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________________ गीता दर्शन भाग-4 * नैते सूती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन । तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ।। २७ ।। वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् । अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् ।। २८ । । और हे पार्थ, इस प्रकार इन दोनों मार्गों को तत्व से जानता हुआ, कोई भी योगी मोहित नहीं होता है। इस कारण है अर्जुन, तू सब काल में योग से युक्त हो अर्थात निरंतर मेरी प्राप्ति के लिए साधन करने वाला हो । क्योंकि योगी पुरुष इस रहस्य को तत्व से जानकर, वेदों के पढ़ने में तथा यज्ञ, तप और दानादि के करने में जो पुण्यफल कहा है, उस सब को निस्संदेह उल्लंघन कर जाता है और सनातन परम पद को प्राप्त होता है। Я भु की खोज में, परम सत्य की खोज में दो मार्गों की बात हमने समझी। उस संबंध में दो-तीन बातें और भी खयाल में ले लेनी जरूरी हैं। और तब आसान होगा आज के इस अक्षर ब्रह्म योग अध्याय के अंतिम दो सूत्रों को समझने में इधर सिग्मंड फ्रायड ने विगत आधी सदी में शायद गहनतम प्रभाव आदमी के मस्तिष्क पर छोड़ा है। सिग्मंड फ्रायड इधर तीन सौ वर्षों में तीन बड़े नामों में से एक है। एक व्यक्ति है गैलीलियो, दूसरा व्यक्ति है चार्ल्स डार्विन और तीसरा व्यक्ति है सिग्मंड फ्रायड । इन तीन व्यक्तियों ने मनुष्य की चेतना और मनुष्य के जीवन को आमूल बदलने की दृष्टि दी है। सिग्मंड फ्रायड की जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण खोज है, वह खोज है, डिस्कवरी आफ दि अनकांशस, आदमी के भीतर जो अचेतन है, उसकी खोज । आदमी का मन, जैसा हम जानते हैं उसे, वह केवल ऊपर की पर्त है, चेतन मन, कांशस माइंड है। उससे गहरी पर्त, उससे नीचे दबा हुआ मन, जो कि ज्यादा महत्वपूर्ण, ज्यादा प्रभावशाली और जड़ों में छिपा है, और जिससे हम चालित होते हैं। जीवनभर, जिससे हम चलते, उठते बैठते और काम करते हैं, वह गहरा मन अनकांशस है, अचेतन है । फ्रायड ने उस अचेतन के महाद्वीप को खोजा है। यह खोज बड़ी आकस्मिक थी । फ्रायड ऐसे तो खोज कर रहा था काम - विकारों के संबंध में, सेक्स परवरशंस के संबंध में आदमी के चित्त में जितनी विक्षिप्तताएं पैदा होती हैं, उनमें से कोई नब्बे प्रतिशत उसकी कामवासना की विकृतियां हैं। तो फ्रायड तो चिकित्सक की भांति, आदमी के काम-विकार क्यों पैदा होते हैं, | इसकी खोज में लगा था। इस खोज में उतरते-उतरते अचानक ही उसे मनुष्य के मन के नीचे छिपे हुए मन का पता चला। वह मन इस मन से बहुत बड़ा है, जिसे हम समझते हैं, मैं हूं। जैसे कि हम एक बर्फ की चट्टान पानी में डाल दें, तो नौ हिस्सा चट्टान नीचे डूब जाती है, एक हिस्सा ऊपर रहती है। फ्रायड ने अनुभव किया कि जिस मन को हम अपना सब कुछ समझकर बैठे हुए हैं, वह एक हिस्सा है, और नौ हिस्सा हमारा असली मन नीचे अंधेरे में डूबा हुआ है। फ्रायड के शिष्य और बाद में फ्रायड से अलग और विरोध में हो गए कार्ल गुस्ताव जुंग ने इस अनकांशस, इस अचेतन मन की और भी गहरी खोज की। और उसे पता चला कि अचेतन के नीचे और भी गहरा अचेतन छिपा है, जिसे उसने कलेक्टिव अनकांशस, | समूह - अचेतन का नाम दिया। उसने कहा कि व्यक्ति के मन के नीचे एक मन है, जो अचेतन है । अचेतन के नीचे भी और गहरा मन मालूम पड़ता है, जो कि समूह अचेतन है । सबका अचेतन जुड़ा हुआ है। 154 यह मैं इसलिए कह रहा हूं, ताकि आपको दक्षिणायण की पूरी की पूरी धारणा वैज्ञानिक रूप से समझ में आ जाए। फ्रायड और जुंग जो काम किए हैं, वह दक्षिणायण के पथ पर है। अगर हम मनुष्य के अचेतन में प्रवेश करेंगे, तो हम नीचे उतरते जाते हैं। लेकिन मनुष्य के अचेतन की भांति ही मनुष्य का अति-चेतन, सुपर-कांशस माइंड भी है। यदि हम ऊपर की तरफ यात्रा करें, तो सुपर-कांशस, अति- चेतन मन की यात्रा शुरू होती है। अब हम ऐसा समझ लें कि जिस मन से हम परिचित हैं, वह मन है चेतन; उससे नीचे उतरें, तो अचेतन; और भी नीचे उतरें, तो समूह - अचेतन। ऊपर बढ़ें, तो अति- चेतन; और ऊपर बढ़ें, तो ब्रह्म-चेतन । उत्तरायण का पथ अभी भी वैज्ञानिक रूप से आविष्कृत नहीं हुआ है। दक्षिणायण का पथ वैज्ञानिक रूप से भी आविष्कृत हो गया है । और अगर दक्षिणायण का पथ ही आविष्कृत रहा, तो "
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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