे। वह हस्तांतरण था एक अनुभव का, सूत्रबद्ध । और साधना | से फिर उस सूत्र के अर्थ को खोज लेने के उपाय थे। कृष्ण कहते हैं, मैं उन गोपनीय बातों को तुझसे कहूंगा, और रहस्य के सहित कहूंगा। क्योंकि सिर्फ गोपनीय बातें कह देने से कुछ भी न होगा। उनका अर्थ भी बताना होगा। उनका रहस्य भी समझाना होगा। कि जिसको जानकर तू दुखरूप संसार से मुक्त हो जाएगा। ज्ञान मुक्ति है। जो जान लेता है, वह दुख के बाहर हो जाता है। | इसलिए नहीं कि जानना कोई नाव है और दुख कोई सागर है; कि जानने की नाव मिल गई, तो आप पार हो जाएंगे। नहीं। बात थोड़ी और ही है। असल में अज्ञान ही दुख है। जान लिया, तो सागर विलीन हो जाता है; नाव की कोई जरूरत नहीं रह जाती। अज्ञान और दुख पर्यायवाची हैं। अज्ञान के कारण ही दुख है। ऐसा नहीं कि दुख है, और मैं अज्ञानी हूं। मैं अज्ञानी हूं, इसलिए दुख है । मेरा अज्ञान ही मेरा दुख है । तो जिस दिन मैं जान लूंगा, उस दिन दुख तिरोहित हो जाएगा। ऐसा नहीं कि जानने के बाद फिर ज्ञान की नौका बनाकर और दुख के भवसागर को पार करूंगा। दुख का कोई भवसागर नहीं है। मेरा अज्ञान ही मेरा दुख है। मेरा अज्ञान ही मेरी पीड़ाओं का जन्मदाता है। मेरे अज्ञान के कारण ही मैं उलझ गया हूं। मेरे अज्ञान के कारण ही मैं अपने ही पैरों पर अपने ही हाथों कुल्हाड़ी मारे चला जाता हूं। मैं अपने अज्ञान के कारण ही अपने कोही जहर से भर लेता हूं और अमृत से वंचित हो जाता हूं। यह | मेरी ही भूल है । यह सिर्फ भूल है। इसे थोड़ा समझ लें; क्योंकि यह बहुत कीमती है। | पश्चिम में जो धर्म पैदा हुए, उन्होंने आदमी के पाप पर जोर दिया है | यह बुनियादी फर्क है । इस्लाम, ईसाइयत और यहूदी, ये तीनों के तीनों यहूदी परंपरा के हिस्से हैं। और दुनिया में दो ही तरह के धर्म की परंपराएं हैं। एक यहूदी धर्म परंपरा और एक हिंदू धर्म परंपरा; बस दो। जो भी धर्म दुनिया | में पैदा हुए हैं या तो वे यहूदी धर्म परंपरा से जन्मे हैं, उसकी ही | शाखाएं हैं; या जो धर्म पैदा हुए हैं— जैसे जैन, बौद्ध या और वें हिंदू धर्म परंपरा की शाखाएं - प्रशाखाएं हैं। ये दो तरह की धर्म 174
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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