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________________ * गीता दर्शन भाग-42 है, जंपिंग आउट आफ दि टाइम प्रोसेस। होगा। मैं हो गया। आज्ञा दें संन्यासी को अब, अब उस आदमी को इसलिए जब कोई आदमी कहता है कि कल सोचकर मैं संन्यास | | भूल जाएं, जो आया था। लूंगा, तो मैं जानता हूं कि उसे पता ही नहीं कि संन्यास का अर्थ | कहते हैं कि उसके गुरु ने अपनी पगड़ी उसके सिर पर रख दी क्या है। सोचकर जो लिया जा सकता है, वह संसार होगा। क्योंकि | और कहा कि मैं उस आदमी की तलाश में था, जो उस काल-क्षण सोचेंगे क्या? सोचने का अर्थ है, अतीत के अनुभव से पूछंगा, | | में छलांग लगा ले, जिसका नाम वर्तमान है, क्योंकि मेरी मृत्यु स्मृति से पूछूगा। सोचने का क्या अर्थ है। भविष्य का हिसाब करीब है। अब मैं विदा लेता हूं। अब मेरा काम तू सम्हाल लेना। लगाऊंगा कि फायदा होगा कि नुकसान होगा। सोचने का अर्थ है, उस लिंची ने कहा कि लेकिन मैं अभी-अभी संन्यासी हुआ, अतीत और भविष्य से पूछंगा। और तो सोचने का कोई भी अर्थ | अभी मुझे कुछ भी पता नहीं है! उसके गुरु ने कहा, सब तुझे पता नहीं होता। लोग क्या कहेंगे, यह भविष्य है। और अतीत में मैं कैसा | हो जाएगा। जिसे वर्तमान के क्षण में खड़े होने की जरा-सी भी आदमी रहा हूं, उसके साथ तालमेल खाएगा संन्यास, नहीं खाएगा, | क्षमता है, उसे सब ज्ञान के, रहस्य के द्वार खुल जाते हैं। अब तुझे यह अतीत है। मुर्यों से पूछ रहे हैं, अतीत से; भविष्य से पूछने का | कुछ कहने की मुझे जरूरत नहीं है। अर्थ है, अनजन्मे से पूछ रहे हैं। __ और गुरु ऐसा बिना उपदेश दिए-ऐसी घटना बहुत कम घटती लेकिन संन्यास का सोचने से कोई संबंध नहीं। धर्म का ही है—बिना उपदेश दिए गुरु तिरोहित हो गया। और लिंची ने दूसरे सोचने से कोई संबंध नहीं है। इसी क्षण उस संधि-रेखा में, जहां | | दिन सुबह से गुरु के मंच पर बैठकर बोलना शुरू कर दिया। जितने अतीत नहीं और भविष्य नहीं, जो घटना घट जाती है, बिना विचारे | | ज्ञानी उसके गुरु के द्वारा पैदा हुए थे, उससे हजारों गुना ज्ञानी लिंची जो छलांग है, कूद जाना है अपने से बाहर, वह संन्यास है। के द्वारा पैदा हुए। लिंची के गुरु का नाम भी पता नहीं है, क्योंकि उसके गुरु ने कहा, तू लेना चाहता है, या तैयार है अभी? उस लिंची पूछ ही नहीं पाया और वह डिसएपियर हो गया। और जब भी युवक ने, लिंची ने आंखें बंद कर लीं, सोचने लगा। उसके गुरु ने | | कोई लिंची से पूछता था कि तुझे यह ज्ञान कैसे मिला? तो वह कहता उसे हिलाया और कहा, जरा-सा विचार, और तू चूक जाएगा। | था, गुरु ने तो मुझे कोई ज्ञान नहीं दिया, सिर्फ एक धक्का दिया था। जरा-सा सोचा, कि तू गया, खोया। युवक ने कहा, मुझे सोच तो | | लेकिन जिस दिन से मुझे यह राज मिल गया, अभी और यहीं होने लेने दें। थोड़ा-सा तो सोच लेने दें! इतनी भी जल्दी क्या है ? उसके का, उस दिन से कोई अज्ञान न रहा। अज्ञान के सब बादल छंट गए। गुरु ने कहा, काश, तुझे पता होता कि मौत किसी भी क्षण घटित जीवन में जो वर्तमान के क्षण को पकड़ने की कला आ जाए, तो हो सकती है, तो तू इस तरह की बात न कहता कि इतनी भी जल्दी | | कृष्ण जिस मृत्यु-क्षण की बात कर रहे हैं, जिस काल-क्षण की, क्या है! और तू सोचेगा क्या? तू ही सोचेगा न! अगर तू सोच | वह घटित हो सकता है। सकता होता, तो बहुत पहले कभी का संन्यासी हो चुका होता। जिस काल में शरीर त्यागकर गए हुए योगीजन, पीछे न आने मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उससे कह रही है एक दिन कि जो | | वाली गति को और पीछे आने वाली गति को भी प्राप्त होते हैं। बुद्धिमान लोग हैं, वे शादी करके भी सुखी रह सकते हैं। मुल्ला | क्योंकि योगीजन भी दो प्रकार के हैं। इसमें कठिनाई होगी वाक्य नसरुद्दीन ने कहा, जो बुद्धिमान हैं, वे बिना शादी किए ही सुखी रह | को सुनकर। क्योंकि दोनों के लिए कृष्ण योगीजन का प्रयोग करते सकते हैं। | हैं। योगीजन दो प्रकार के हैं; योग भी दो प्रकार का है। उसके गुरु ने, लिंची के गुरु ने कहा कि तू सोच रहा है। अगर एक तो, जिसे हम परम योग कहें, दि सुप्रीम योग। वह परम तू सोच ही सकता, तो संन्यास कभी का फलित हो गया होता। | योग अभ्यास, क्रिया, साधना, इसमें भरोसा नहीं करता। उस परम सोचकर, अगर सच में तू सोच सकता, तो कोई संसार में रह | | योग का ही पुराना नाम सांख्य है। सांख्य, जैसी यह लिंची को सकता है? और अगर अब तक तू नहीं सोच पाया, तो उसी मन | | घटना घटी, इस तरह की घटना में भरोसा करता है, सडेन को लेकर तू आगे भी कैसे सोचेगा? तू सोच मत। एनलाइटेनमेंट। अगर कोई आदमी राजी है अभी और यहीं, वर्तमान लिंची ने अपने गुरु की तरफ देखा और कहा कि मैं संन्यासी हो | | के क्षण में खड़े होने को, तो बिना किसी योगाभ्यास के, बिना किसी गया। क्योंकि अब यह भी कहना कि हो जाऊंगा, फिर भविष्य ध्यान के वह घटना घट जाएगी, जिसमें परम से मिलन हो जाता है। 128
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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