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________________ गीता दर्शन भाग-4 चलानी हो, तो बहुत उपाय करने पड़ेंगे। रामकृष्ण को भी ज्ञान पैंतीस के पहले ही हो गया और बड़ी मुश्किल थी उनको । जितने दिन वे जिंदा रहे, वह बहुत मुश्किल काम था। और शायद बहुत कम लोगों ने उस तरह की चेष्टा की है । रामकृष्ण कुछ चीजों में अपना लगाव बनाए रखते थे । लगाव - जानकर, कोशिश करके । भोजन में उनका बहुत लगाव था। कोई सोच भी नहीं सकता था कि उस हैसियत का व्यक्ति, और दो-चार बार चौके में न पहुंच जाता हो और पूछता हो कि क्या बना है! शारदा, उनकी पत्नी उन्हें कहती थी कि परमहंसदेव, तुम्हारा चौके में बीच-बीच में उठकर आकर पूछना बड़ा अशोभन मालूम पड़ता है। लोग क्या सोचते होंगे! सत्संग चलता है, ब्रह्मचर्चा चलती है; अचानक रोककर कि मैं अभी आया, आप चौके में चले आते हैं! जो बैठे हैं, वे क्या नहीं सोचते होंगे ? रामकृष्ण हंसते थे और टाल देते थे, क्योंकि कुछ बातें हैं, जिनके जवाब नहीं दिए जा सकते हैं। नहीं दिए जा सकते हैं इसलिए नहीं कि नहीं दिए जा सकते। नहीं दिए जा सकते इसलिए कि जिसको दिए जाने हैं, वह उनको बिलकुल ही न समझ पाएगा। लेकिन शारदा पीछे ही पड़ी रही। एक दिन रामकृष्ण ने कहा कि तू नहीं मानती है, तो मैं तुझे कहता हूं। मेरी नाव ने किनारे से सब तरह की रस्सियां खोल ली हैं अपनी, लेकिन एक खूंटी से मैं अपने को बांधे रखना चाहता हूं, उन लोगों के लिए जिनकी मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं। मैं उनसे कह दूं, जो मैं कहना चाहता हूं; और फिर मैं अपनी नाव को खोल दूं पूरा, ताकि मैं अपनी यात्रा, मैं अपनी महायात्रा पर निकल जाऊं। तो मैं इस भोजन में इतना लगाव रखता हूं, सिर्फ इसलिए कि एक खूंटी गड़ी रहे शरीर के साथ, अन्यथा यह इसी वक्त गिर सकता है। तो शारदा से रामकृष्ण ने कहा कि अब मैं तुझे बता देता हूं-तू नहीं मानती, इसलिए तुझे बता देता हूं - जिस दिन मैं भोजन में रस न लूं, समझ लेना कि मेरी मृत्यु निकट है और उसके तीन दिन बाद मैं मर जाऊंगा ; ठीक तीन दिन बाद। शारदा ने उस दिन तो गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन एक दिन वह घड़ी आ गई। रामकृष्ण बिस्तर पर लेटे थे और उस दिन उठकर चौके में नहीं आए थे। शारदा थोड़ी बेचैन भी हुई; क्योंकि कितना ही समझाओ, वे नहीं मानते थे। बीमार भी हों, तो उठकर आते थे। आज नहीं आए पता लगाने कि क्या बना है। शारदा थाली लेकर कमरे में आई, तो रामकृष्ण ने थाली देखकर करवट बदल ली। शारदा के हाथ से थाली छूट पड़ी। उसे याद आया कि उन्होंने कहा था कि जिस दिन मैं भोजन में अरुचि दिखाऊं, उस दिन समझना कि बस, अब आखिरी दिन करीब है; तीन दिन और बाकी रहे । ठीक तीन दिन बाद रामकृष्ण की मृत्यु हुई। | तो अगर चढ़ाव पर हो, तो बहुत मुश्किल हो जाता है। लेकिन बुद्ध और महावीर दोनों उतार पर थे, इसलिए चालीस- बयालीस साल दोनों जीए, अनुभव के बाद। लेकिन वह पुराना मोमेंटम है, जन्मों-जन्मों के कदमों की ताकत है। और जब भी किसी व्यक्ति | को पैंतीस साल के पहले अनुभव हो जाता है, तो बड़ी अड़चन हो | जाती है। और जिनके लिए वह रुकता है, वे ही हजार अड़चनें खड़ी करते हैं कि आपने ऐसा क्यों किया, आप ऐसा क्यों करते हैं! वह कहीं किनारे पर अपनी खूंटियां गाड़कर रखना चाहता है, शायद किसी प्रतीक्षा में। इस क्षण में दक्षिणायण उत्तरायण; और अग्नि बन गई हो पूर्णिमा का प्रकाश, जब इन दोनों का मिलन होता है, उसी क्षण. पीछे लौटना असंभव है, वह प्वाइंट आफ नो रिटर्न है। वह जगह आ गई जहां से वापस नहीं हुआ जा सकता, जिसके आगे नहीं जाया जा सकता | और आगे ब्रह्म के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। 136 1
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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