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________________ अक्षर ब्रह्म और अंतर्यात्रा * और जिस परमात्मा से यह जगत परिपूर्ण है, वह सनातन अव्यक्त परम पुरुष अनन्य भक्ति से प्राप्त होने योग्य है। और जिस परमात्मा से यह जगत परिपूर्ण है ! लेकिन हमें तो कहीं परमात्मा दिखाई नहीं पड़ता। और कृष्ण कहते हैं कि जिस परमात्मा से यह जगत परिपूर्ण है। वह हमें कहीं दिखाई नहीं पड़ता। हमें सब कुछ दिखाई पड़ता है परमात्मा को छोड़कर। हमें सब कुछ दिखाई पड़ता है, आदमी, वृक्ष, पत्थर, हीरे-जवाहरात, आकाश, चांद-तारे, सब दिखाई पड़ता है, सिर्फ परमात्मा दिखाई नहीं पड़ता। और ये कृष्ण जैसे लोग निरंतर कहे जाते हैं कि और सब कुछ भी नहीं है, परमात्मा ही है। जरूर कहीं कोई बात है। पश्चिम में एक नई साइकोलाजी पिछले पचास वर्षों में विकसित हुई है । उस साइकोलाजी का नाम है, गेस्टाल्ट साइकोलाजी, गेस्टाल्ट मनोविज्ञान। यह गेस्टाल्ट शब्द ऐसा है कि इसका अनुवाद नहीं हो सकता है। इसलिए थोड़ा मैं आपको समझा दूं, तो खयाल में आ सके। .. गेस्टाल्ट जर्मन शब्द है । और गेस्टाल्ट का मतलब होता है, एक रूप-रेखा, जो मन को पकड़ ले, तो उससे विपरीत रूप-रेखा दिखाई नहीं पड़ती। इसे ऐसा समझें। कभी आपने बच्चों की किताबों में ऐसी तस्वीरें देखी होंगी। बच्चों की किताब में ऐसी तस्वीर अक्सर होती है कि दो चेहरे आदमियों के एक-दूसरे को देखते हुए बने हैं—नाक नाक के पास, होंठ होंठ के पास, दाढ़ी दाढ़ी के पास दो चेहरे बने हैं, काले। इस चित्र को आप दो तरह से देख सकते हैं। अगर बीच की सफेद जगह को देखें, तो मालूम पड़ेगा कि कोई फूलों का गमला रखा है। अगर आप काले चेहरों पर ध्यान दें, तो फूलों का गमला खो जाएगा और दो चेहरे दिखाई पड़ेंगे आमने-सामने। और मजा यह है कि जब आप काले चेहरों को देखेंगे, तो आपको गमला नहीं दिखाई पड़ेगा। और जब आप गमले पर ध्यान देंगे, तो चेहरे दिखाई नहीं पड़ेंगे। दोनों एक साथ दिखाई नहीं पड़ेंगे। या बच्चों की किताब में कभी इस तरह के चित्र भी होते हैं कि एक ही चित्र में, रेखाओं में जवान स्त्री का चित्र होता है एक, और उसी रेखाओं के बीच छिपा हुआ एक बूढ़ी स्त्री का चित्र होता है। जब आपको जवान स्त्री की रेखाएं दिखाई पड़ेंगी, तो बूढ़ी स्त्री दिखाई नहीं पड़ेगी। और जब बूढ़ी स्त्री की रेखाएं दिखाई पड़ेंगी, तो जवान स्त्री दिखाई नहीं पड़ेगी। और ऐसा नहीं है कि आपको | पता नहीं है इसलिए, आपने दोनों देख ली हैं। एक दफा जवान देख ली, फिर क्षणभर बाद आपको बूढ़ी स्त्री भी मिल गई। अब आप जानते हैं कि दोनों स्त्रियां उस चित्र में मौजूद हैं। लेकिन अभी भी | जब भी आप देखेंगे, एक ही दिखाई पड़ेगी, दूसरी दिखाई नहीं पड़ेगी। क्योंकि एक ही रेखाओं से दोनों की बनावट है। जब आप एक रेखा का उपयोग जवान स्त्री के लिए कर लेते हैं, बूढ़ी स्त्री के लिए रेखा नहीं बचती । और जब आप उसी रेखा का उपयोग बूढ़ी स्त्री के लिए कर लेते हैं, तो जवान स्त्री नहीं बचती । इसको गेस्टाल्ट कहते हैं। एक चित्र में दो चित्रों की संभावना है, लेकिन एक चित्र देखें, तो दूसरा दिखाई नहीं पड़ता । यह जगत एक गेस्टाल्ट है। इस जगत में जब तक आपको पदार्थ दिखाई पड़ते हैं, तब तक परमात्मा नहीं दिखाई पड़ता । क्योंकि जहां पदार्थ समाप्त होते हैं, उनकी जो समाप्त होने की रेखा है, वही परमात्मा के प्रारंभ होने की रेखा है। इसलिए जिस आदमी को पदार्थ दिखाई पड़ता है, वह कहता है, कहां है परमात्मा ? कहीं नहीं है। और जिसको परमात्मा दिखाई पड़ता है, वह पूछता है, कहां है संसार ? कहां है पदार्थ ? कहीं कोई नहीं है। इसलिए शंकर जैसा ज्ञानी कहता है कि संसार नहीं है। मार्क्स जैसा ज्ञानी कहता है कि संसार ही है, परमात्मा नहीं है। पदार्थवादी कहता है, पदार्थ है। परमात्मवादी कहता है, परमात्मा है। और मामला गेस्टाल्ट का है। उन्हीं रेखाओं का उपयोग हम कर रहे हैं। जब मैं आप पर ध्यान देता हूं, तो आप दिखाई पड़ते हैं; लेकिन आपके आस-पास का जो फैलाव है आकाश का, वह दिखाई नहीं पड़ता । परमात्मा का खोजी धीरे-धीरे दूसरे गेस्टाल्ट को देखना शुरू करता है। जब भी वह कोई चीज देखता है, तो दृष्टि चीज पर नहीं रखता, उस चीज के भीतर छिपे हुए प्राण पर रखता है। जब वह वृक्ष के पास खड़ा | होता है, तो वृक्ष की पदार्थ - रेखाओं को नहीं देखता, वृक्ष के भीतर | जो लपट की तरह उठता हुआ जीवन है आकाश की ओर, उसको | देखता है। विनसेंट वानगाग ने वृक्षों के शायद पृथ्वी पर सर्वाधिक सुंदर | चित्र चित्रित किए हैं। लेकिन उसके वृक्षों को समझना बहुत | मुश्किल है। क्योंकि उसके वृक्ष जमीन से उठते हैं और ठेठ आकाश को पार करते चले जाते हैं, चांद-तारे नीचे रह जाते हैं और वृक्ष ऊपर निकल जाते हैं! वानगाग को उसके मित्रों ने पूछा कि तुम पागल तो नहीं हो गए 119
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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