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________________ ६ दक्षिणायण के जटिल भटकाव में कही गई बात है। और तय करना सदा मुश्किल है। सदा मुश्किल मित्र बिलकुल निर्णीत होकर आए और कहा कि वह आदमी बहुत है कि यह घोषणा जो की जा रही है, कहां से की जा रही है? घोषणा बड़ा महात्मा है! बिलकुल एक जैसी है। और निर्भर करता है इस बात पर कि | मैंने कहा, तुम्हें कैसे पता चला? उन्होंने कहा कि जब मैं गया, आस-पास जो लोग इकट्ठे हैं, वे किस तरह के हैं, उनका | तो उन महात्मा ने कहा, मैं तो आपके पैरों की धूल हूं। इससे पता इंटरप्रिटेशन! चला तुम्हें! अगर तुम इतने समझदार हो, तो वह महात्मा भी तुमसे अधिक लोग तो अमावस की रात की तरफ चलते हुए लोग हैं। | तो थोड़ा-बहुत ज्यादा समझदार होगा ही। अगर वह महात्मा कहता अधिक लोग तो अंधेरे पक्ष की तरफ बढ़ते हुए लोग हैं। अधिक | है कि हां, मैं बहुत बड़ा महात्मा हूं, तो तुम क्या खयाल लेकर लोग तो नीचे गिरते हुए लोग हैं, ऊपर उठते हुए नहीं। इसलिए यह | लौटते? उन्होंने कहा, तब मैं पक्का मानकर लौटता कि यह आदमी स्वाभाविक है कि उनकी व्याख्या नीचे ही गिरने की व्याख्या हो। बेईमान है। और जब वे जीसस या मंसूर के मुंह से सुनें कि मैं ही ब्रह्म हूं, तो तो मैंने कहा, जब तुम जानते हो ट्रिक, तो वह भी जानता होगा। वे समझें कि यह आदमी अहंकारी है। हम अहंकारी कुछ और | इतनी-सी ट्रिक है कि तुम्हारे सामने अगर महात्मा सिद्ध होना हो, समझ भी कैसे सकते हैं! हम अहंकारी हैं, इसलिए हम अहंकार | | तो कहना चाहिए कि मैं तुम्हारे चरणों की धूल हूं। और अगर की ही भाषा समझ पाते हैं। | महात्मा सिद्ध न होना हो, तो घोषणा कर देनी चाहिए कि मैं महात्मा और अगर कोई निरहंकारी भी बोले-और बोले तो अहंकार | | हूं। इतनी सरल-सी बात तुम्हें पता है, उसे पता न होगी! तुम फिर की भाषा बोलनी पड़ती है, क्योंकि और कोई भाषा नहीं है तो से जाओ। हम समझते हैं कि वही बात फिर हुई जा रही है। यह आदमी कह मुश्किल है। क्योंकि भाषा जो हम समझते हैं, हम समझते हैं। रहा है कि मैं ब्रह्म हूं। यह आदमी अहंकार की भाषा बोल रहा है, | | और हमारी समझ, समझ ही कहां है! और अहंकार तो बड़ा पाप है। और मजा यह है कि हम सब | | जैसे-जैसे अंधेरे की तरफ, नीचे की तरफ बढ़ेगी चेतना, ऊर्जा, अहंकारी हैं और हम कभी भी नहीं सोचते कि कहीं भूल तो नहीं हुई | | वैसे-वैसे पर का बोध खोता जाएगा। दि कांशसनेस आफ दि जा रही। हमारे अहंकार तो कहीं व्याख्या में बाधा नहीं डाल रहे? अदर, दूसरे का जो होश है हमें, वह विलीन हो जाएगा। एक घड़ी अगर कृष्ण भी आकर हमारे बीच खड़े होकर कहें कि मैं ब्रह्म | आएगी, जब मुझे सिर्फ मेरा ही होश रह जाएगा। एक घड़ी आएगी, हूं, तो हम कहेंगे, यह आदमी अहंकारी है। क्राइस्ट भी कहें कि मैं | जब मुझे मेरा ही होश रह जाएगा, मैं ही रह जाऊंगा। सारा जगत ईश्वर का पुत्र हूं, तो हम कहेंगे, यह अहंकारी है। हमने ही कहा है | बंद और मैं एक अलग जगत, अपने भीतर हो जाऊंगा। युग-युग में, और हमने ही इन सारे लोगों को सूलियां और फांसियां लीबनिज ने मोनोड की बात की है। लीबनिज ने कहा है कि दे दी हैं। | प्रत्येक आदमी एक मोनोड है। मोनोड का अर्थ होता है, ऐसा हम तो उस महात्मा को मानते हैं, जो हमारे पैरों पर सिर रख दे | | मकान, जिसमें द्वार-दरवाजे नहीं हैं। और कहे कि मैं तो कुछ भी नहीं हूं। तब हमारा चित्त बड़ा प्रसन्न पता नहीं, हर आदमी मोनोड है या नहीं, लेकिन जब कोई होता है कि यह है महात्मा! लेकिन इसके महात्मा होने का कारण | अमावस की स्थिति में पहुंचता है, तो आदमी मोनोड हो जाता है। क्या है? इसके महात्मा होने का कारण यह है कि आपके चरणों पर | मोनोड, विंडोलेस, डोरलेस हाउस, कोई द्वार-दरवाजा नहीं। सब इसने सिर रखा और आपके अहंकार की गहरी खुशामद की। | बंद हो गए द्वार-दरवाजे; मैं अपनी गुहा में भीतर कैद हो गया। मैं एक मेरे मित्र मुझसे कहते थे कि एक बहुत बड़े महात्मा के वे | ही जगत हूं वहां, मैं ही परमात्मा हूं वहां। मैं ही हूं, और कुछ भी पास गए। उन महात्मा के शिष्य उनको बड़ा महात्मा बताते हैं। तो नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं जरा परीक्षा करूं। वे गए महात्मा के पास, उन्होंने लेकिन इस यात्रा में भी बड़ी साधना करनी पड़ती है संकल्प की। जाकर उनसे पूछा कि आपके शिष्य आपको बहुत बड़ा महात्मा | अब इसे और ठीक से समझ लें। बताते हैं, क्या आप भी अपने को बहुत बड़ा महात्मा मानते हैं? उन | | जो उत्तरायण में जाते हैं, उनकी साधना है समर्पण की, सरेंडर महात्मा ने कहा, मैं तो तुच्छ आदमी हूं, आपके पैरों की धूल हूं। वे की। जो दक्षिणायण में जाते हैं, उनकी साधना है संकल्प की, विल
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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