________________
* गीता दर्शन भाग-44
हमारी जिंदगी का तर्क ऐसा है कि अगर एक मकान मैं बना लूं बैठे रहें। अगर आप अपनी जगह पर बैठे रहें, तो मैं संन्यासियों को और सुख न मिले, तो मैं सोचता हूं, इतने छोटे-से मकान से कहां | खड़े होकर कीर्तन करने की आज्ञा दूं। आप बैठे रहें, उनको खड़े सुख मिलेगा! थोड़ा बड़ा मकान बनाना चाहिए। वह उतना बड़ा | होकर कीर्तन कर लेने दें। आप वहीं अपनी जगह पर बैठे रहें। बना लूं, फिर भी मेरा तर्क कहेगा, इतने से नहीं मिला, साफ जाहिर होता है कि थोड़ा और बड़ा मकान चाहिए। इसी तरह मैं दौड़ता रहूंगा। कभी भी यह खयाल नहीं आता कि जब छोटे मकान में कम से कम थोड़ा तो सुख मिलना चाहिए था, तो बड़े में थोड़ा और ज्यादा मिल जाता! थोड़े में थोड़ा भी नहीं मिला, छोटे में छोटा सुख भी नहीं मिला, तो बड़े में भी नहीं मिल सकता है। मैं कहीं कुछ गलत काम में लगा हूं। मैं सिर्फ आकुपाइड हूं, मैं सिर्फ व्यस्त होने की कोशिश में लगा हूं। खालीपन घबड़ाता है, तो भरता रहता हूं-कभी धन से, कभी यश से, कभी पद से—कुछ न कुछ, कुछ न कुछ काम से अपने को भरता रहता हूं।
लेकिन कितना भी भरूं अपने को, कितने ही कामों से, खाली ही रह जाऊंगा। सिवाय परमात्मा के और कोई चीज वस्तुतः किसी को भर नहीं सकती। उस भराव के साथ ही फुलफिलमेंट है, उस भराव के साथ ही भराव है। उसके पहले हर आदमी खाली है।
इसलिए पश्चिम में इधर पचास वर्षों में और पश्चिम का प्रभाव तो सारे पूरब पर भी छा गया है—पचास वर्षों में जितने | जीवन-दर्शन पैदा हुए हैं, वे सभी जीवन-दर्शन एक बात पर खड़े हैं कि आदमी की जिंदगी में भराव नहीं है. खाली है. एंप्टी है. रिक्त है। इनकी रिक्तता का कारण है, क्योंकि पिछले पचास वर्षों में पश्चिम और पश्चिमी विचारधारा के प्रभावी लोगों ने परमात्मा को इस तरह इनकार किया है, जैसा इनकार इसके पहले मनुष्य के इतिहास में कभी भी नहीं हुआ।
जितना हम परमात्मा को इनकार करेंगे. उतना ही हम एंप्टी और खाली अपने को अनुभव करेंगे। और फिर उस खालीपन को न एटम से भर सकते हो, न हाइड्रोजन बम से भर सकते हो। उस खालीपन को, बड़ी से बड़ी युनिवर्सिटियां खड़ी करो, नहीं भर पाओगे। उस खालीपन को, बड़े महल खड़े करो, सौ डेढ़ सौ मंजिल ऊंचे, आकाश को छूने लगें, वह खालीपन बिलकुल नहीं छुआ जाएगा। वह खालीपन किसी और चीज से कभी भरता ही नहीं। वह सिर्फ एक से ही भरता है, जिससे वह पहले से ही भरा हुआ है। उसको ही जान लेने से भरापन उपलब्ध होता है।
आज इतना ही। लेकिन पांच मिनट जाएंगे नहीं। पांच मिनट अपनी जगह पर ही |
122