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* गीता दर्शन भाग-44
दक्षिणायण कहां तक हो! यह बहुत चुपचाप हो गया निदान था। मूल्य नहीं है। इसलिए जो बहुत कामातुर हैं, अगर वे शीर्षासन करें, इसके लिए बातचीत भी नहीं करनी पड़ती थी, यह चुपचाप हो जाता तो उन्हें थोड़ा लाभ होगा, क्योंकि उनकी थोड़ी-सी ऊर्जा सिर की था। और मन ही मन बात समझ ली जाती थी और हिसाब हो जाते तरफ बहनी शुरू हो जाती है। इसलिए कामवासना से पीड़ित थे कि क्या करना है, क्या नहीं करना है।
व्यक्ति को शीर्षासन लाभ पहुंचा सकता है। लेकिन क्षणिक ही, और एक दफा शिष्य ठीक से पहचान लेता था गुरु के चरणों में क्योंकि कितनी देर सिर के बल खड़े रहिएगा! आखिर पैर के बल सिर रखकर, तो फिर वह पता नहीं लगाता फिरता था कि गुरु का खड़े होंगे, ऊर्जा फिर बहनी शुरू हो जाएगी। चरित्र कैसा है, कैसा नहीं है। उसका कोई प्रयोजन नहीं था। वह | पहला तो विभाजन यह समझ लें कि काम-केंद्र से नीचे की पैरों ने सब उसे कह दिया। और एक दफा गुरु पहचान लेता था सिर | | तरफ बहती ऊर्जा, दक्षिणपथ है आपके भीतर के सूर्य का। और पर हाथ रखकर, तो फिर वह नहीं पूछता था कि तुम क्या कर रहे अगर मरते क्षण में भी आपकी ऊर्जा पैरों की तरफ बह रही हो हो, क्या नहीं कर रहे हो; क्योंकि वह जानता था कि तुम क्या कर काम-केंद्र से, तो फिर आप पुनर्जन्म से मुक्त नहीं हो सकते। रहे हो, क्या हो रहा है भीतर।
लेकिन अगर ऊर्जा आपकी ऊपर बह रही हो, ऊर्ध्वमुखी हो, तो साइकोएनालिसिस करते वक्त फ्रायड, जुंग और एडलर जो वर्षों आप मुक्त हो सकते हैं। में नहीं पहचान पाते, वह भारतीय गुरु सिर्फ सिर पर हाथ रखकर इसलिए उत्तरायण के छः माह, इसका प्रतीक अर्थ आप समझ पहचान लेता था। जैसे मरीज नाड़ी से पहचान लिए जाते, वैसे इस लेना। उत्तरायण के छः माह अर्थात आपके जीवन का जो आधा उत्तरायण और दक्षिणायण की व्यवस्था को भी बड़ी सरलता से हिस्सा है आपकी देह का, उसकी ओर इशारा है। इसका इशारा एक पहचाना जा सकता है, क्योंकि ऊर्जा फौरन खबर देती है कि कहीं और भी है कि आदमी अगर सत्तर साल जीता है या सौ साल जीता है। जहां भी ऊर्जा प्रवाहित होती है, वहां उष्ण हो जाता है; और जहां | है, अगर सौ साल जीता है, तो पचास साल समय में हम रेखा खींच से ऊर्जा हट जाती है, वहां शीतल हो जाता है।
| लें। तो पचास साल तक माना जा सकता है कि उसकी ऊर्जा नीचे इसीलिए चिकित्सक तो कहेंगे कि यह आदमी बीमार है। अगर | की तरफ बहती रहे। लेकिन आने वाले पचास साल में भी अगर नीचे पैर ठंडा हो, तो चिकित्सक तो कहेगा कि यह आदमी बीमार है। | की तरफ बहे, तो वह आदमी आत्मघाती है, वह अपने जीवन को खतरा तो है ही! खतरा इसलिए है कि इसकी जीव-ऊर्जा अब शरीर | | व्यर्थ कर रहा है; उत्तरायण उसके जीवन का शुरू हो जाना चाहिए। के बाहर निकलने के करीब है, यह मर सकता है।
इसलिए हमने जो आश्रम बांटे थे चार, पचास के साथ उत्तरायण बायोलाजिकली, जीवशास्त्र के हिसाब से पेरों का ठंडा होना शुरू होता था। पचासवें वर्ष में व्यक्ति को वानप्रस्थ हो जाना स्वास्थ्यप्रद नहीं है। वह स्वास्थ्य में खराबी का सूचक है। ठीक भी | चाहिए। पच्चीस साल घर में ही रहे, लेकिन ऊर्जा को अब ऊपर ले है, क्योंकि अगर शरीर को जिलाना है, तो शरीर तभी तक ठीक से | जाने में संलग्न हो। और जिस दिन पचहत्तर साल की उम्र में वह पाए जीता है, जब तक शरीर की वासना नीचे की तरफ बहती हो। जैसे | कि अब ऊर्जा ऊपर जाने में समर्थ हो गई, तब वह घर छोड़ दे और ही वासना ऊपर की तरफ बहने लगती है, वैसे ही शरीर का कोई | अब समग्र रूप से ऊर्ध्वगामी हो जाए, वह संन्यस्त हो जाए। प्रयोजन नहीं रह गया।
__ अगर आज हम ऐसा समझें कि सत्तर साल उम्र है, तो पैंतीस लेकिन इससे आप यह मत समझ लेना कि अगर आपके पैर ठंडे | साल के बाद काम ऊर्जा, जीवन ऊर्जा को उत्तरायण पर जाना हों, तो आपकी ऊर्जा ऊपर बह रही है। पहले तो चिकित्सक से चाहिए। अगर पैंतीस साल में आपकी काम ऊर्जा का उत्तरायण पूछना। सौ में निन्यानबे मौके तो यह होंगे कि आप सिर्फ बीमार हैं। | शुरू नहीं होता, तो मरते वक्त तक आप उत्तरायण में पहुंच नहीं तो जब मैं कहता हूं कि ज्ञानी के पैर ठंडे हो जाते हैं, तो मैं यह नहीं पाएंगे, दक्षिणायण में ही मृत्यु होगी। कह रहा हूं कि जिनके ठंडे हो जाते हैं, वे ज्ञानी हैं। दि वाइस वरसा | | यह दूसरा विभाजन समझ लें। और इसके बाद एक-एक प्रतीक इज़ नाट राइट; विपरीत ठीक नहीं है।
को समझ लें। उन प्रतीकों से भी बड़ी भूल हुई। और सिर्फ इस ऊर्जा को सिर की तरफ प्रवाहित करने के लिए | उन दो प्रकार के मार्गों में, जिस मार्ग में अग्नि है, ज्योति है, दिन शीर्षासन का इतना गहरा प्रयोग किया गया, और कोई प्रयोग का है. तथा शक्ल पक्ष है और उत्तरायण का अर्ध वर्ष है. उस मार्ग में
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