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गीता दर्शन भाग-4
है, आज तीस वर्ष पूरे होते हैं, आज हमारी विवाह की वर्षगांठ है, नहीं है। समय तो केवल अतीत और भविष्य है। वर्तमान समय के कैसे मनाएं? क्या इरादा है तुम्हारा? क्या अच्छा न हो, जो मुर्गा बाहर है। जहां अतीत समाप्त होता है और जहां अभी भविष्य शुरू हम छः महीने से पाल रहे हैं, आज उसे काट लिया जाए? नसरुद्दीन नहीं होता, उस बीच की संधि-रेखा में वर्तमान है। वर्तमान समय ने कहा, तीस साल पहले घटी हुई दुर्घटना के लिए मुर्गे को दंड देना का हिस्सा नहीं है। कामचलाऊ है बातचीत कि वर्तमान समय का कहां तक उचित है! फिर मुर्गे का उसमें कोई हाथ भी नहीं है। हिस्सा है। वर्तमान समय का हिस्सा नहीं है। वर्तमान अस्तित्व है।
लेकिन तीस वर्ष क्या, तीस जन्म पहले घटी हुई घटना और और जो समय का हिस्सा नहीं है, वह मन का भी हिस्सा नहीं दुर्घटना भी हमें घेरे रहती है। हम उसी के इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं। है। अगर ठीक से समझें, तो जिसे हम बाहर के जगत में समय
और जितना हम पीछे घूमते रहते हैं, उतना ही हम आगे की कहते हैं, टाइम कहते हैं, वही भीतर के जगत में मन, माइंड है। इसे योजनाओं में डूबे रहते हैं। जितना होगा अनुपात अतीत का, उतना ऐसा समझ लें कि जिस घटना को हम बाहर के जगत में समय ही अनुपात सदा होता है भविष्य का। जितनी जड़ें आदमी की अतीत | | कहते हैं, उसी घटना का भीतरी नाम मन है। टाइम एंड माइंड आर स्मृति में होती हैं, उतनी ही शाखाएं उसी अनुपात में, ठीक उसी | | रियली सिनानिम्स, वे बिलकुल पर्याय हैं; उनमें कोई भेद नहीं है। अनुपात में भविष्य में फैल जाती हैं। और बीच का जो क्षण ___ इसलिए जिसे मन के बाहर जाना हो, वह समय के बाहर चला है-बहुत छोटा, बहुत छोटा, अति अल्प, आणविक—वह खो | जाए, तो मन के बाहर पहुंच जाता है। जिसे समय के बाहर जाना जाता है इस बीच।
हो, वह मन के पार चला जाए, तो समय के बाहर पहुंच जाता है। जिस काल-क्षण की कृष्ण बात कर रहे हैं, उस काल-क्षण को | ये दोनों एक ही चीज के दो छोर हैं। बाहर समय की तरह पहचाना ठीक से समझ लें। उस समय न अतीत हो, न भविष्य; रह जाए जाता है जो, भीतर वही मन है। शुद्ध वर्तमान परिपूर्ण निश्छल, परिपूर्ण निर्दोष, इनोसेंट, | । वर्तमान न तो समय का हिस्सा है और न मन का। वर्तमान अनबर्डन, निर्बोझ, निर्भार—तो उस क्षण में जो मृत्यु होती है, | अस्तित्व है। उसका रूप मृत्यु का नहीं, परम जीवन के अनुभव का है। वह मोक्ष, | ___ इसे ऐसा समझें कि अस्तित्व में न कुछ अतीत है और न कुछ मुक्ति बन जाती है।
भविष्य, अस्तित्व सदा है। अस्तित्व में न कुछ अतीत है और न मृत्यु हम तब तक कहते हैं अंत को, जब तक वापस लौटना | कुछ भविष्य, अस्तित्व तो सदा है। ऐसा समझें कि आदमी चला जारी रहता है। मृत्यु उस क्षण मुक्ति बन जाती है, मोक्ष, जिस क्षण | जाए जमीन से, तो क्या जमीन पर कोई पास्ट, कोई अतीत होगा? वापस लौटने का उपाय नहीं रह जाता।
| आदमी न हो जमीन पर, अर्थात मन न हो जमीन पर, तो क्या कोई वापस लौटता है आदमी मन से। मन ही धागा है जिससे हम | | भविष्य होगा? वापस लौटते हैं। और मन है अतीत और भविष्य का जोड़। चांद तो फिर भी निकलेगा, लेकिन चांद कल भी निकला था, अतीत+भविष्य = मन।
इसकी स्मृति चांद को नहीं है। फूल फिर भी खिलेंगे, लेकिन फूल वर्तमान का क्षण मन का हिस्सा नहीं है, नाट ए पार्ट आफ दि | | पहले भी खिले थे, इसका कोई हिसाब फूल नहीं रखते। पक्षी फिर माइंड, वर्तमान मन का हिस्सा नहीं है। इसलिए जो वर्तमान में भी गीत गाएंगे, लेकिन यह गीत कल भी गाया गया था, इसका प्रवेश कर जाता है, वह मन के बाहर हो जाता है। जो अतीत और पक्षियों के पास कोई लेखा-जोखा नहीं है। और चांद कल भी भविष्य में रहता है, वह मन में रहता है।
| निकलेगा, इसकी कोई योजना चांद के पास नहीं है। और फूल कल अब एक बहुत मजे की बात आपसे कहूं, जो कि आपको भी खिलेंगे, उस कल का, उस खिलने का, फूलों को कोई स्वप्न एकदम से समझ में शायद न भी पड़े, लेकिन थोड़ा समझेंगे, तो भी नहीं आता है। समझ में पड़ सकती है।
मन हट जाए...ध्यान रहे, इसीलिए हमने आदमी को-शायद हम सदा कहते हैं कि समय के तीन हिस्से हैं, अतीत, वर्तमान, | | जमीन पर अकेला भारत है, जिसने ठीक-ठीक नाम दिया भविष्य; पास्ट, प्रेजेंट, फ्यूचर। इसमें भूल है। प्रेजेंट जो है, प्रेजेंट है—मनुष्य। मनुष्य का मतलब है, जिसके पास मन है। और मन इज़ नाट ए पार्ट आफ टाइम एट आल। वर्तमान समय का हिस्सा का अर्थ है कि जिसके पास अतीत का लेखा-जोखा और भविष्य