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की बोधकथा-संन्यास के लिए सोचा, कि चूका / वर्तमान के क्षण में समस्त रहस्यों का उदघाटन / वर्तमान में होना-धर्म का सार-सांख्य है-तत्काल संबोधि का.मार्ग / कृष्णमूर्ति के श्रोताओं की कठिनाई / सांख्य परम योग है । कुछ भी पाने की आकांक्षा बाधा है / सांख्य का पूर्व-आधार-जन्मों-जन्मों की साधना / मोक्ष की वासना भी पुनर्जन्म का कारण / न तो दुख चाहिए-न सुख / दो मार्ग-उत्तरायण और दक्षिणायण / अंतर्जगत की अभिव्यक्ति के लिए प्रतीकों का उपयोग जरूरी / ध्यान में संभोग जैसा अनुभव / जीवन ऊर्जा का प्रतीकः सूर्य / जीव-ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन-उत्तरायण पथ / जीव-ऊर्जा का अधोगमन-दक्षिणायन पथ / ऊर्ध्वरेतस के पैर ठंडे और सिर गरम / बीमार व्यक्ति के भी पैर ठंडे / शीर्षासन का थोड़ा-सा उपयोग / उम्र का आधा-आधा हिस्सा–दक्षिणायण और उत्तरायण / उत्तरायण-वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम / जीवन ऊर्जा के चार चरण-अग्नि, ज्योति, दिन का प्रकाश, चंद्रमा का प्रकाश / प्रथम चरण में सेक्स सेंटर पर अग्नि का इकट्ठा होना / धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा / तीसरे चरण में ऊब का खतरा / चौथी अवस्था में धीरे-धीरे चांद-सा प्रकाश बढ़ना / पूर्णिमा की अंतर्भावस्था में मृत्यु-तो बुद्धत्व की पूर्णता / काम केंद्र के ऊपर के छह चक्र—उत्तरायण के छह माह / बुद्ध और महावीर का संबोधि के बाद चालीस साल जीवित रहना / निर्वाण-और फिर महापरिनिर्वाण / निर्वाण के बाद भीतर कोई समय नहीं होता / पूर्व अर्जित त्वरा से शरीर का चलना / पैंतीस वर्ष की उम्र के बाद संबोधि-तो लंबी उम्र आसान / शंकराचार्य
और जीसस की अल्पायु में मृत्यु / रामकृष्ण का जीने के लिए बड़ा प्रयास करना / भोजन में रुचि न रहे तो तीन दिन बाद रामकृष्ण की मृत्यु / फिर वापसी नहीं।
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दक्षिणायण के जटिल भटकाव ... 137
दक्षिणायण पथ का साधक-ज्यादा से ज्यादा स्वर्ग तक / फल समाप्ति पर पृथ्वी पर वापसी / काम-ऊर्जा का दमित अंतर्गमन / काम केंद्र के नीचे भी छह चक्र / मैली-विद्या-ब्लैक मैजिक / सुख की आकांक्षा ले जाएगी स्वर्ग तक–मोक्ष तक नहीं / सुख भी एक तनाव है, उत्तेजना है / सुख भी उबाता है | दुखी समाज में ऊब कम / संपन्नता में भविष्य में सुख की आशा भी समाप्त / सुख-दुख दोनों से मुक्ति की आकांक्षा-उत्तरायण पथ / सभी अनुभव बंधन हैं / रवींद्रनाथ की बोधकथा-परमात्मा के द्वार से लौट भागना / लोग सुख चाहते हैं—मुक्ति नहीं / शत्रुओं को भी खोकर खालीपन का अनुभव / जस्ट फ्रीडम-नॉट फ्रीडम फ्रॉम समथिंग/ किसी से मुक्ति नहीं मात्र मुक्ति / किसी से स्वतंत्रता-अर्थात अतीत से छुटकारा / किसी के लिए स्वतंत्रता अर्थात भविष्य की वासना / बस स्वतंत्रता-मन के पार / बुद्ध द्वारा ईश्वर-चर्चा पर चुप्पी-भारत न समझ सका / सुख-दुख ः एक सिक्के के दो पहलू / पूरा सिक्का ही फेंकना पड़ेगा / पूरा सिक्का गिरते ही ऊर्ध्वगमन शुरू / ऊर्जा के लिए तीन मार्ग हैं : बहिर्गमन, ऊर्ध्वगमन और दमित निम्न गमन / दक्षिणायण पथ पर पहला प्रतीक-धुआं / धुआं-गीलेपन के कारण / वासना गीलापन है / वासना है अंधापन और निर्वासना है स्पष्टता / धुएं की सघनता रात्रि बन जाती है / हठयोगियों की बुद्धि-क्षीणता का कारण / दस वर्षों से खड़ा हुआ व्यक्ति / प्रकृति से नीचे गिर जाने पर एक जड़ शांति / शरीर की जड़-थिरता से मन का भी थिर हो जाना / पथरीली आंखें / कांटों पर लेटना : संवेदन क्षीणता का अभ्यास / निर्विचार और अविचारः ब्रह्मचर्य और नपुंसकता / निर्विचार व्यक्ति की आंखें-बिलकुल स्वच्छ / संकल्प से काम ऊर्जा का प्रवाह बंद करना संभव / रात्रि का सघन होना / पर का दिखाई न पड़ना / उत्तरायण पथ पर क्रमशः अहंकार का विसर्जन / दक्षिणायण पथ पर अंधकार बढ़ते जाने से पर का बोध क्रमशः क्षीण होते जाना / संसार न दिखाई पड़ने से मुक्त होने का भ्रम होना / पूर्णिमा की स्थिति में अहंकार शून्य और परमात्मा पूर्ण / अमावस की स्थिति में पर शून्य और अहंकार ठोस / अमावस वाला व्यक्ति भी कह सकता है: अनलहक-अहं ब्रह्मास्मि / मंसूर को सूली—इस भूल के कारण कि उसकी घोषणा अमावस-अवस्था की है / मंसूर और जीसस की घोषणाएं-पूर्णिमा की घोषणाएं हैं / बाहर से तय करना मुश्किल / अहंकारियों की नासमझी / अहंकार की भाषा-विनम्रता / अमावस की स्थिति में व्यक्ति मोनोड जैसा हो जाता है-बिलकुल बंद / संकल्प है: मैं को साधना / समर्पण है : मैं को विसर्जित करना / हठयोग और राजयोग / पर्ण अंधकार की पष्ठभमि में संभावित चांद की छाया बनना / गहरे कएं के भीतर से दिन में तारे दिखाई पड़ना / संचित पुण्य चुक जाने पर स्वर्ग से वापसी / पाप होते हैं-संकल्प की कमी के कारण / पुण्य होते हैं संकल्प की सामर्थ्य से / मोक्ष घटित-संकल्प के विसर्जन से / हमारा किया हुआ चुक ही जाएगा / कर्म से क्षणिक ही प्राप्त / सुख में समय छोटा और दुख में समय लंबा / बड रसेल की आपत्ति-ईसाइयत के शाश्वत नर्क की धारणा पर / नर्क में दुख इतना प्रगाढ़-कि समय शाश्वत-सा लगता है / समर्पण कर्म नहीं है / समर्पण समस्त कर्मों का विसर्जन है / समर्पण में उपलब्ध होता है-प्रभु-प्रसाद-शाश्वत।