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________________ * तत्वज्ञ-कर्मकांड के पार ४ मुक्ति का आयाम शुरू होता है। बेबूझ हैं, बहुत रहस्यमय हैं। गणित की तरह साफ-सुथरे नहीं हैं, कृष्ण कहते हैं, इस कारण हे अर्जुन, तू सब काल में योग-युक्त | | काव्य की तरह रहस्यमय हैं। तर्क की तरह कटे-बंटे नहीं हैं, प्रेम हो और सदा ही मेरी प्राप्ति के लिए साधन करने वाला हो। की तरह बहुत रहस्यपूर्ण हैं। दोनों हैं एक साथ। और दोनों नहीं हैं। यह बिंदु भी थोड़ा-सा कठिन है। हम सदा ही परमात्मा को योग-युक्त होने का यही अर्थ है। संसार के विपरीत रखते हैं। हम सदा ही मोक्ष को संसार के विपरीत इसलिए हम कृष्ण को महायोगी कह सके। महायोगी कहने का रखते हैं। हम सदा यही सोचते हैं कि संसार को छोड़ना है और | कारण है, और वह कारण यह है कि कृष्ण शायद पहले व्यक्ति हैं, परमात्मा को पाना है। हमारे मन में परमात्मा भी एक अपोजिट है, | | जिन्होंने दोनों अतियों के बीच में-ठीक बीच में खड़े होने की एक विपरीतता है, संसार के विपरीत। जो संसार से ऊब गया, वह | | व्यवस्था दी है। अगर हम ठीक बीच में भी खड़े हों, तो थोड़ा-सा हता है, अब तो मुझे परमात्मा को पाना है। संसार के विपरीत हम मन डांवाडोल होता है। अगर हम बीच में भी खड़े हों, तो हम परमात्मा के वैपरीत्य को खडा करते हैं. एक पोलर अपोजिट की इसीलिए खड़े होना चाहते हैं कि संसार से कैसे मुक्त हो जाएं। तरह। एक आदमी कहता है, अब धन तो बहुत कर लिया, अब | अगर संसार से कैसे मुक्त हो जाएं, यही भीतर लगा हुआ है, तो धर्म करना है। आप थोड़े-से झुके हुए खड़े होंगे, बीच में खड़े नहीं हो सकते हैं। लेकिन परमात्मा विपरीत नहीं है। और जिसका परमात्मा संसार | 1/ मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन की दो पत्नियां थीं। और निश्चित के विपरीत है, उसका परमात्मा सांसारिक ही होगा। और जिसका | | ही, दो पत्नियां जिसकी होती हैं, वह जानता है कि उसकी क्या परमात्मा संसार से उलटा है, उसका परमात्मा संसार के बाहर नहीं | मुसीबत हो सकती है! एक पत्नी में आप हजार का गुणा कर लें, है, विदिन दि पोलर अपोजिट; वह जो विपरीत है, उसके भीतर ही | | दो का नहीं। क्योंकि जब दो पत्नियां होती हैं, तो जोड़ नहीं होता, है। वह भी संसार की एक अति है। | गुणनफल होता है। बड़ी मुसीबत में था और निरंतर यह विवाद था; - इसलिए कृष्ण का जीवन बहुत अदभुत है। कृष्ण का जीवन उन दोनों पत्नियां आमने-सामने पूछ लेती थीं उससे, कि बोलो, हम थोड़े-से जीवन में से एक है, जो संसार के विरोध में नहीं हैं। कृष्ण दोनों में सुंदर कौन है? मुल्ला नसरुद्दीन कहता था, तुम दोनों का जीवन विरागी का जीवन नहीं है, और कृष्ण का जीवन रागी का एक-दूसरे से ज्यादा सुंदर हो! जीवन भी नहीं है। और कृष्ण वहीं खड़े हैं, जहां सब रागी खड़े रहते लेकिन पत्नियों को शक था कि वह किसी की तरफ ज्यादा झुका । हैं। और कृष्ण ऐसे खड़े हैं, जैसे विरागी खड़े रहते हैं। कृष्ण का हुआ होगा ही। दो स्त्रियां मान ही नहीं सकतीं कि उनके बीच में कोई जीवन, दो विपरीत के बीच मध्य की खोज है। इतना मध्यस्थ | | पुरुष खड़ा हो, तो वह जरा-सा कहीं ज्यादा झुका हुआ नहीं होगा। व्यक्ति पृथ्वी पर शायद ठीक दूसरा नहीं हुआ। और ऐसे सौ में निन्यानबे मौके पर यह बात सच भी है। उनका शक हम तो आमतौर से कहेंगे कि अगर कृष्ण शांतिवादी हैं, तो युद्ध काफी दूर तक सही है। हम बीच में खड़े हो ही नहीं सकते। में कदम नहीं रखना चाहिए। और अगर युद्धवादी हैं, तो फिर | । पहली पत्नी की मृत्यु हुई, तो उसने कहा कि जिंदगी में जो हुआ परमात्मा और दिव्यता और ब्रह्म, इनकी बात नहीं करनी चाहिए। | हुआ, लेकिन एक बात का वायदा कर दो कि मरने के बाद दोनों दो में से कुछ एक साफ चुन लो। पलियों की तम कब बनाना और अपनी कब बिलकल ठीक बीच हम तो कहते हैं, अगर कृष्ण कहते हैं, अनासक्ति ही जीवन का | | में बनाना, जस्ट राइट इन दि मिडिल। क्योंकि जिंदगी में जो हुआ सूत्र है, तो यह गोपियों के बीच नृत्य इनकंसिस्टेंट है, असंगत है। हुआ; लेकिन मरने के बाद कयामत तक मैं कब्र में परेशान नहीं यह नहीं चलना चाहिए। यह बंद होना चाहिए। और अगर यह | | होना चाहती कि तुम जरा उस तरफ झुके हुए हो। बिलकुल ठीक गोपियों के बीच नृत्य ही चलना है और यह बांसुरी ही बजनी है, ज्यामिति के हिसाब से, गणित के हिसाब से साफ कर लेना। और यह मोर-मुकुट बांधकर नाचना ही है, तो फिर अनासक्ति और | नसरुद्दीन ने वायदा किया। योग और समाधि और ब्रह्म, इसकी चर्चा बंद कर देनी चाहिए। दो दूसरी पत्नी का भी आग्रह यही था। कभी नसरुद्दीन ने बताया में से कुछ साफ चुन लो। | नहीं। पहली पत्नी का नाम था फातिमा, दूसरी पत्नी का नाम था और कृष्ण कहते हैं, हम चुनेंगे ही नहीं। इसलिए कृष्ण बहुत | सुल्ताना। उसका मन सदा दूसरी की तरफ थोड़ा झुका हुआ था, 159
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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