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________________ * गीता दर्शन भाग-4 संकल्प मौजूद है, कमजोर, दीन-हीन, कुटा-पिटा, लेकिन मौजूद | | इटरनल है, शाश्वत है; वहां से कोई छूट नहीं सकता। है। मोक्ष मिलता है संकल्प के विसर्जन से, संकल्प के पूर्ण विसर्जन | ___बड रसेल ने अपने एक वक्तव्य में कहा है कि ईसाइयों की यह से, संकल्प के समर्पण से, सरेंडर से। | बात मुझे बहुत अनजस्टीफाइड मालूम होती है, बहुत न्यायपूर्ण नहीं तीन बातें। संकल्प हो पूरा, तो आदमी दक्षिणायण के पथ पर मालूम होती, अन्यायपूर्ण मालूम होती है। क्योंकि मैंने कितने ही विकसित हो जाता है। संकल्प न हो पूरा, तो आदमी प्रकृति के मार्ग | | पाप किए हों, लेकिन मेरे कितने ही पापों की कितनी ही बड़ी संख्या पर ही भटकता रहता है। अगर संकल्प बहुत कमजोर हो, तो हो, तो भी मुझे सदा के लिए नरक में डालना न्यायपूर्ण नहीं हो भटकता है, भटकता है, नर्क बना लेता है। संकल्प मजबूत हो, तो सकता। मैंने जितने पाप किए हैं, उस अनुपात में मुझे नरक में डाला स्वर्ग निर्मित कर लेता है। लेकिन स्वर्ग से भी वापसी है, नर्क से | जाना चाहिए। भी वापसी है। और रसेल ने कहा है कि मैंने जितने पाप किए, अगर उनको इसलिए कृष्ण कहते हैं, इस मार्ग को गया हुआ व्यक्ति भी अपने जोड़ लूं; और जो मैंने नहीं किए और सिर्फ सोचे, करना चाहता कर्मों के फल को भोगकर वापस लौट आता है। क्योंकि जगत के था, नहीं कर पाया, उनको भी जोड़ लूं और सबको प्रकट कर दूं, ये दो प्रकार, शुक्ल और कृष्ण अर्थात देवयान और पितृयान की तो इस जमीन पर सख्त से सख्त कानून की व्यवस्था भी मुझे गति अर्थात मार्ग सनातन माने गए हैं। इनमें एक के द्वारा गया हुआ चार-पांच साल से ज्यादा की कैद नहीं दे सकती। पीछे न आने वाली गति को प्राप्त होता है; और दूसरे के द्वारा गया | | आदमी भला था। और वह ठीक कह रहा है। चार-पांच साल हुआ पीछे आता है अर्थात जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है। | भी ज्यादा कह रहा है; इतनी भी सजा उसको नहीं दी जा सकती। संक्षिप्त में, एक है हमारे कर्मों की उपलब्धि, हमारे किए हुए का | | तो रसेल का कहना ठीक है कि जब मैं कहता हूं कि मेरे सारे पापों फल। बुरा होगा तो बुरा मिल जाएगा, भला होगा तो भला मिल | | का हिसाब लगा लिया जाए, जो मैंने किए; और जो मैंने सोचे, वे जाएगा, लेकिन है हमारे कर्मों का किया हुआ। जो हम कर्म से करते | | भी जोड़ लिए जाएं; तो भी सख्त से सख्त कानून मुझे पांच साल का हैं, वह चुक जाएगा। कठोर दंड दे सकता है। तो मुझे शाश्वत, सदा के लिए, इटरनली हमारा किया हुआ शाश्वत नहीं हो सकता। कितनी ही बड़ी नरक में डालने वाली ईसाइयत अन्यायपूर्ण मालूम पड़ती है। . संपदा हो, चुक जाएगी। कितने ही बड़े पुण्य हों, खर्च हो जाएंगे, बर्टेड रसेल को कोई ईसाई जवाब नहीं दे सका, क्योंकि रसेल भोग लिए जाएंगे। कितना ही बड़ा सुख हो, रिक्त हो जाएगा। आदमी बहुत पुण्यात्मा था। अच्छे से अच्छे, भले से भले लोगों सागर भी बूंद-बूंद गिरकर रिक्त हो सकता है। क्योंकि सागर भी में एक था। जिनको हम शुभ और नैतिक से नैतिक व्यक्ति कहें, बूंद-बूंद गिरकर ही भरता है। कितना ही महापुण्य हो, कितना ही परम नैतिक, वैसा व्यक्ति था। तो ऐसे व्यक्ति को ईसाइयत जवाब दूर-दूर, वर्षों-वर्षों, जन्मों-जन्मों तक चलने वाला सुख हो, चुक न दे पाई। ही जाता है। और चुककर हम वापस रिक्त, दीन-हीन, वहीं खड़े। बात तो साफ दिखाई पड़ती है। हिटलर को भी अगर नर्क में हो जाते हैं, जहां से हमने एक दिन संकल्प करके उसे कमाया था। डालना हो, तो भी सदा के लिए डालना अन्यायपूर्ण मालूम पड़ेगा। कर्म शाश्वत को नहीं देते, कर्म नित्य को नहीं देते। कर्म जो भी देते | कितना ही पाप हो, आखिर एक अनुपात है, उस अनुपात में दंड हैं, वह क्षणिक है। वह क्षण कितना ही लंबा हो सकता है। | मिलना चाहिए। लेकिन ईसाइयत जवाब नहीं दे पाई, क्योंकि और एक मजे की बात है कि स्वर्ग कितना ही लंबा हो, क्षणिक | ईसाइयत को काल का जो रहस्य है, उसका स्पष्टीकरण नहीं है। से ज्यादा कभी नहीं होता। यह थोड़ा कठिन लगेगा। वही काल का । जब मैंने रसेल का यह वक्तव्य पढ़ा, तो रसेल मर चुका था। रहस्य फिर थोड़ा खयाल में लेना पड़ेगा। स्वर्ग कितना ही लंबा हो, | | जिंदा होता, तो मैं उससे कहना चाहता कि नर्क चाहे क्षणभर के लिए क्षण से ज्यादा नहीं मालूम पड़ता। क्योंकि जितना ज्यादा सुख हो, | | मिले, इटरनल मालूम पड़ता है। चाहे क्षणभर के लिए कोई नर्क में उतना ही समय छोटा मालूम पड़ता है। जाए, तो ऐसा लगता है, अब इसका अंत कभी नहीं होगा। मैंने पीछे कहा आपको कि सुख ज्यादा हो, समय छोटा हो जाता। नरक शाश्वत नहीं है, लेकिन नरक की प्रतीति सभी को शाश्वत है। दुख ज्यादा हो, समय लंबा हो जाता है। ईसाई कहते हैं कि नर्क | जैसी मालूम पड़ती है। और स्वर्ग भी क्षणिक नहीं, लेकिन स्वर्ग की 150
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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