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* गीता दर्शन भाग-42
इनकंसिस्टेंट होंगे। कभी वह कहेगा कि ठीक है मंदिर; और कभी | मरा। यह भूखा मरने वाला है, इसने अपने को सताकर मजा लिया। कहेगा, व्यर्थ है। और कभी कहेगा कि इस मूर्ति में परमात्मा है; | ये इसके सताए जाने में मजा ले रहे हैं। इनको बड़ा रस आ रहा है।
और कभी कहेगा, इस मूर्ति को तोड़ डालो, इसी के कारण परमात्मा तप के नाम से सौ में निन्यानबे मौकों पर मानसिक बीमार संलग्न दिखाई नहीं पड़ता है। निर्भर करेगा इस बात पर कि वह किससे कह होते हैं। लेकिन एक व्यक्ति सौ में ऐसा भी होता है, जो तप में रहा है।
मानसिक बीमारी की तरह नहीं जाता। वस्तुतः सत्य की खोज में जो लेकिन यज्ञ की ही बात नहीं करते छोड़ने की, वे कहते हैं, तप भी कष्ट आ जाएं, उन्हें सहने की तैयारी दिखाता है, उसी का नाम भी, तप भी व्यर्थ हो जाता है। क्योंकि जिसे भीतर का स्रोत दिखाई तप है। सत्य की खोज में जो भी कष्ट आ जाएं! कष्टों को निर्मित पड़ गया, अब वह व्यर्थ अपने को कष्ट देने की चेष्टा में संलग्न नहीं करता। अगर वह ध्यान करने खड़ा है और धूप आ जाए, तो नहीं होता है।
वह धूप को सहने को तैयार होता है। लेकिन वह ध्यान करने के __ और अक्सर तो ऐसा होता है कि जो लोग अपने को कष्ट देते। | लिए धूप की खोज नहीं करता, कि छाया में बैठा हो, तो ध्यान न हैं, वे कष्ट देने में रस पाते हैं—सैडिस्ट हैं। अपने को सताने में या कर सके। अगर उसे लगे कि ध्यान करते वक्त अगर भोजन नहीं दूसरे को सताने में। या सैडिस्ट हैं या मैसोचिस्ट हैं। जो लोग तप | लिया जाए तो ध्यान गहरा हो जाता है, तो वह उपवास भी करता को बहुत आदर देते हैं, वे अक्सर मैसोचिस्ट होते हैं, खुद को | | है। लेकिन वह ऐसा नहीं कहता कि उपवास करो, तो ही ध्यान हो सताने में रस पाते हैं।
सकेगा। सहज जो भी कष्ट उसे झेलने पड़ें परम सत्य की खोज में, मैसोच एक लेखक हुआ है, जो अपने को कोड़े मारता, तभी वह उनके लिए तैयार होता है, सहर्ष! प्रफुल्लित हो सकता। अपने को कांटे चुभाता, अपने को सताता, लेकिन तब उनकी प्रशंसा की वह चिंता नहीं करता। अगर आप भूखा मारता, अपनी नसों को काट लेता, तभी उसे थोड़ी-सी सुख | उससे कहें कि तुमने धूप में रहकर बड़ा काम किया है, हम तुम्हारी की रसानुभूति होती।
| पूजा करेंगे। तो वह कहेगा कि तुम पागल हो। धूप में खड़े रहकर और एक दसरा लेखक हआ. मारकस सादे। वह जब तक दसरे मैंने कोई काम नहीं किया है। काम तो मैं भीतर कर रहा था. धप को सता न ले! तो वह अपने प्रेमियों को मारने के लिए हंटर रखता; आ गई, तो मैंने उसकी बाधा को अस्वीकार नहीं किया। मैंने उसे अपनी प्रेयसियों को सताने के लिए पूरा इंतजाम अपने साथ रखता। स्वीकार कर लिया। ध्यान तो मैं भीतर कर रहा था। भूख लग गई, एक झोला रखता। क्योंकि नाखून ज्यादा नहीं सता सकते, तो वह अगर भोजन के लिए जाऊं तो बाधा पड़ेगी, इसलिए भोजन के लिए छुरी-कांटे अपने साथ रखता। ताला बंद कर देता, और तब प्रेयसी नहीं गया; भूख के लिए राजी हो गया। काम तो मैं भीतर कर रहा को प्रेम करना शुरू करता, और प्रेम का अंत अक्सर होता कि वह | था। मैं भूखा नहीं रहा हूं। मैं धूप में नहीं खड़ा हूं। यह परिस्थिति लहूलुहान कर देता। लेकिन जब तक वह दूसरे को लहूलुहान न | थी, उसे मैंने शांति से सह लिया है। कर ले, तब तक उसे रस की अनुभूति न होती।
तप का वास्तविक अर्थ है, सत्य की खोज में जो भी दुख आ ये विकृतियां हैं। अध्यात्म में भी ये विकृतियां खूब प्रवेश कर जाएं, उन्हें सहज स्वीकार करने की तैयारी। लेकिन सत्य की खोज जाती हैं। कुछ लोग हैं, जो अपने को सताने में ही मजा लेने लगते | से विचलित न होना, सत्य की खोज से रंचमात्र भी यहां-वहां न हैं। और इन लोगों के आस-पास, जो अपने को सताने में मजा लेते | जाना, चाहे कितने ही कांटे हों पथ पर। हैं, मैसोच जैसे लोग, इनके आस-पास सैडिस्ट इकट्ठे हो जाते हैं, ___ लेकिन बीमार आदमी उस पथ पर चलेंगे ही नहीं, जहां कांटे न जो दूसरे को सताने में मजा लेते हैं।
हों। वे कहेंगे, कांटे कहां हैं! पहले कांटे बिछाओ, तब हम चलेंगे। __ अगर एक आदमी ने बीस दिन का उपवास किया है, तो उसके | | यह फर्क समझ लेना। सत्य का खोजी अगर कांटे रास्ते पर हों, तो जुलूस में पचासों लोग इकट्ठे होकर सम्मिलित होंगे। आप देख | | उन कांटों को भी झेलने को तैयार रहेगा। लेकिन रुग्ण, परवर्टेड लेना, जो उपवास किया है, वह मैसोचिस्ट है; और जो जलस में | माइंड, सैडिस्ट हो या मैसोचिस्ट, वह कहेगा, यह सत्य का रास्ता सम्मिलित हुए हैं, वे सैडिस्ट हैं। इनको मजा आ रहा है कि इसने हो ही नहीं सकता। इस पर कांटे कहां हैं? पहले कांटे बिछाओ, उपवास किया, इनको बड़ा मजा आ रहा है कि यह आदमी भूखा | तब हम चलेंगे! अगर उसको फूलों वाला रास्ता मिल जाए, तो वह
धूप
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