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* तत्वज्ञ-कर्मकांड के पार
पश्चिम अपना आत्मघात कर लेगा। क्योंकि नीचे उतरने का पता | | परिणाम नहीं है। पश्चिम की नैतिक गिरावट का मूल कारण है, चल जाए और ऊपर चढ़ने का पता न हो और ऐसा अनुभव में आने | | पश्चिम ने दक्षिणायण, नीचे की तरफ उतरने वाली पद्धति और मार्ग लगे कि नीचे उतरना ही स्वाभाविक है, तो मनुष्य जाति की सारी | | को तो खोज लिया है; और ऊपर की तरफ जाने वाली पद्धति को संभावनाएं विलुप्त हो जाएंगी।
खोजने की पहली किरण भी पश्चिम में अभी नहीं उतरी है। पश्चिम में आज जो हमें नैतिक ह्रास और आध्यात्मिक पतन लेकिन पश्चिम के विचारशील मनुष्यों को संदेह पैदा हो गया दिखाई पड़ता है, उसका वास्तविक कारण पश्चिम का भौतिकवाद है। यदि मन के नीचे पर्ते हो सकती हैं, तो मन के ऊपर भी पर्ते हो नहीं है, मैटीरियलिज्म नहीं है। वस्तुतः तो जब कोई समाज बहुत | सकती हैं। कल तक, केवल साठ-सत्तर वर्ष पहले तक पश्चिम का भौतिक हो जाता है, तो वहां आध्यात्मिक जागृति शुरू होती है। | कोई विचारक मानने को राजी नहीं था कि जो मन हम जानते हैं; क्योंकि जैसे ही भौतिक सुविधाएं उपलब्ध होती हैं, उन सुविधाओं | इसके अलावा भी कोई मन हो सकता है। लेकिन नीचे उतरकर की व्यर्थता भी दिखाई पड़नी शुरू हो जाती है। जैसे ही धन मिलता | पश्चिम को अनुभव में आया है कि बहुत अंधेरी पर्ते मनुष्य की हैं, है, धन की सार्थकता खो जाती है। और जैसे ही हम सब कुछ पा | वे भी हैं। और वे ज्यादा शक्तिशाली हैं और मनुष्य की गर्दन उनके लेते हैं वस्तुओं के जगत में, वैसे ही पता चलता है कि आत्मा | हाथों में है। अगर इतना ही अनुभव हमारा रहा...। वस्तुओं से घिर गई है, लेकिन आत्मा बिलकुल खाली, रिक्त और __ और पश्चिम का विचार पूरब पर भी छाता चला जा रहा है। अर्थहीन हो गई है। भौतिकवाद तो अध्यात्म के लिए बड़ी गहरी | | आज पूरब का विचारशील, शिक्षित, सुसंस्कृत व्यक्ति भी पूरब का स्फुरणा बन जाती है।
मनुष्य नहीं है। वह भी पश्चिम की पैदावार है, वह भी पश्चिम की इसलिए जब भी कोई समाज भौतिक रूप से समृद्ध होता है, तो | | ही बाइप्रोडक्ट है। पूरब के विश्वविद्यालय, पूरब के शिक्षाशास्त्री उसका अंतिम शिखर आध्यात्मिक होता है। गरीब समाज | | पूरब के संबंध में शायद ही कुछ जानते हैं। वे जो भी जानते हैं, सब आध्यात्मिक होने में बड़ी कठिनाई अनुभव करता है। क्योंकि गरीब | पश्चिम से आया हुआ, निर्यात किया हुआ है। और वह भी सेकेंड को अनासक्त होना अति कठिन मालूम पड़ता है। जिसके पास हैंड, वह भी बासा। क्योंकि पश्चिम में जो बीस-तीस साल पुराना छोड़ने को कुछ नहीं है, निश्चित ही उसे छोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है—उसके पूरब में आते-आते इतना वक्त लग जाता मालूम पड़ता है। और जिसके पास है ही नहीं, उसकी अनासक्ति है-जब वह वहां आउट आफ डेट हो जाता है, फिंक जाता है का कोई बहुतं मूल्य भी नहीं मालूम होता। और जिसके पास कुछ कचरे में, तब यहां के विश्वविद्यालय उसे अपनी टेक्स्ट बुक्स में भी नहीं है, उसकी अनासक्ति बहुत गहरे में संतोष होती है, रखना शुरू करते हैं। कंसोलेशन होती है। लेकिन जिसके पास है, उसकी अनासक्ति | यह स्वाभाविक है। जो भी लोग उधार जीते हैं, उन्हें इतना पीछे केवल संतोष और कंसोलेशन, सांत्वना नहीं होती; उसकी | | जीना ही पड़ेगा। पश्चिम की टेबल से जो भोजन नीचे गिरा दिए अनासक्ति एक आंतरिक उपलब्धि होती है।
जाते हैं, वे पूरब के भिक्षापात्र में गिर जाते हैं। पश्चिम जिन बातों इसका यह अर्थ नहीं है कि गरीब आदमी अध्यात्म को उपलब्ध को व्यर्थ मानकर छोड़ देता है, जब तक वह व्यर्थ मान पाता है, तब नहीं हो सकता। गरीब व्यक्ति तो उपलब्ध हो सकता है, गरीब तक हम उनको समझकर सार्थक मानने की स्थिति में आ पाते हैं। समाज उपलब्ध नहीं हो पाता। गरीब व्यक्ति, व्यक्तिगत बात है। । पश्चिम के फ्रायड और जुंग की खोजों ने मनुष्य के नीचे उतरने लेकिन यह गरीब व्यक्ति भी अपने अन्य जन्मों में धन को जाना हो, की सीढियां तो बहत साफ कर दी. लेकिन बहत खतरनाक स्थिति तो ही इस जन्म में धन से मुक्त हो सकता है। हम जो जान लेते हैं, हो गई है। इस नीचे के मन को जानकर ऐसा लगना शरू हआ उसी से मुक्त होते हैं। ज्ञान के अतिरिक्त मुक्ति का कोई भी उपाय | पश्चिम के मनसविद को कि आदमी का नीचे उतरना बिलकुल ही नहीं है।
| स्वाभाविक है और आदमी के चेतन मन की कोई भी सामर्थ्य नहीं लेकिन धनी समाज पूरा का पूरा धन से, वस्तुओं से, पदार्थ से | | है। अचेतन शक्तिशाली है और अचेतन के हाथों में जीना ही स्वस्थ गहरी विरक्ति से भर जाता है।
| होने का उपाय है। और जो व्यक्ति अपने अचेतन से लड़ेगा, वह पश्चिम का पतन, पश्चिम की नैतिक गिरावट, भौतिकवाद का विक्षिप्त होगा, परवर्ट होगा, विकृत होगा, रुग्ण हो जाएगा।
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