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________________ ६ गीता दर्शन भाग-4 मिला, उसे ऐसी बातों को स्वीकार करना पड़ा है, जिनकी इंद्रियां | भक्त से हमारे मन में जो तस्वीर उठती है, वह बहुत बचकानी कोई भी खबर नहीं देतीं। | है। भक्त से हमारे मन में खयाल उठता है कि मंदिर में पूजा का __ आज का सारा विज्ञान परमाणु की खोज पर खड़ा है, इंद्रियां | | थाल लिए जो खड़ा है! भक्त से हमारे मन में खयाल उठता है कि उसकी कोई खबर नहीं देती। ज्यादा से ज्यादा हम परमाणु के जो जो रोज नियम से, विधि से प्रार्थना कर रहा है! भक्त से हमें खयाल परिणाम हो सकते हैं, इफेक्ट्स हो सकते हैं, उन्हें जान सकते हैं, उठता है-जनेऊधारी, टोपी लगाए हुए, टीका लगाए हुए! भक्त लेकिन स्वयं परमाणु को नहीं। लेकिन इसी बुद्धि ने कल यह मानने | से हमें कुछ खयाल उठते हैं; कुछ तस्वीरें मन में घूम जाती हैं। से इनकार कर दिया था कि आदमी के भीतर प्रेम है। प्रेम के परिणाम लेकिन भक्त का जो अर्थ है, वह है, जिसकी दोष-दृष्टि नष्ट तो दिखाई पड़ते हैं। क्योंकि एक मां अपने जीवन के न मालूम | हुई; जो अब जीवन को नकारात्मक ढंग से नहीं देखता; जिसने अब कितने कीमती समय को प्रेम के लिए विलीन कर देती है! कि कोई | जीवन को उसकी विधायकता में देखने की तैयारी जुटा ली। प्रेमी अपने प्रेमी के लिए मर जाता है! जीवन को भी छोड़ देता है | इसे हम ऐसा भी समझें, तो ठीक होगा, मैंने कहा कि प्रेम के लिए! नकारात्मक जो जीवन-दृष्टि है, वह चीजों को तोड़कर देखती है। तो प्रेम के परिणाम तो भारी हैं, लेकिन प्रेम को काटकर जानने | | तोड़ने के लिए हमारे पास एक शब्द है, विभक्त। चीजों को बांटती का कोई भी उपाय नहीं है। तो फिर प्रेम एक कल्पना होगी। फिर | है, विभक्त करती है। भक्त का अर्थ इससे उलटा है, जो तोड़ता प्रेम एक खयाल है, फिर उसकी कोई वस्तुगत सत्ता नहीं है, ऐसा | नहीं, जोड़ता है। भक्त का अर्थ है, जो जोड़ता है। विभक्त का जो मानते थे, वे भी परमाणु को स्वीकार करेंगे। और वे भी परमाणु अर्थ है, जो तोड़ता है। के नीचे उतरेंगे, तो इलेक्ट्रांस को स्वीकार करेंगे। इंद्रियां उनकी कोई | अंग्रेजी में भक्त के लिए हम डिवोटी शब्द का उपयोग करते हैं। भी गवाही नहीं देतीं। वह एकदम ही गलत है। उस डिवोटी से हमारी वही तस्वीर खयाल विज्ञान भी तोड़-तोड़कर इस नतीजे पर पहुंचा है कि वे जो अंतिम | में आती है, मंदिर में पूजा का थाल लिए। ठीक भक्त का अगर खंड हाथ में आते हैं, वे हाथ में आते ही नहीं। अंतिम खंड भी हाथ अंग्रेजी में कोई शब्द हो सके पर्यायवाची, तो वह इंडिविजुअल है। से चूक जाते हैं। इंद्रियों की पकड़ उन पर भी नहीं बैठ पाती। लेकिन | लेकिन खयाल में नहीं आएगा। इंडिविजुअल शब्द का भी अर्थ एक और दृष्टि भी है, जिसे विधायक, पाजिटिव दृष्टि कहें। जो | होता है, दैट व्हिच कैन नाट बी डिवाइडेड, इनडिविजिबल। जो जीवन को तोड़कर नहीं, जोड़कर देखती है। जो पूछती है, तो इसलिए | तोड़ा न जा सके। जो टूटा हुआ न हो। जिसका भरोसा तोड़ने पर कि पहुंचे कैसे। जो सवाल भी उठाती है, तो इसलिए ताकि जवाब | न हो। जोड़ा जा सके, जोड़ने की तैयारी हो, जुड़ा हुआ हो। मिल सके। जवाब गलत है, इसलिए नहीं; ताकि जवाब किसी और कार्ल गुस्ताव जुंग ने अपने मनोविज्ञान को ए थियरी आफ का है अभी, कल मेरा भी कैसे हो जाए इसलिए। | इंडिविजुएशन कहा है—एक होने का विज्ञान। भक्त का अर्थ भी आज जो कृष्ण कहते हैं, कल वह अर्जुन का भी हो जाए, | | वही है। भक्त का अर्थ है, जो जीवन को जोड़ने वाली दृष्टि से इसलिए अगर सवाल पूछा जाए, तो उस सवाल की गरिमा और देखने में समर्थ हआ है। यह सामर्थ्य तभी आती है. जब हम तोडने गौरव अलग है। उस सवाल की गणवत्ता. उसकी क्वालिटी और वाली दृष्टि को छोड़ देते हैं, त्याग कर देते हैं। और जल्दी में कोई है। कृष्ण को लगता है कि अर्जुन अब उस जगह आकर खड़ा हुआ छलांग नहीं लगा सकता। है, जहां उसकी दोष की दृष्टि खो गई है। अब उससे परम रहस्य | | कृष्ण यह सूत्र गीता के प्रारंभ में भी कह सकते थे, लेकिन तब की बात कही जा सकती है। वह व्यर्थ हुआ होता। हममें से बहुत लोग ऐसे ही हैं, जो गीता के वे कहते हैं, तुझ दोष-दृष्टि रहित भक्त के लिए इस परम | | आठ अध्यायों की यात्रा न करते, सीधे इस सूत्र से शुरू करते। वे गोपनीय ज्ञान के रहस्य को कहूंगा। | कृष्ण से भी ज्यादा समझदार अपने को सोच लेते होंगे! दोष-दृष्टि से जैसे ही कोई व्यक्ति रहित हुआ, वह भक्त हो | | कोई भी व्यक्ति सीधा भक्ति में उतरने में बहुत असफलता गया। भक्त की इस परिभाषा को ठीक से हृदय में ले लें। क्योंकि | पाएगा। क्योंकि जब तक बुद्धि अपनी दौड़-धूप को शांत न कर ले, भक्त से हम कुछ न मालूम क्या समझते हैं! तब तक भक्त का भाव उदय ही नहीं होता। जब तक बुद्धि थककर | 1701
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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