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* जीवन ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन-उत्तरायण पथ *
क्योंकि उससे हम कभी छूटे नहीं हैं, इसलिए पाने के लिए कोई भी अगर होने की ही वासना है, तो परम योग आपका मार्ग नहीं है, रास्ता तय करने की जरूरत नहीं है। जिससे हम कभी अलग नहीं | सांख्य आपका मार्ग नहीं है। और होने की वासना सभी में है। मजा हुए, उस तक पहुंचने के लिए किसी भी विधि और विधान की | | तो यह है कि सांख्य में भी लोग इसीलिए उत्सुक होते हैं कि अच्छा, आवश्यकता नहीं है। जिसमें हम खड़े ही हैं, अभी और सदा से, | चलो! होना तो चाहते हैं, अगर आप कहते हो कि होने की वासना . क्या उसे पाने को भी कोई यात्रा करनी पड़ेगी?
छोड़ोगे तभी हो पाओगे, तो हम होने की वासना भी छोड़ने को लेकिन यह बात समझ में आती नहीं। और समझ में भी आ तैयार हैं। लेकिन उस वासना के पीछे भी कुछ होने की कामना सदा जाए, तो कोई परिणाम नहीं होता।
ही मौजद है। इसलिए बहत जाल है भीतर। इस जाल को तोडना ___ कृष्णमूर्ति इस सांख्य की ही चर्चा चालीस-पचास वर्षों से कर हो, तो दूसरी विधि है। रहे हैं। इन पचास वर्षों में एक सुनिश्चित वर्ग उन्हें निरंतर सुनता है, | उन दूसरे योगीजन को कृष्ण ने कहा है कि और पीछे आने वाली निरंतर पढ़ता है, फिर भी कहीं पहुंचता हुआ मालूम नहीं पड़ता। गति को भी प्राप्त होते हैं, ऐसे योगी भी हैं। जो योगी योग की चालीस-चालीस वर्ष उन्हें सुनने वाले लोग मेरे पास आकर कहते साधना किसी भी वासना से कर रहे हों, चाहे वह वासना परमात्मा हैं, सब समझ में आता है, फिर कुछ होता क्यों नहीं? सब समझ | को पाने की वासना ही क्यों न हो, चाहे वह वासना सब वासनाओं में आ गया है, फिर कुछ होता क्यों नहीं?
से मुक्त हो जाने की ही वासना क्यों न हो! लेकिन जहां भी किसी - असल में उनको इतना ही समझ में नहीं आया कि अगर कुछ तरह की डिजायरिंग, वहीं भविष्य आ गया। जहां किसी तरह की होने की आकांक्षा है, तो सांख्य आपका सूत्र नहीं बन सकता। अगर कामना, वहीं भविष्य निर्मित हो गया। और जहां भविष्य है, वहां यह भी आप पछ रहे हैं कि सब समझ में आ गया, कुछ होता क्यों अतीत से सहारा लेना पड़ेगा, क्योंकि भविष्य के अनजान लोक में नहीं है! यह होता क्यों नहीं है, यह तो भविष्य है। यह होता क्यों | आप प्रवेश कैसे करेंगे! अतीत का अनुभव ही आपका आधार नहीं है, यह तो वासना है। अगर समझ में आ गया, तो होना बंद | बनेगा, अतीत का ज्ञान ही आपका सहारा होगा। अतीत का ज्ञान करो अब। अब भविष्य को छोड़ दो। अब यह कामना भी छोड़ दो और भविष्य की कामना-वह क्षण चूक गया, जिस क्षण में मरता कि कुछ हो। मोक्ष हो, आनंद हो, परमात्मा हो, यह कामना भी | है कोई तो फिर वापस नहीं आता। सांख्य के मार्ग में बाधा है, परम योग के मार्ग में बाधा है। इसलिए अगर मरते क्षण में इतनी भी कामना मन में रही कि हे
लेकिन कभी करोड़, दो करोड़ में कोई एकाध व्यक्ति कभी | | प्रभु, अब तो उठा लो, अब पुनर्जन्म न हो, तो पुनर्जन्म होगा, सदियों में घटित होता है, जो परम सांख्य को सीधा पा लेता है। क्योंकि यह भी वासना है। लेकिन उसका सीधा पाना भी हजारों जन्मों की लंबी भटकन का ही | आज एक बयासी वर्ष के बूढ़े मित्र ने संन्यास लिया है, लेकिन परिणाम होता है। परम सांख्य को भी सीधा पाया नहीं जा सकता। बड़ी संसारी भावना से। वे आकर बोले कि मैं बयासी साल का हो यदि कृष्णमूर्ति जैसा व्यक्ति भी पाता हो, तो वह भी अनंत-अनंत | गया, और कम से कम साठ साल से महात्माओं के दरवाजों पर जन्मों की प्रक्रिया का फल है।
चक्कर काट रहा है, लेकिन अब तक कोई लाभ नहीं हुआ। लाभ! लेकिन जब कोई वैसा पा लेता है, तो वह दूसरों से कहता है कि | | मैंने उनसे पूछा, क्या लाभ चाहते थे? कहे, न मन को शांति मिली, कुछ करने की जरूरत नहीं है। बस हो जाओ, अभी और यहीं। वह न आनंद मिला, न प्रभु का कोई दर्शन हुआ। और धन-संपत्ति की दूसरा सुन लेता है, शब्द समझ में भी आ जाते हैं। बार-बार सुनने भी सदा तकलीफ रही। शरीर से भी दुखी रहा। और अब तो थोड़े से और जल्दी समझ में आ जाते हैं। इसलिए कृष्णमूर्ति जैसे लोगों दिन बचे हैं। कहने लगे कि अब आपकी शरण में आया हूं। और को वे ही लोग रोज पढ़ते रहते हैं, वे ही लोग हर वर्ष सुनते रहते | अब तो कुछ ऐसा कर दें कि बस, दुबारा आगमन न हो। और अगर ह; व हा शक्ल! क्योंकि बार-बार पुनरुक्ति से उनको यह वहम इतना भी न हो पाए, तो इतना ही कर दें कि कम से कम जब तक होने लगता है कि अब सब समझ में आने लगा। क्योंकि सब शब्द | | जिंदा हूं, किसी तरह का दुख न हो। समझ में आ जाते हैं। लेकिन फिर भी वे पूछते फिरते हैं कि कुछ मैंने पूछा, कितना समय मुझे दे सकते हैं? क्योंकि जब वासना हुआ नहीं।
| हो, तो समय की पहले पूछ लेना चाहिए। कितना समय, मेरे लिए
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