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________________ * जीवन ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन-उत्तरायण पथ * हैं। सेक्स सेंटर को, मैंने कहा, हम भूमध्य रेखा मान लें, तो उसको | जो दिखाई पड़ता था, वह छाया मात्र था। उसमें मेरा होना, न होना, चक्र गिनने की जरूरत नहीं। फिर छः चक्र रह जाते हैं, वे छः माह | बराबर था। मैं मर चुका हूं उसी दिन। जिस दिन मैंने जाना स्वयं हैं। ठीक वैसे ही छ: चक्र काम सेंटर के नीचे भी होते हैं. लेकिन | को, उसी दिन मर चुका हूं। महाकाश्यप ने पूछा, फिर आप इतने उनकी चर्चा ज्ञानियों ने नहीं की. क्योंकि उनका कोई प्रयोजन नहीं दिन जीए कैसे? अगर वासना नहीं रही. तष्णा नहीं रही. और आप है। तो अगर हम इन छः की संख्या को ध्यान में रखें, तो भी | कहते हैं, मैं मर चुका हूं, तो इतने दिन आप जीए कैसे? खाते थे, उत्तरायण के छः माह हमारे खयाल में आ जाएगा। पीते थे, चलते थे। हमने अपनी आंखों देखा है! बुद्ध ने कहा, यदि ऐसी घटना घटे-और ऐसी घटना घटती है-जब भीतर | | बाहर; लेकिन भीतर न मैंने खाया, न मैं चला। भीतर मैंने कुछ भी पूर्णिमा की स्थिति आ जाती है चार अग्नि की यात्राओं को पार | नहीं किया। महाकाश्यप पूछता है, लेकिन बाहर तो किया? बाहर करके, ठीक उसी समय छः माह को पार करके सहस्रार पर, छः | | भी क्यों किया अगर सब समाप्त हो गया है? तो बुद्ध कहते हैं, चक्रों को पार करके सहस्रार पर भी चेतना पहुंच जाती है। बाहर करने का कारण है। पिछले जन्मों में इस शरीर की जितनी उम्र सहस्रार पर हो चेतना और पूर्णिमा जैसा प्रकाश हो, तो ब्रह्म की | मैंने लगाई थी, उस उम्र के पूर्व ही भीतर की घटना घट गई, उतनी उपलब्धि होती है। उस क्षण में मर जाने से ज्यादा बड़ा सौभाग्य और | | उम्र पूरी होगी। यह शरीर तो अपनी विधि को पूरा करेगा।। कोई भी नहीं है। उस क्षण में जीना भी सौभाग्य है, उस क्षण में मरना । यह करीब-करीब वैसे ही है, जैसे एक आदमी साइकिल चला भी सौभाग्य है। उस क्षण में कुछ भी घटित हो, तो सौभाग्य है। यह रहा है और पैडल मारता चला जाता है। जब तक पैडल चलता है, भी जान लें कि वहां से वापसी नहीं है। ब्रह्म से नहीं, ब्रह्म से तो | | साइकिल चलती है। पैडल रोक देता है, तब भी साइकिल एकदम वापसी नहीं है; इस अवस्था से भी वापसी नहीं है। नहीं रुक जाती। दस, पचास, सौ, दो सौ कदम चलती चली जाती बुद्ध को ज्ञान तो हुआ मृत्यु के चालीस साल पहले, महावीर को | | है-मोमेंटम, त्वरा के कारण। इतनी देर तक पैरों से जो पैडल मारा भी कोई बयालीस साल पहले हुआ। है. तो हर पैडल साइकिल को चलाता ही नहीं. हर पैडल की कछ लेकिन जिस दिन ज्ञान हुआ, उसी दिन शुक्ल पक्ष पूरा हो गया, | | शक्ति बच जाती है, इकट्ठी हो जाती है; और जब आप पैडल रोकते उसी दिन उत्तरायण का सूर्य अपनी पूरी स्थिति पर पहुंच गया। उस | हैं, तो वह अर्जित, रिजर्वायर शक्ति, जो कुछ इकट्ठी हो गई है, वह दिन से नीचे लौटना बंद हो गया, लेकिन मृत्यु तो चालीस साल थोड़ी दूर तक चला देती है। बाद घटित हुईं। एक बहुत मजे की घटना इस संबंध में आपसे कहूं। इसलिए बौद्धों ने अच्छा शब्द चुना है। जिस दिन बुद्ध को बुद्धत्व बुद्ध को जब ज्ञान हुआ, तो वे पैंतीस साल पार कर चुके थे। मिला, मरने के चालीस साल पहले, उसे वे कहते हैं, निर्वाण। उस जिन लोगों को पैंतीस साल के बाद, जीवन की मध्य रेखा के बाद दिन एक अर्थ में तो मृत्यु हो गई, क्योंकि अब कोई वापसी नहीं है। ज्ञान होता है, वे काफी देर तक जिंदा रह जाते हैं। क्यों? इसे ऐसा फिर जिस दिन वस्तुतः मृत्यु हुई, शरीर छूटा, उसे वे कहते हैं, समझें कि आप साइकिल पर पैडल मार रहे हैं। अगर आप चढ़ाव महापरिनिर्वाण। जहां तक भीतर का संबंध है, शरीर उसी दिन छूट पर पैडल मार रहे हैं, तो आपके पैडल रोकते ही साइकिल दो-चार गया, जहां तक बाहर का संबंध है, जगत के जानने का, वह चालीस | कदम चल जाए, तो बहुत है, क्योंकि चढ़ाव है। अगर उतार पर साल बाद छूटा। लेकिन इन चालीस सालों में भीतर समय ने एक | पैडल मार रहे हैं, तो आपके पैडल रोक लेने पर भी साइकिल काफी क्षण भी गति नहीं की। इन चालीस सालों में बाहर की घड़ी समय | चल सकती है। बताती रही। दिन आए, रातें आईं। समय बीता, वर्ष बीते, माह बीते। । इसलिए अक्सर ऐसा हुआ कि जिन लोगों को पैंतीस साल के चालीस वर्ष बीते। लेकिन भीतर की घड़ी उस दिन के बाद फिर नहीं | | बाद ज्ञान हुआ, वे तीस-चालीस साल और जी सके-बुद्ध या चली। भीतर फिर एक क्षण भी नहीं बीता। महावीर। लेकिन जिन लोगों को पैंतीस साल के पहले ज्ञान हो गया, बुद्ध से मरने के दिन ही कोई पूछता है—महाकाश्यप पूछता है | | वे ज्यादा नहीं जी सके-शंकर या क्राइस्ट या और इस तरह के बुद्ध से-कि आज आप खो जाएंगे मृत्यु में, हम सब का क्या | | लोग। जिनको भी पहले ज्ञान हो जाएगा, तो फिर साइकिल चलानी होगा? बुद्ध ने कहा, मुझे खोए काफी समय हो चुका है। मैं तुम्हें बड़ी मुश्किल बात है। चढ़ाव पर अति कठिन है। और अगर [135]
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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