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गीता-दर्शन अध्याय 9
श्रद्धा का अंकुरण... 165
जैसी दृष्टि-वैसी सृष्टि / जानने में व्यक्तित्व का सम्मिश्रण / व्याख्यारहित देखना असंभव है / आस्तिक-दृष्टि-नास्तिक-दृष्टि / चुनाव के अनुकूल दिखाई पड़ना / गेस्टाल्ट का नियम / नास्तिक की दृष्टि में श्रेष्ठ का, सौंदर्य का, काव्य का खो जाना / पहले सात अध्यायों में कृष्ण अर्जुन के संदेह काटते रहे / अब श्रद्धा का जन्म हो रहा है / संदेह भरे चित्त को क्षुद्र बातें ही कही जा सकती हैं / गहन आत्मीयता में ही रहस्य कहे जा सकते हैं / रहस्य हृदय से समझे जा सकते हैं / बुद्धि तोड़ती है, दूर करती है / बुद्धि के प्रश्न-हृदय के प्रश्न / श्रद्धा से भरे व्यक्ति का देह-रसायन भी बदल जाता है | भक्त के प्रश्न अनुभूति की पिपासा से उठे / समग्रता में है सौंदर्य / इंद्रियों की बोध-क्षमता सीमित / परमाणु विज्ञान का अदृश्य जगत में प्रवेश / बुद्धि की समग्र विफलता पर भक्ति का जन्म / भक्ति-बुद्धिहीनता नहीं-बुद्धि का अतिक्रमण है / भक्ति बुद्धि से पलायन नहीं है । बुद्धि से पूरा गुजरकर ही पता चलना कि बुद्धि बेकार है / भक्ति परम ऊर्जा का जागरण है / तथाकथित कमजोर भक्त / संदेह का भय / बुद्धि का थककर गिर जाना / श्रद्धा का अंकुरण / जिज्ञासा और अभीप्सा का फर्क / भक्ति के अभाव में ज्ञान खतरनाक / गलत हाथों में ज्ञान / विज्ञान से विध्वंस की संभावनाएं / ज्ञान शक्ति है / भक्त अर्थात जो अब गलत नहीं कर सकता / वैज्ञानिकों की चिंता-ज्ञान को गोपनीय करना पड़े / मनुष्य के अंतश्चेतन में विराट शक्ति के स्रोत / गुह्य-ज्ञान / न लिखे जाने का आग्रह / मुखाग्र गुरु-शिष्य परंपरा / मजबूरी में लिखना पड़ा / सूत्रों में छिपे रहस्य / सूत्रों को केवल अनुभवी ही समझा सकें / अनुभव का सूत्रबद्ध हस्तांतरण / दुख का कारण अज्ञान है-पाप नहीं / दुनिया के दो मौलिक धर्म-हिंदु और यहूदी / जानकर कुछ गलत करना संभव नहीं / पुण्य और सेवा से पापों को काटना / ईसाइयत की धारणा / पूरब का जोर-ध्यान से ज्ञान जन्मेगा / अज्ञानी की सेवा भी अज्ञान भरी होगी / अज्ञानी का अंधापन / पकड़ता है फूल-निकलते हैं कांटे / सुनना और पढ़ना जानना नहीं है / स्मृति से ज्ञान का धोखा / ज्ञान से पीड़ित भारतीय / देश में घूम-घूमकर ब्रह्म-ज्ञान बांटना / राजविद्या है-स्वयं को जानना / पात्रता हो तो भक्ति सुगम है-अन्यथा दुर्गम है / शुद्ध हृदय आज दुर्लभ है / पानी को सौ डिग्री तक गरम करने का श्रम / भक्त सौ डिग्री पर होता है / भक्ति के लिए शार्टकट नहीं है / गरम पानी ठंडा हो सकता है / श्रद्धायुक्त हृदय है द्वार / श्रद्धा-एक गहरा अपनापन, एक गहन आत्मीयता / जगत की सबसे बड़ी घटना है श्रद्धा / श्रद्धा का फल खिलना।
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अतयं रहस्य में प्रवेश ... 181
श्रद्धा से ही अतयं प्रवेश संभव / आकर्षण के चार तल-चुंबकीय, कामवासना, प्रेम और श्रद्धा / पाजिटिव और निगेटिव-पुरुष और स्त्री / विद्युत, देह, मन और आत्मा / श्रद्धा श्रेष्ठतम आकर्षण है / ऊर्जा अदृश्य है-केवल परिणाम दृश्य हैं / धन, पद, प्रतिष्ठा का आकर्षण–यौन आकर्षण से भी नीचे / केवल शरीर के आकर्षण पर बने विवाह टेंगे ही / दो मन के बीच आकर्षण-प्रेम-कम होता गया है / प्रेम मैत्री है / गुरु और शिष्य के बीच-आत्मिक आकर्षण / भक्त की स्त्रैणता / अर्जुन के हृदय के द्वार खुले हैं / शिष्य ग्राहक गर्भ बन जाता है / प्रेम के फूल खिलना / प्रेम रूपांतरणकारी है / श्रद्धा आत्यंतिक क्रांति है / अनहोना भी हो रहा है / अब कृष्ण उलटबांसी में बोलते हैं / मेरे अव्यक्त स्वरूप से सारा जगत परिपूर्ण है / रूप में अरूप-आकार में निराकार / जीवन में विपरीत मिले हुए हैं / सगुण-निर्गुण विवाद की नासमझी / मूर्तियां बनाने वाले–मूर्तियां तोड़ने वाले /