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* दक्षिणायण के जटिल भटकाव *
प्रतीति सभी को क्षणिक जैसी मालूम पड़ती है। क्योंकि सुख समय को छोटा कर देता है, दुख समय को लंबा कर देता है। और नर्क का अर्थ है, परम दुख, तो समय बहुत लंबा हो जाएगा, ओर-छोर दिखाई नहीं पड़ेंगे। और स्वर्ग का अर्थ है, परम सुख, समय | बिलकुल सिकुड़ जाएगा और क्षण में स्वर्ग बीत जाएगा।
पर आदमी के किए हुए कर्म सभी चुक जाते हैं। क्या ऐसा भी कुछ है आदमी के जीवन में, जो उसके कर्म से नहीं मिलता? जो उसका किया हुआ नहीं है? अगर ऐसा कुछ है, तो आदमी उससे कभी वापस नहीं लौटेगा।
इसलिए संकल्प के मार्ग से गया हुआ व्यक्ति वापस लौट आएगा, क्योंकि संकल्प है आदमी का कर्म।
समर्पण के मार्ग से गया हुआ व्यक्ति कभी वापस नहीं लौटेगा, क्योंकि समर्पण के मार्ग पर जो घटना घटती है, वह व्यक्ति के कर्म का फल नहीं, व्यक्ति के समर्पण का फल है। और समर्पण कर्म नहीं है, समस्त कर्मों का विसर्जन है। असल में समर्पण से जो उपलब्ध होता है, वह प्रभु-प्रसाद है, वह ग्रेस है, वह अनुकंपा है। संकल्प से जो मिलता है, वह मेरी उपलब्धि है। समर्पण से जो मिलता है, वह मैं मिट जाता हूं, तब मिलता है; वह मेरी उपलब्धि नहीं है, वह मेरे खो जाने की उपलब्धि है।
जीसस ने कहा है, जो अपने को बचाएंगे, वे खो देंगे; और जो अपने को खो देते हैं, वे सदा के लिए अपने को बचा लेते हैं।
आज इतना ही।
लेकिन जाएंगे नहीं। इस चांद की रात में पांच मिनट हम कीर्तन करेंगे। और फिर जाएंगे। अपनी जगह पर बैठे रहें। उठकर आगे आने की कोशिश न करें। अब तो चांद में हम सब दिखाई भी पड़ने लगे हैं। थोड़ा उत्तरायण शुरू हुआ। थोड़े अपनी जगह बैठे रहें। हमारे संन्यासी तो खड़े होंगे, वे कीर्तन करेंगे। आप भी साथ दें। और फिर हम विदा होंगे।
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