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*दक्षिणायण के जटिल भटकाव *
लेकिन वह निर्विचार अवस्था नहीं है, क्योंकि निर्विचार के साथ | अनुभव होगा अहंकार का। लेकिन जैसे ही अग्नि ज्योति बनेगी, तो आंखें ऐसी स्वच्छ हो जाती हैं, जैसी कोई झील कभी नहीं होती।। | वैसे ही अहंकार विरल हो जाएगा। और जैसे ही ज्योति दिन बनेगी, निर्विचार के साथ तो आंखें इतनी गहरी हो जाती हैं, अतल, जैसे | | | वैसे ही अहंकार बिलकुल बिखरा-बिखरा हो जाएगा। और जब किसी खाई में हम गिरते चले जाएं और कोई तल ही न मिले। । | दिन भी शीतल शुक्ल पक्ष बनने लगेगा, तो उधर चांद बड़ा होने
लेकिन नहीं; उनकी आंख तो बिलकुल ऐसी दिखाई पड़ती है, लगेगा और इधर अहंकार क्रमशः क्षीण होने लगेगा। जिस दिन जैसे ऊपर की पर्त भर ही हो, भीतर कुछ भी न हो। सब पूर्णिमा का चांद होगा, उस दिन अहंकार शून्य हो जाएगा। संवेदनशील तंतु सिकुड़कर सख्त हो गए हैं। लेकिन फिर भी यह | लेकिन नीचे की यात्रा पर, दक्षिणायण के पथ पर अहंकार आदमी संकल्पवान है। और जो आदमी वर्षों से कांटों पर लेटा | | महत्वपूर्ण नहीं मालूम पड़ेगा; महत्वपूर्ण मालूम पड़ेगा, पर का हुआ है, उसकी काम ऊर्जा इकट्ठी हो जाती है।
बोध कम होता चला जाएगा। जितना अंधेरा बढ़ेगा, धुआं आएगा असल में कोई भी संकल्पवान व्यक्ति अगर संकल्प ही कर ले, | बीच में, तो दूसरे धुंधले दिखाई पड़ने लगेंगे। पत्नी धुंधली हो किसी भी भांति का संकल्प कर ले, तो सबसे पहला परिणाम यह | जाएगी, पुत्र धुंधले हो जाएंगे, धन-संपत्ति धुंधली हो जाएगी। छूट होता है कि उसकी काम ऊर्जा बहनी बंद हो जाती है। क्योंकि जो | नहीं जाएगी, धुंधली हो जाएगी। बीच में धुएं की एक पर्त आ व्यक्ति वर्षों खड़ा रह सकता है, जो व्यक्ति वर्षों कांटों पर लेटा रह | जाएगी। और आदमी अपने भीतर सिकुड़ने लगेगा। और जितना सकता है, जो वर्षों नग्न बर्फ पर बैठा रह सकता है, ऐसे व्यक्ति | भीतर सिकुड़ेगा, उतना ही अहंकार सख्त और ठोस और को कामवासना हिला नहीं सकती। कामवासना इकट्ठी हो जाएगी, | | क्रिस्टलाइज्ड होने लगेगा। लेकिन नष्ट नहीं हो जाएगी, तिरोहित नहीं हो जाएगी। इकट्ठी होकर | रात्रि जब गहन हो जाएगी, अंधकार काफी हो जाएगा, धुआं नीचे की तरफ भीतर ही प्रवाह शुरू हो जाएगा।
सघन हो जाएगा, तो दूसरे दिखाई पड़ने बंद हो जाएंगे। उनसे सिर्फ इस भीतर के प्रवाह पर पहला अनुभव धुएं का होगा। धुएं का | | टकराहट होगी, दिखाई नहीं पड़ेंगे। कभी-कभी टकराहट होगी, तो अर्थ है, भीतर एक क्लैरिटी का, स्वच्छता का खो जाना। दूसरा | | मालूम पड़ेगा, दूसरा है। लेकिन दूसरे का बोध क्रमशः कम होने अनुभव अंधकार का होगा। भीतर गहन, निबिड़ रात्रि का छा जाना, | लगेगा, जड़ता घनी होने लगेगी। आदमी चारों तरफ एक परकोटे जहां कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। कोई परवस्तु दिखाई नहीं पड़ती।। | से घिर जाएगा अंधकार के। लेकिन अभी भी दूसरे की टकराहट स्वयं का थोड़ा-सा बोध शेष रह जाता है।
का पता चलेगा। जैसे आप गहरे से गहरे अंधेरे में भी हों, तो कुछ और दिखाई और फिर आता है कृष्ण पक्ष, अंधेरी रातों का बढ़ता हुआ क्रम, नहीं पड़ता, लेकिन इतना तो पता चलता ही रहता है कि मैं हूं। | अमावस की तरफ यात्रा। फिर रोज-रोज रात भी और अंधेरी होने अंधेरी से अंधेरी रात में, अमावस में भी इतना तो पता चलता ही लगती है। और चांद की रोशनी रोज-रोज कम, और चांद रोज-रोज रहता है
ता है कि मैं हूं। सब दिखाई पड़ना बंद हो जाता है। घर नहीं घटने लगता है। अंधेरी रात रोज-रोज बढ़ने लगेगी। दिखाई पड़ता, मित्र-प्रियजन नहीं दिखाई पड़ते, वस्तुएं नहीं दिखाई | __जिस मात्रा में, जैसा मैंने कहा, शुक्ल पक्ष के पंद्रह क्रम होंगे, पड़तीं, पर मैं हूं इतना स्मरण बना रहता है। रात्रि जितनी गहन हो | | वैसे ही कृष्ण पक्ष के भी पंद्रह खंड होंगे और रोज-रोज अंधकार जाएगी, उतना ही पर का बोध खोता चला जाएगा।
गहन होगा। जिस मात्रा में अंधकार गहन होगा, उसी मात्रा में पर, अब यह बहुत मजे का, यह समानांतर विचार ठीक से समझ | संसार भूलने लगेगा। मिटने नहीं लगेगा, भूलने लगेगा। और इसी लें। जितने आप ऊपर बढ़ेंगे, उतना स्व का बोध कम होता चला | | से भ्रम पैदा होता है कि जो अब भूलने लगा, वह शायद मिट गया। जाएगा। और जितने आप नीचे उतरेंगे, उतना पर का बोध कम होता | ___ इसलिए शुक्ल पक्ष के यात्री की तरह से कृष्ण पक्ष का यात्री चला जाएगा। जितना उत्तरायण के मार्ग पर आगे जाएंगे, स्व का सोच सकता है कि मैं भी उसी मार्ग पर चल रहा हूं। वह अर्थ ले बोध विसर्जित होता चला जाएगा।
सकता है कि अब मुझे संसार नहीं दिखाई पड़ता, तो मैं मुक्त हो अग्नि जब तक है, तब तक स्व का सघन बोध होगा, जलन से | गया हूं! भरा हुआ बोध होगा। दि ईगो विल बी फेल्ट टू मच। बहुत गहन | __ लेकिन जब तक अहंकार भीतर है, संसार से कोई मुक्त नहीं
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