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________________ * अक्षर ब्रह्म और अंतर्यात्रा * कि मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं कि जो अशिष्ट हो, वह पहले बोले। अब | पानी छिड़को। एक लड़की चिल्लाए चली जा रही है कि इससे कुछ तुम बोल चुके, अब कोई अड़चन नहीं है। मैं कभी नहीं बोलता उस | | भी न होगा, एक पावभर दूध में आधा पाव जलेबी डालकर इसे आदमी से, जिससे मेरा पहले परिचय न करवाया गया हो। और | खिला दो। मेरा किसी ने तुमसे परिचय नहीं करवाया। ___ मुल्ला पहले तो थोड़ी देर तक यह सब आयोजन सुनता रहा। आपके भीतर इतने चेहरे हैं जिनके साथ ही आप तैर रहे हैं, | | फिर एक आदमी जूता निकालकर ही आ गया। तब उसने एक सागर में डूब रहे हैं, लेकिन आपका कोई परिचय नहीं है। क्योंकि | | आंख खोली, उसने कहा, हटाओ भी, सब अपनी बकवास में लगे आपके खुद के चेहरों से कोई दूसरा तो आपका परिचय करवाएगा | | हैं, कोई उस बेचारी लड़की की भी तो सुनो। हम इधर बेहोशी में नहीं, आपको ही परिचय करना पड़ेगा। आप शिष्ट आदमी हैं, कैसे मरे जा रहे हैं और तुम अपना जूता सुंघा रहे हो! एक आंख खोलकर परिचय करें! और आपके चेहरे को दूसरा परिचय करवाएगा कैसे? उसने कहा कि उस बेचारी लड़की की भी कोई सुनो! और अगर कोई करवाने की कोशिश करे, तो आप नाराज भी हो । बेहोश भी अगर हम होते हैं, तो आधा ही हिस्सा बेहोश है, जाते हैं। अगर कोई आपको बताए कि देखो, सुबह तुम्हारा दूसरा आधा उस वक्त भी हिसाब लगा रहा है कि कोई जूता तो नहीं सुंघा चेहरा था, अब तुम दूसरा चेहरा लिए हो, तो आप एकदम नाराज | रहा है! कोई क्या कर रहा है! नींद में भी हम बिलकुल सोए हुए हो जाते हैं। और आप कभी अपने आत्म-परिचय में लगते नहीं हैं, | नहीं हैं। नींद में भी कान हमारे सजग हैं। सुन रहे हैं, जान रहे हैं कि नहीं तो पाएंगे कि भीतर एक भीड़ है। | कहां क्या हो रहा है; आस-पास क्या चल रहा है! इस भीड़ का कारण क्या है? इस भीड़ का एक ही कारण है, __ खंडित है सब, बंटा हुआ है सब। इस बंटी हुई स्थिति को लेकर क्योंकि आप बहुत-सी चीजों को पाना चाहते हैं। बहुत-सी चीजों | कोई प्रभु की तरफ नहीं जा सकता। इसलिए शर्त है, अनन्य। और को पाने के लिए आपको बहुत-से हिस्से, अपने खंड-खंड करने | | भक्ति का अर्थ है, प्रेम। और प्रेम अनन्य ही हो सकता है। उसकी पड़ते हैं। आप उस आदमी की तरह हैं. जो चौराहे पर खड़ा है और धारा एक ही हो सकती है। प्रेम में बंटाव नहीं है. प्रेम में कटाव भी चारों रास्तों पर एक साथ जाना चाहता है! तो थोड़ा हिस्सा इस नहीं है। प्रेम खंड-खंड चित्त से हो भी नहीं सकता; अखंड चित्त रास्ते पर चला जाता है, थोड़ा हिस्सा उस रास्ते पर चला जाता है, हो, तो ही हो सकता है। अखंड प्रेम के द्वारा यह परम सत्ता पाने थोड़ा हिस्सा और रास्ते पर चला जाता है। आपके सब हिस्से | | योग्य है। अलग-अलम यात्राओं पर निकल जाते हैं। फिर शायद मुश्किल ही | ___पाने योग्य है दो अर्थों में। एक तो इस अर्थ में कि इतनी मेहनत हो जाता है उनको इकट्ठा करना और एक जगह लाना। उठानी पड़े-कितनी ही मेहनत उठानी पड़े स्वयं को एक करने की, परमात्मा को पाना हो, तो अनन्य भक्ति से ही वह प्राप्त करने | | तो भी वह कोई मूल्य नहीं है। वह चुका देने जैसा है। और मुफ्त है, योग्य है। अनन्य का अर्थ है, इंटीग्रेटेड; आपके भीतर आप इतने | | क्योंकि जो मिलता है, उसका कोई मूल्य नहीं आंका जा सकता है। एक हो जाएं कि आप जिस तरफ आंख उठाएं, आपके पूरे प्राणों इसलिए अनन्य भक्ति से पाने योग्य है। एक। की आंख उस तरफ उठ जाए। ___ और दूसरा कि यही पाने योग्य है, और कुछ इस जीवन में, अभी ऐसा नहीं होता। अभी आदमी मंदिर में पूजा के लिए भी अस्तित्व में पाने योग्य नहीं है। यह परम धाम ही पाने योग्य है। और सिर नीचे रखता है, तो एक आंख परमात्मा की तरफ लगी रहती है। इस परम धाम को जब तक हम न पा लें, तब तक हम ऐसी चीजों कि प्रार्थना सुनी या नहीं! दूसरी आंख पीछे देखती रहती है कि लोग | को पाते चले जाएंगे, जिन्हें न पाया होता तो कुछ हर्ज न था, और पा कोई देख रहे हैं कि नहीं कि मैं कितनी प्रार्थना कर रहा हूं, कैसा लिया तो कुछ पाया नहीं। धार्मिक आदमी हूं! लेकिन आदमी खाली नहीं बैठ सकता। आदमी कुछ तो पाता ही मुल्ला नसरुद्दीन गिर पड़ा है। एक धूप से भरी हुई दोपहर है। रहेगा। कुछ तो करता ही रहेगा। यह मकान बनाएगा, और बड़ा सड़क पर गिर पड़ा है। बड़ी भीड़ लग गई। दोनों आंखें उसकी बंद | | मकान बनाएगा। यह दुकान खोलेगा, और बड़ी दुकान खोलेगा। हैं। बेहोश हालत है। कोई कहता है, इसको जूता संघा दो, इसे होश कुछ न कुछ करता ही रहेगा। और सब कुछ करके भी पाएगा कि आ जाएगा। कोई कहता है, सिर पर मालिश करो। कोई कहता है, कुछ पाया नहीं, तो फिर कुछ और करने में लग जाएगा। 121]
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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