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गीता दर्शन भाग-4
लेकिन यह कहने की हिम्मत उसे कभी जुटी नहीं।
विरोध नहीं है। मोक्ष केवल चुनाव का विरोध है। चुनाव ही मत दोनों मर गईं, तो नसरुद्दीन ने अपने कब्र बनाने वाले को कहा | | करें। और जिस क्षण भी आप चुनाव-शून्य हैं, च्वाइसलेस हैं, उसी कि बिलकुल ठीक बीच में बनाना मेरी कब्र, लेकिन जरा-सी झुकी क्षण वह परम घटना घट जाती है, जिसकी कृष्ण चर्चा कर रहे हैं। हुई सुल्ताना की तरफ; जरा-सी, जस्ट ए बिट लीनिंग टुवर्ड्स ___ क्योंकि योगी पुरुष इस रहस्य को तत्व से जानकर, वेदों के पढ़ने सुल्ताना। बनाना बीच में, लेकिन जरा तिरछी बनाना, झुकी हुई! | में तथा यज्ञ, तप और दानादि के करने में जो पुण्य फल कहा है,
लेकिन कब्र बनाने वाले ने कहा कि तुम्हारी दोनों पत्नियों की | | उस सबको निस्संदेह उल्लंघन कर जाते हैं और सनातन परम पद वसीयत में लिखा हआ है. ठीक बीच में होनी चाहिए। और दो मत को प्राप्त होते हैं।
आत्माओं को मैं कष्ट नहीं देना चाहूंगा। और फिर कौन झंझट में यह बड़ा क्रांतिकारी वचन है। और गीता में होगा, इसका खयाल पड़े तुम्हारी। तो मैं किसी झंझट में पीछे नहीं पड़ना चाहता हूं। मैं | | भी एकदम से नहीं आता। क्योंकि कृष्ण यह कह रहे हैं कि जो तो ठीक बीच में बना दूंगा। मैं झुकी हुई नहीं बना सकता। पुरुष, जो योगी पुरुष इस तत्व के रहस्य को जान लेते हैं, उनके
तो मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, तो फिर ऐसा करना कि मुझे करवट | | लिए वेद का ज्ञान, यज्ञ के फल, दान का पुण्य, सब व्यर्थ हो जाते लेकर भीतर लिटा देना, सुल्ताना की तरफ करवट लेकर; सीधा | हैं। वे सब का उल्लंघन कर जाते हैं। मत लिटाना!
वेद के ज्ञान का फिर कोई मूल्य नहीं है उसे, जिसने तत्व से जान बीच में होना बड़ा कठिन है। रस हमारा चुनाव करना चाहता है। लिया। तब वेद सिर्फ तोतारटंत रह जाते हैं। तब वेदपाठी केवल अगर हम परमात्मा को भी चुनते हैं, तो संसार के खिलाफ। लेकिन शब्दों का जानकार रह जाता है, मात्र कोरा पंडित। और कोरे पंडित जो आदमी संसार के खिलाफ परमात्मा को चुनता है, वह परमात्मा | से ज्यादा दयनीय अवस्था इस जगत में किसी की भी नहीं है; को चुनता ही नहीं। क्योंकि परमात्मा को केवल वही चुन सकता है, अज्ञानी की भी नहीं है। जिसने सब चुनाव छोड़ दिए, च्वाइसलेस हो गया, जिसका कोई |
| अज्ञानी के लिए भी उपाय है, पंडित के लिए उपाय भी नहीं चुनाव नहीं है। जो कहता है, संसार भी मेरे लिए परमात्मा है; जो | बचता। क्योंकि अज्ञानी को एक तो विनम्रता होती ही है कि मैं नहीं कहता है, परमात्मा भी मेरे लिए संसार है; अब मुझे कुछ फर्क न | जानता हूं। पंडित को वह विनम्रता भी खो जाती है। पंडित को रहा। जो कहता है, जीवन मुझे मृत्यु है, मृत्यु मुझे जीवन है। जो | | लगता है, मैं जानता तो हूं ही, और जानता बिलकुल नहीं है। कहता है. धन भी मेरे लिए निर्धनता है. और निर्धनता भी मेरे लिए पंडित का अज्ञान और भी अहंकारी अज्ञान हो जाता है। जानता धन है। ऐसा व्यक्ति ही ठीक मध्य में खड़ा होता है। और ऐसे मध्य हुआ, झूठा ही जानता हुआ...। क्योंकि शब्द को जानकर सत्य में खड़े व्यक्ति का नाम ही योग-युक्त है।
कभी जाना नहीं गया है। हां, सत्य को जानकर शब्द में कोई सत्य योग-युक्त का अर्थ है, पूर्ण रूप से संतुलित हो गया जो। जैसे | को खोज लेता है, वह दूसरी बात है। लेकिन सत्य, शब्द को कि तराजू का कांटा बीच में खड़ा हो जाए और दोनों पलड़े बराबर | | जानकर कभी नहीं जाना गया है। सत्य को जानकर शब्द जान लिए हों, जरा भी यहां-वहां झुके हुए नहीं। जब तराजू का कांटा ठीक | जाते हैं। जो तत्व से जान लेता है, अनुभूति से, उसके लिए वेद बीच में होता है, तो योग-युक्त होता है। ऐसे ही जब आपका चित्त परम ज्ञान के आधार हो जाते हैं। लेकिन जो वेद को ही जानता है, ठीक बीच में होता है, तो योग-युक्त होता है।
जो वेद को ही जानता है, वह वैसी स्थिति में होता है। जीवन के समस्त विरोधों में मध्य में खड़े हो जाने का नाम योग मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन एक राह से गुजरता था और है। जीवन की समस्त विपरीतताओं में अचुनाव का नाम योग-युक्त पानी भरने को कुएं पर झुका। भूल-चूक हो गई और कुएं में गिर होना है। और ऐसा जो योग-युक्त है, वही, कृष्ण कहते हैं, मेरी गया। बड़ी देर तक हाथ-पैर मारे, बड़ी देर तक चिल्लाया। और प्राप्ति का अधिकारी है।
तब राह से कोई ग्रामीण, कोई बुद्ध, बिलकुल गंवार निकला। इसे ठीक से खयाल में ले लें।
झांककर उसने नीचे देखा। उसने कहा, अच्छा! अरे! तो तुम हो! परमात्मा को कभी भी संसार के विपरीत लक्ष्य न बनाएं। मोक्ष तो मैं तुम्हें अभी निकाले देता हूं। लेकिन नसरुद्दीन ने कहा कि को कभी भी संसार के विरोध में खड़ा न करें। मोक्ष किसी का भी तुम्हारा बोलना बिलकुल असंस्कृत है। मैं-तू करके अजनबियों से
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