________________
लिए ईंधन बना लेना / शरीर के तल पर अनेकता रहेगी/आंशिक एकता-प्रेम में / शरीर और मन के पार-शाश्वत एकता-सदा से है।
अक्षर ब्रह्म और अंतर्यात्रा ... 107
गति संसार का स्वभाव है / कुछ भी थिर नहीं है / दीवाल के परमाणु बड़ी तीव्र गति से घूम रहे हैं / गति अनेक आयामी है / गति और श्रम में विश्राम कहां / विश्राम के लिए चेतना का तल बदलना जरूरी / अक्षर-जो न बदलता, न क्षीण होता / घूमते चाक की स्थिर कील / परिधि से केंद्र की तरफ गति / संसार की कोई भी यात्रा तीर्थयात्रा नहीं है / प्रत्येक व्यक्ति के केंद्र पर अक्षर / तादात्म्य की अनेक पर्ते / मन से हमारा तादात्म्य गहरा / शरीर का चाक, विचार का चाक, वासना का चाक / केंद्र पर पहुंच जाना परम गति है / सनातन अव्यक्त की उपलब्धि के बाद कोई वापसी नहीं / सौ डिग्री तापक्रम पर पानी में क्रांति घटित / चेतना का सौ डिग्री का बिंदु / कवियों व कलाकारों की छोटी-छोटी छलांगे / कवि और ऋषि का फर्क / ऋषि प्वाइंट ऑफ नो रिटर्न पर पहुंच गया है / कवि वापस गिर जाता है / रहस्यवादियों के वक्तव्य बेबूझ / सनातन अव्यक्त का वर्णन करना / संत की चुप्पी भी एक वक्तव्य है / स्वयं को उघाड़ना-परमात्मा का प्रकट होना / अक्षर ब्रह्म तो सदा से भीतर विराजमान है / मुल्ला नसरुद्दीन का गधे पर बैठकर गधे को खोजने निकलना / हम स्वयं को खोज रहे हैं / जिसकी खोज है, वह भीतर है / भक्त के निरावरण होते ही भगवान उपलब्ध हो जाता है | भगवान भक्त को खोज लेता है / परमधाम अर्थात जिसके आगे कुछ नहीं / जापानी कथा : एक पहाड़ी तीर्थस्थल के नीचे ही ठहर गया फकीर / परमधाम पहुंचकर पता चलना कि वहां हम सदा से थे ही / संबोधि के बाद बुद्ध का वक्तव्यः कुछ पाया नहीं, जो सदा से मिला था, उसे पहचाना / परमात्मा के अंतर्गत सर्वभूत हैं / पश्चिम में चेतना के विस्तार पर रासायनिक प्रयोग / प्राचीन आकांक्षा-चेतना इतनी -विस्तीर्ण हो कि सब उसमें समा जाए । जीसस-निकोडेमस-संवाद / पहले खोजो प्रभु का राज्य, शेष सब पीछे चला आएगा / पदार्थों को पाकर भी कुछ न मिलेगा./ मालिक के पीछे-पीछे सब चला आता है / परमात्मा को पाया कि सब पाया / कृष्ण कहते हैं : परमात्मा से यह जगत परिपूर्ण है / हमें तो परमात्मा बिलकुल ही नहीं दिखाई पड़ता / गेस्टाल्ट मनोविज्ञान / एक ही रेखा-संयोग में दो चित्र बनाना / एक बार में केवल एक का दिखना / जगत एक गेस्टाल्ट है-पदार्थ और परमात्मा . का / वानगॉग के चित्र / वृक्ष हैं पृथ्वी की आकांक्षाएं-आकाश को छूने की / हमारा गेस्टाल्ट संसार पर लगा है / परमात्मा पर गेस्टाल्ट को बदलना-योग है, साधना है, धर्म है / अनन्य भक्ति से सनातन अव्यक्त परमात्मा उपलब्ध / बंटी हुई निष्ठा संसार के गेस्टाल्ट में ले जाती है / आदमी भीतर एक भीड़ है / जितनी इच्छाएं-उतने खंड / प्राणों का एकजुट हो जाना / भक्ति का अर्थ है-प्रेम / चित्त खंड-खंड हो, तो प्रेम नहीं हो सकता / भीतर के खालीपन को बाहर की चीजों से भरने की कोशिश / परमात्मा एकमात्र भराव है / पश्चिम में रिक्तता का प्रगाढ़ बोध / परमात्मा के इनकार से जीवन में खालीपन / परमात्मा को जाना कि भर गए।
जीवन ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन-उत्तरायण पथ ... 123
जीने की कला और मरने की कला / नाम मात्र का जीवन / मरते समय वासनाओं से भरा चित्त / निर्विचार शुद्ध समय / सामायिक अर्थात ध्यान / अतीत की जुगाली-भविष्य के सपने / वर्तमान को चूकते जाना / वर्तमान अर्थात जो है / जीवन सत्य-अभी और यहीं / अतीत और भविष्य के बीच डोलता हुआ मन / वर्तमान मन का हिस्सा नहीं है / वर्तमान क्षण कालातीत है / समय ही मन है / अस्तित्व अर्थात जो है-सनातन वर्तमान / मनुष्य अर्थात जिसके पास मन है / सिर्फ होना मात्र विचारशून्य, तृष्णाशून्य, कालशून्य / मृत्यु-क्षण में अ-मनी दशा-तो फिर वापस जन्म नहीं / गलत मृत्यु-गलत जीवन का प्रारंभ / संसार में समय जरूरी / संन्यास है-समय के बाहर छलांग / संन्यास का सोच-विचार से कोई संबंध नहीं / लिंची