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________________ *गीता दर्शन भाग-44 हो! कभी वृक्ष देखे हैं? ये चांद-तारे नीचे पड़ गए और वृक्ष ऊपर से प्राप्त हो जाती है। ये दो शब्द आखिर में समझ लें। चले जा रहे हैं? ये जमीन से लेकर आकाश को छेद रहे हैं? कभी । अनन्य भक्ति, ऐसी भक्ति जो संपूर्ण रूप से, समग्र रूप से, वृक्ष देखे हैं? वानगाग ने कहा, तुमने जो वृक्ष देखे हैं, वे शायद | | एक निष्ठा से परमात्मा की तरफ हो। एक निष्ठा से परमात्मा की मैंने नहीं देखे होंगे। मैंने जो वृक्ष देखे हैं, वे शायद तुमने नहीं देखे | | तरफ हो। निष्ठा जरा भी यहां-वहां खंडित न होती हो, भागती न हैं। उन्होंने कहा, मतलब तुम्हारा! हो। बंटी हुई निष्ठा उस तक नहीं पहुंचा पाएगी। बंटी हुई निष्ठा तो वानगाग कहता था, जब भी मैं किसी वृक्ष को देखता हूं, तो संसार के गेस्टाल्ट में ले जाती है। एक निष्ठा संसार के गेस्टाल्ट थोड़ी ही देर में उसके पत्ते खो जाते, उसकी शाखाएं खो जाती, | से ऊपर उठाती है। उसके कारण हैं। उसकी जड़ें खो जातीं, उसकी देह खो जाती। फिर तो मुझे पीछे ऐसा - संसार का अर्थ है, बहुत वस्तुएं, अनेक। अगर अनेक के बीच ही लगता है कि वृक्ष पृथ्वी की फैली हुई आकांक्षाएं हैं आकाश को | जीना है, तो आपके भीतर अनेक आकांक्षाएं और अनेक निष्ठाएं छूने की। पृथ्वी की आकांक्षाएं, आकाश को छूने की। वृक्ष की | | होनी चाहिए। परमात्मा का अर्थ है, एक। अगर एक को पाना है, रूपरेखा मुझे खो जाती और पृथ्वी की आकांक्षाएं मुझे वृक्षों में लपट | | तो एक निष्ठा, एक आकांक्षा, एक अभीप्सा होनी चाहिए। एक को की तरह, हरी लपटों की तरह-ग्रीन फ्लेम्स-आकाश की तरफ | | पाना हो, तो आपको भी एक होना चाहिए। अनेक को पाना हो, तो भागती मालूम पड़ने लगती हैं। पृथ्वी कोशिश कर रही है आकाश | | आप अनेक में विभाजित होकर जी सकते हैं। से आलिंगन का. ऐसा ही मझे दिखाई पडा है। चंकि हम संसार को पाने में लगे हैं. इसलिए हमारे एक-एक लेकिन ऐसा जिसे दिखाई पड़ेगा, उसे फिर वृक्ष के पत्ते वगैरह आदमी के भीतर अनेक-अनेक आदमी होते हैं। सच तो यह है, दिखाई नहीं पड़ेंगे। और जिसे वृक्ष के पत्ते वगैरह दिखाई पड़ेंगे, उसे | | हममें से कोई भी एक नहीं होता। क्राउड, एक भीड़ होती है हर वृक्षों के भीतर यह जो प्राण की ऊर्जा है भागती हुई, यह दिखाई नहीं | | आदमी के भीतर। आप भी पहचान सकते हैं कि आपके भीतर बहुत पड़ेगी। जिसको फूल में केवल केमिकल्स दिखाई पड़ेंगे, उसे | चेहरे होते हैं, बहुत आदमी होते हैं आपके भीतर। मनोविज्ञान कहता सौंदर्य नहीं दिखाई पड़ेगा; और जिसे सौंदर्य दिखाई पड़ेगा, उसे | है, आदमी मल्टी-साइकिक है, बहु-चित्तवान है। उसके भीतर केमिकल्स का कोई पता नहीं होगा। गेस्टाल्ट का भेद है। बहुत चित्त हैं। और एक चेहरा दूसरे चेहरे से भी अपरिचित बना . कृष्ण कहते हैं, यह जगत, इसका सब कुछ परमात्मा से परिपूर्ण | रहता है। परिचय का मौका ही नहीं आता। है, उसी से भरा हुआ है। मुल्ला नसरुद्दीन एक नाव में यात्रा कर रहा है और नाव डूब हम चारों तरफ देखते हैं, वह कहीं दिखाई नहीं पड़ता। हमारा | | जाती है। शिष्ट आदमी है, सज्जन आदमी है, नियम का पालन गेस्टाल्ट गलत है। या हमारा गेस्टाल्ट संसार को देखने वाला है। करता है। नाव डूब जाती है, अनेक यात्री मर जाते हैं, कुछ किनारों हमें अपना गेस्टाल्ट बदलना पड़ेगा। की तरफ तैरकर निकलने की कोशिश करते हैं। मुल्ला को एक इस गेस्टाल्ट की बदलाहट की प्रक्रिया का नाम योग है। इस | लकड़ी का पटिया मिल जाता है, एक और यात्री को भी मिल जाता गेस्टाल्ट की बदलाहट की प्रक्रिया का नाम धर्म है। इस गेस्टाल्ट | | है। एक दिनभर बीत गया, दोनों पटिए पर सहारा लिए चल रहे हैं, को बदलने की चेष्टा ही साधना है। लेकिन अभी कोई बातचीत नहीं हुई। बड़ी कठिनाई है, कठिनाई यह __तब जगत में पदार्थ नहीं दिखाई पड़ता, परमात्मा ही दिखाई | है कि दोनों सज्जन आदमी हैं और उनका पहले किसी ने परिचय पड़ता है। एक क्षण ऐसा आता है कि जगत में उसके अतिरिक्त कुछ | कराया नहीं और अब कोई परिचय कराने वाला नहीं। वे दोनों ही भी दिखाई नहीं पड़ता, वही शेष रह जाता है। सब रेखाएं उसी में | | हैं। लकड़ी के पटिए को पकड़े हैं और किसी ने परिचय कराया लीन हो जाती हैं। और सब नदियां पदार्थ की उसी के सागर में डूब नहीं, तो बिना परिचय कराए किसी से बोलना! जाती हैं और मिल जाती हैं। आखिर दूसरे आदमी के बरदाश्त के बाहर हो जाती है वह सनातन अव्यक्त परम पुरुष अनन्य भक्ति से प्राप्त होने सज्जनता। कभी-कभी सज्जनता बड़ी बरदाश्त के बाहर हो जाती योग्य है। है। आखिर वह कहता है कि महाशय, हद्द हो गई! औपचारिकता और यह जो परम सत्ता व्याप्त है सब जगह, यह अनन्य भक्ति | की भी हद्द हो गई। आप बोल क्यों नहीं रहे हैं? नसरुद्दीन ने कहा
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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