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अक्षर ब्रह्म और अंतर्यात्रा *
इस समय पश्चिम में एक क्रांति चलती है - खास कर नई पीढ़ी में, यंगर जेनरेशन में — और हजारों तरह के प्रयोग पश्चिम में किए जा रहे हैं। रासायनिक द्रव्यों को लेकर, केमिकल ड्रग्स को लेकर - एल एस डी है, मारिजुआना है, मैस्कलीन है, हशीश है, गांजा है, भांग है— इन सब पर बहुत प्रयोग चलते हैं। और उस प्रयोग के पीछे एक आशा काम करती है, एक अभिलाषा है कि किसी भांति चेतना विस्तीर्ण कैसे जाए, एक्सपेंशन आफ कांशसनेस । चेतना फैल कैसे जाए, बड़ी कैसे हो जाए, विस्तार कैसे हो जाए।
चाहे रासायनिक द्रव्यों से वह बात न हो सके, लेकिन आकांक्षा बड़ी प्राचीन है, बड़ी प्राचीन है। आदमी की आकांक्षा एक ही है कि चेतना इतनी विस्तीर्ण कैसे हो जाए कि चेतना में सब कुछ घिर जाए और समा जाए, चेतना के बाहर कुछ न रह जाए। जिस दिन चेतना के बाहर कुछ नहीं रह जाता और चेतना में सभी कुछ समा जाता है, कांशसनेस एक आकाश बन जाती है, एक स्पेस, और सभी कुछ उसमें समा जाता है। उस दिन पाने योग्य फिर कुछ नहीं बचता; उस दिन खोने का भी कोई डर नहीं रह जाता; उस दिन मृत्यु का भय नहीं होता; उस दिन अमृत के झरने स्वयं में ही फूट पड़ते हैं । उस दिन परिवर्तन का कोई कारण नहीं; उस दिन शाश्वत तो स्वयं का घर बन जाता है।
इस परम चेतना के संबंध में ही कृष्ण कह रहे हैं कि वह जो परमात्मा है, उसके अंतर्गत सर्वभूत हैं।
एक जीसस का वचन इस संबंध में कहने जैसा है। जीसस के पास एक अंधेरी रात में निकोडेमस नाम का युवक आया और उस युवक से जीसस ने कहा कि तू मेरे पास किसलिए आया है? क्या तू चाहता है कि तुझे और धन मिल जाए मेरे शुभाशीषों से ? या तू चाहता है कि तेरे जीवन में सफलता आए मेरे संपर्क से? क्या तू इसीलिए मेरी प्रार्थना को आया है, ताकि मेरी शुभकामनाएं तेरे ऊपर बरस पड़ें और तू संसार में उपलब्धियों की दिशा पर गतिमान हो सके ? '
निकोडेमस ने कहा, हे प्रभु, आपने पहचाना कैसे ? आया मैं इसीलिए हूं कि और मेरा धन कैसे बढ़े ! और मेरा राज्य कैसे बड़ा हो ! और वस्तुओं का मैं मालिक कैसे हो जाऊं ! मुझे कोई एक ऐसा सूत्र दे दें, कोई एक राज बता दें, एक गुर ऐसा मुझे दे दें कि उसी के सहारे मैं जहां भी कदम रखूं, सफल हो जाऊं; जो भी मेरी महत्वाकांक्षा हो, पूरी हो। इधर मैं कामना करूं कि वहां पूर्ति हो
| जाए। मुझे कुछ ऐसा राज बता दें, जो कल्पवृक्ष हो जाए ।
तो जीसस ने जो राज बताया, निकोडेमस की तो समझ में नहीं आया, लेकिन समस्त धर्मों का सार उस सूत्र में है। जीसस ने कहा, सीक यी फर्स्ट दि किंगडम आफ गॉड, देन आल एल्स शैल बी एडेड अनटु यू । तू पहले प्रभु को खोज ले, और शेष सब उसके पीछे चला आएगा। तू पहले प्रभु का राज्य खोज ले, और फिर शेष सब उसके पीछे अपने से चला आएगा।
लेकिन उस निकोडेमस ने कहा कि पहले तो मुझे शेष सबको खोजने दें। अभी प्रभु को खोजने की मेरी उम्र नहीं हुई !
कल एक बूढ़े सज्जन मेरे पास आए। सत्तर से कम तो उनकी उम्र न होगी। वे मुझसे पूछने आए कि आपने युवकों को संन्यास कैसे दे दिया है? शास्त्रों में कहा हुआ है कि संन्यास तो अं अवस्था में लेना चाहिए!
अब अगर शास्त्रों को ही वे मानते हों, तो उनको संन्यासी होकर आना चाहिए था। सत्तर साल की उम्र है । शास्त्रों वगैरह को वे मानते नहीं हैं जरा भी। नहीं तो संन्यासी होकर आना चाहिए था। | अभी उन्होंने संन्यास नहीं लिया है। लेकिन किसी युवक को क्यों संन्यास दे दिया है, इसके लिए वे पूछने आए हैं, कि इससे तो बड़ी हानि हो जाएगी !
परमात्मा को खोजने के लिए उम्र की कोई शर्त नहीं है । और कभी तो बूढ़े भी नहीं खोज पाते, और कभी बच्चे भी खोज लेते हैं। और जिन्हें हम बूढ़े और बच्चे कहते हैं, उनमें भी कौन बूढ़ा है और कौन बच्चा है, यह इतना आसान है तय करना। क्योंकि अगर बुढ़ापे का कोई भी अर्थ होता हो, तो बुद्धिमत्ता होगी। तो बूढ़े भी | नासमझ हो सकते हैं, बच्चे भी समझदार हो सकते हैं।
निकोडेमस ने कहा कि अभी तो मेरी उम्र भी कहां कि मैं परमात्मा को खोजूं। आप भी कैसी बात करते हैं !
यद्यपि उसकी उम्र जीसस से ज्यादा थी, जिससे वह पूछने आया था। जीसस की तो सूली ही तैंतीस वर्ष में लग गई। जीसस ने लेकिन उसे जो सूत्र दिया और कहा, सीक यू फर्स्ट दि किंगडम आफ गॉड एंड देन आल एल्स शैल बी एडेड अनटु यू, और तब सब तुझे अपने आप मिल जाएगा। अगर तू गुर की बात पूछता है, | राज की, तो बता देता हूं। पहले प्रभु को खोज ले।
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लेकिन प्रभु को खोजने से शेष सब कैसे मिल जाएगा ?
कृष्ण
के इस सूत्र में है वह अर्थ । हे पार्थ, जिस परमात्मा के अंतर्गत सर्वभूत हैं... ।