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________________ * जीवन ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन – उत्तरायण पथ * की योजना और कल्पना है। मनुष्य न हो, मन न हो, तो सब कुछ होगा, समय नहीं होगा। देअर शैल बी टाइम नो लांगर; आदमी भर न हो, तो समय नहीं होगा। समय आदमी के मन के साथ पैदा हुई वस्तु है। आदमी के हटते ही समय खो जाता है। यदि भीतर आप किसी ऐसी स्थिति को खोज लें, जब न अतीत है, न भविष्य, तो वहां कोई विचार भी नहीं हो सकता। क्योंकि विचार या तो अतीत के होते हैं, या भविष्य के । वहां कोई तृष्णा नहीं हो सकती, क्योंकि तृष्णा अतीत से जन्मती है और भविष्य की तरफ दौड़ती है। वहां कोई वासना नहीं हो सकती। वहां होंगे सिर्फ आप, सिर्फ आपका अस्तित्व, सिर्फ होना मात्र, जस्ट बीइंग। उस क्षण में जो मृत्यु घटित हो, तो लौटकर आना नहीं है। मृत्यु मुक्ति बन जाती है। और जिन लोगों ने मृत्यु को परम मित्र कहा है, तो आपकी मृत्यु नहीं कहा है। जिन्होंने कहा है कि मृत्यु परम सौभाग्य है, तो आपकी मृत्यु को उन्होंने परम सौभाग्य नहीं कहा है। उस भूल में मत पड़ना। उन्होंने इस मृत्यु की बात कही है। जो मृत्यु मित्र है, वह ऐसी मृत्यु है, जो मुक्ति बन जाती है। लेकिन काल-क्षण बहुमूल्य है। यदि भीतर ऐसा न हो, तो फिर आप नई यात्रा पर प्रारंभ कर देते हैं। अतीत को समेटे हुए, भविष्य का स्वप्न देखते हुए ही पुनर्जन्म होता है । अतीत को समेटे हुए, भविष्य की कामना करते हुए ही फिर नया गर्भ धारण हो जाता है। लौटकर आना हो, तो भरा हुआ मन चाहिए। लौटकर न आना हो, तो रिक्त, खाली, शून्य मन चाहिए। शून्य मन का अर्थ है, अ-मन | जिसको कबीर ने अ-मनी अवस्था कहा है और जापान के झेन फकीर जिसे स्टेट आफ नो-मांइड कहते हैं, उसी की चर्चा कृष्ण कर रहे हैं। लेकिन मृत्यु के समय–आकस्मिक, अचानक द्वार पर आ गई मृत्यु – उस क्षण आप कैसे सम्हाल पाएंगे अपने को, यदि जीवन में प्रतिपल न सम्हाला हो! तो जो ठीक से नहीं जीया, वह ठीक से मर नहीं सकेगा। गलत जीने का अंतिम परिणाम गलत मृत्यु होगी। और गलत मृत्यु का अर्थ होता है कि फिर गलत जीवन का प्रारंभ । आपने फिर बीज बो दिए । जीवन में ही सम्हालना पड़े। जीते-जी ही सम्हालना पड़े। और यह आप तभी सम्हाल सकते हैं, जब आपको खयाल हो कि जीवन किसी भी क्षण में मृत्यु घटित हो सकती है; अभी और यहीं घटित हो सकती है। इसलिए जो कहता है, कल सम्हाल लेंगे, वह कभी भी नहीं सम्हाल पाता है। जो कहता है, अभी और यहीं, वही सम्हाल पाता है। एक झेन फकीर हुआ लिंची। अपने गुरु के पास जब वह गया था, तो उसके गुरु ने कहा, किसलिए आया है? तो लिंची ने कहा कि मैं संन्यासी होना चाहता हूं। उसके गुरु ने कहा, होना चाहता है या अभी होने को तैयार है? उसके गुरु ने कहा, संन्यास का भविष्य से कोई भी संबंध नहीं है; संसार का भविष्य से संबंध है। कोई आदमी कहे, एक दुकान चलाना चाहता हूं, तो भविष्य की जरूरत पड़ेगी। दुकान एक फैलाव है, समय में। कोई आदमी कहे, धन कमाना चाहता हूं, तो आज इसी क्षण नहीं कमा सकता है। धन के लिए आयोजना करनी पड़ेगी, पंचवर्षीय, पचास वर्षीय योजनाएं बनानी पड़ेंगी। प्लानिंग करनी पड़ेगी। फिर भी मिलेगा, नहीं मिलेगा, नहीं कहा जा सकता। क्योंकि धन पर मेरा वश नहीं है। और बहुतों का वश भी है। और मैं अकेला ही धन कमाने नहीं चल पड़ा हूं। यह सारी पृथ्वी धन कमाने चल पड़ी है। भारी प्रतिस्पर्धा | है। सिर्फ धर्म को छोड़कर सभी चीजों में भारी प्रतिस्पर्धा है। धन | कमाना हो, यश कमाना हो, पदों की सीढ़ियां चढ़नी हों, तो भविष्य के बिना कोई उपाय नहीं। टाइम विल बी नीडेड । भविष्य चाहिए, नहीं तो कुछ भी न हो सकेगा। | लेकिन यदि संन्यास लेना हो, तो भविष्य की कोई भी जरूरत नहीं है। इसी क्षण घट सकता है, क्योंकि संन्यास निपट निजी है। उसका इस जगत में किसी से कोई संबंध नहीं है। और अगर धन मैं कमाना चाहूं, तो मेरे पास जितना धन बढ़ेगा, किसी के पास कम होगा । या किसी के पास ज्यादा हो सकता था, तो मैं छीनूंगा। कहीं न कहीं, कोई न कोई वंचित होगा। लेकिन अगर मैं संन्यास लेता हूं, दुनिया में कहीं भी कोई वंचित नहीं होता । शायद मेरे संन्यास लेने से दुनिया में बहुत कुछ समृद्धि भला आ जाए, लेकिन कहीं | कोई वंचित नहीं होता है। क्योंकि संन्यास कोई कमोडिटी नहीं है, कोई वस्तु नहीं है कि कम हो जाएगी। फिर संन्यास कोई संसार का हिस्सा नहीं है कि मैं उसकी योजना करूं और कल और परसों, और वर्ष और दो वर्ष, और प्रतीक्षा करूं। संन्यास एक घटना है, जो उस काल-क्षण में घटती है, जो अभी और यहीं है। ठीक से समझें, तो संन्यास का अर्थ है, जो समय के बाहर घटित | होता है। संसार का अर्थ है, जो समय के भीतर घटित होता है। | संसार का अर्थ है, विदिन दि टाइम प्रोसेस । और संन्यास का अर्थ 127
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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