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* श्रद्धा का अंकुरण *
कोई भी ज्ञान खतरनाक सिद्ध हो सकता है। विज्ञान का ज्ञान ऐसे | इसे रोके कौन? यह रुकेगा कैसे? इसे छिपाओगे कैसे? ही खतरनाक सिद्ध हो रहा है। ज्ञान खतरनाक नहीं होता, लेकिन | बहुत आश्चर्य न होगा, अगर आने वाले पंद्रह वर्षों में सारी ज्ञान जिसके हाथ में जाएगा, अगर उसके पास भक्त का भाव न | | दुनिया के वैज्ञानिकों को इकट्ठा होकर यह तय करना पड़े कि सिर्फ हो, तो ज्ञान का खतरा निश्चित है।
वैज्ञानिक ही वैज्ञानिक अनुसंधान से हुई उपलब्धियों को जान विज्ञान ने बड़े ज्ञान की खोज की और पदार्थ के गुह्यतम रहस्यों | सकेंगे, बाकी कोई नहीं। और शायद उन्हें ऐसी भाषा विकसित को बाहर ले आया। लेकिन उसका परिणाम हिरोशिमा और करनी पड़े–जो विकसित हो रही है कि जिस भाषा को नागासाकी हुआ। और उसका परिणाम अब यह है कि खुद | | गैर-वैज्ञानिक समझ ही न सके। आज भी नहीं समझ सकता। आज वैज्ञानिक चिंतित हैं कि हमने पाप किया। ओपेनहेमर ने, या | भी वैज्ञानिक की भाषा धीरे-धीरे स्पष्ट रूप से गोपनीय होती चली आइंस्टीन ने, जिन्होंने अणु की ऊर्जा के विस्फोट में सर्वाधिक काम जा रही है। किया, उनके भी अंतिम क्षण बड़े दुख और पश्चात्तापपूर्ण थे; | ठीक ऐसा ही एक अनुभव आत्मज्ञान का भारत को भी हुआ है। अपराधपूर्ण थे, एक भारी गिल्ट, छाती पर एक बोझ था। लीनियस | | उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। भारत ने भी मनुष्य के पालिंग या और दूसरे वैज्ञानिक भी अपने जीवन के अंतिम क्षणों में | | अंतर्भेदन में उस जगह को उपलब्ध कर लिया, जहां परम शक्ति एक ही चीज से परेशान हैं। और वह परेशानी यह है कि हमने जो | | का स्रोत था। उन सूत्रों को छिपाने का सवाल उठ गया, क्योंकि उन ज्ञान मनुष्य को दे दिया है, कहीं वह ज्ञान ही तो मनुष्य का आत्मघात | सूत्रों का बताया जाना खतरनाक हो सकता था। सिद्ध न होगा? कहीं उसके कारण ही तो जगत विनष्ट नहीं हो | इसलिए एक गोपनीय गुह्य-ज्ञान, एक इसोटेरिक नालेज निर्मित जाएगा? हमने तो सोचा था कि ज्ञान सदा ही हितकारी है, लेकिन | हुई। और उसे यहां तक गुह्य करना पड़ा कि उसे शास्त्र में भी न अब ऐसा मालूम नहीं पड़ता।
| लिखा जाए; क्योंकि शास्त्र भी पढ़े जा सकते हैं। या इस ढंग से ज्ञान सदा हितकारी नहीं है। कभी-कभी तो अज्ञान भी हितकारी | लिखा जाए कि पढ़ने वाला कुछ और समझे, वह नहीं, जो कहा है। गलत आदमी के हाथ में अज्ञान ही ठीक है। सही आदमी के | गया है। या इस ढंग से लिखा जाए कि उसके अनेक अर्थ हो सकें; हाथ में ज्ञान ठीक हो सकता है, क्योंकि ज्ञान शक्ति है। बेकन ने और पढ़ने वाला जब तक जानता ही न हो, तब तक अनेक अर्थों कहा है, नालेज इज़ पावर-ज्ञान शक्ति है। और शक्ति अगर | में खो जाए। या इस ढंग से लिखा जाए कि उसके दो अर्थ हो सकें। गलत हा है, तो खतरा निश्चित है।
एक, जो सामान्य आदमी समझ ले, और पाए कि बिलकुल ठीक भक्त का अर्थ है, अब जो गलत नहीं कर सकता। भक्त का है; और एक वह आदमी समझे, जिसके हाथ में कुंजियां हैं। अर्थ है, जिसके भीतर से गलत करने वाली बुद्धि विलीन हो गई। फिर बहुत वर्षों तक, किताबें न लिखी जाएं, इसका आग्रह रहा। भक्त का अर्थ है, जिसने जीवन में अब परम को देखने की क्षमता हजारों वर्षों तक हमने ज्ञान को मुखाग्र रखा; नहीं लिखने की चेष्टा जुटा ली। अब वह निकृष्ट के लिए प्रयासशील नहीं होगा। उसके | की। मजबूरी में वह लिखा गया। इसलिए नहीं, जैसा कि पश्चिम हाथ में शक्ति भी दे दी जाए, तो अब कोई खतरा नहीं है। के विचारक समझते हैं कि ज्ञान तब लिखा गया, जब लिखने का
विज्ञान को जो भूल आज समझ में रही है, भारत को पांच | | आविष्कार हुआ। नहीं; क्योंकि जो ज्ञान का आविष्कार कर सकते हजार साल पहले किसी दूसरे संदर्भ में समझ में आ गई है। जिसे | थे, वे निश्चित ही लिखने का आविष्कार कर सकते थे। लिखना आज विज्ञान पदार्थ में गहरे उतरकर समझ रहा है, और पश्चिम के बड़ी छोटी बात है। जो ज्ञान का आविष्कार कर सकते थे, वे लिखने सारे वैज्ञानिकों के सारे सम्मेलन एक ही बात पर चिंता कर रहे हैं, का आविष्कार न कर सकते हों, यह बात समझ में आने जैसी नहीं कि क्या अब जो ज्ञान हमें मिल रहा है, वह सर्व-सामान्य के लिए | है। असंगत है। सुलभ किया जाना चाहिए या नहीं? जो ज्ञान हमें मिल रहा है, वह । नहीं, जानने का आविष्कार रोका गया लिखने से हजारों वर्षों राजनीतिज्ञों तक पहुंचना चाहिए या नहीं? जो हम जान लेंगे, हम तक, ताकि वह जनसामान्य तक न पहुंच जाए; वह गोपनीय रखा कैसे समझें कि अगर हमने उसे प्रकट किया, तो वह अहितकर | | जा सके। लिखने की मजबूरी तो तब आई, जब इतनी शाखाएं हो सिद्ध नहीं होगा? फिर कौन रोके? यह जो ज्ञान हाथ में आ जाए, | गईं उस ज्ञान की, और गुप्त मार्गों से यात्रा कर-करके वह इतने
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