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* गीता दर्शन भाग-4
की रोशनी, उनकी सुगंध जल्दी ही फैलने लगी। जब कोई फूल तो मैं चकित हो गया, क्योंकि अचानक उस बुद्धपुरुष ने अपना सिर खिल जाए मनुष्य की चेतना में, तो फिर किसी को बलाने नहीं जाना मेरे चरणों में रख दिया। पड़ता, खबर पहुंचनी शुरू हो जाती है। लोग आने लगे। दूर-दूर | | मैं तो बहुत घबड़ा गया। और मैंने उन्हें उठाकर कहा कि मुझे तक खबर फैल गई कि कोई बुद्धत्व को प्राप्त हो गया। लोगों की | | क्षमा करें! मुझसे कुछ भूल हो गई? आप मेरे चरणों में सिर रखें, भीड़ लग गई और लोग हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे कि हमें | यह तो उलटा मुझ पर पाप हो गया। मुझसे पाप हो गया। अगर मुझे बताओ कि तुमने क्या पा लिया है? गौतम, हमें कहो कि तुमने क्या | | पता होता, तो मैं आपको पहले ही रोक लेता। मैं तो अज्ञानी हूं। मैंने पा लिया है?
आपके चरणों में सिर रखा, वह ठीक है। पर आपने मेरे चरणों में तो बुद्ध ने जो पहला वचन कहा, वह बहुत हैरानी का है। बुद्ध क्यों सिर रखा? ने कहा, अगर तुम पूछते हो कि मैंने क्या पा लिया, तो तुम मुझे | | तो उस बुद्धपुरुष ने बुद्ध को कहा, उस ज्ञानी ने बुद्ध को कहा मुश्किल में डालते हो। क्योंकि मैंने वही पा लिया है, जो सदा से कि मुझे पता है मंजिल का, वह मुझे मिल भी गई, मुझे पता भी है, पाया ही हुआ था। लोग पूछने लगे कि पहेलियों में मत कहो। हम | पर मुझ में और तुझ में ज्यादा फर्क नहीं है। मंजिल तो उतनी की सीधे-सादे लोग हैं, हमें ठीक से समझाओ। तुम्हारी उपलब्धि क्या उतनी तेरे भीतर भी मौजूद है, बस तुझे जरा पता नहीं। जो हीरा मेरे है? तो बद्ध ने कहा, उपलब्धि के नाम पर कोई भी उपलब्धि नहीं | पास है, वही हीरा तेरे पास है। मुझे पता है, तुझे पता नहीं। लेकिन है। मैने खोया तो जरूर कुछ, पाया कुछ भी नहीं। | हीरे के होने में जरा फर्क नहीं है। तो मैं तुझे इसलिए नमस्कार करता
लोग बहुत हैरान हुए। उन्होंने कहा कि हमने तो सदा से सुना है | | हूं, ताकि तुझे याद रहे कि तेरे भीतर भी वह हीरा है कि बुद्धपुरुष कि जब ज्ञान होता है, तो कुछ मिलता है। आप कैसी बात करते हैं! | | तेरे चरणों में सिर रखे। और आज नहीं कल, जब तुझे पता चल तो बुद्ध ने कहा, मैंने अज्ञान तो खोया। अब मैं हैरान हूं कि मैंने उस | जाएगा, तब त मेरी बात समझ लेगा। अज्ञान को पा कैसे लिया था। उसे मैंने खोया। और जो ज्ञान मैंने | | और जब एक जन्म के बाद बुद्ध को ज्ञान हुआ, तब उन्होंने जो पाया है, अब मैं तुमसे कैसे कहूं कि उसे मैंने पाया है, क्योंकि अब | | पहले अपने हाथ जोड़कर किसी के चरणों में झुकाए, वे वे ही मैं जानता हूं कि वह सदा से ही मेरे पास था।
अज्ञात चरण थे, जो अब तो खोजे से मिल नहीं सकते थे। वे अज्ञात' तो बुद्ध कहते कि ऐसा समझो कि किसी भिखारी के खीसे में चरण, वह अज्ञात व्यक्ति, जिसने उनके चरणों में सिर रख दिया हीरा पड़ा हो और वह भीख मांगता फिरे। फिर एक दिन अचानक था। जानते हुए ज्ञानी ने अज्ञानी के चरण में सिर रख दिया था, सिर्फ वह खीसे में हाथ डाले, हीरा सामने आ जाए। तो क्या वह कहेगा इस आशा में कि आज नहीं कल इस अज्ञानी को भी पता तो चल कि मैंने हीरा पाया? वह हीरा तो बहुत दिन से उसके साथ ही था, । | ही जाएगा कि उसके भीतर भी ज्ञान का उतना ही सागर है, रत्तीभर सदा से उसके साथ ही था, सिर्फ उसे पता नहीं था।
भी कम नहीं। परम धाम वह है, जो अभी भी हमारे साथ है और हमें पता नहीं। परम धाम का अर्थ है, ऐसी मंजिल, जो हमें मिली ही है और परम मंजिल वह है, जिसे हम अपने हृदय के कोने में लिए हुए चल | फिर भी हमें पता नहीं। रहे हैं, खोज रहे हैं। निरंतर जो मौजूद है और हमें पता नहीं। बस, __ और हे पार्थ, जिस परमात्मा के अंतर्गत सर्वभूत हैं और जिस पता नहीं है। इतना ही फर्क पड़ेगा पहुंचकर, जानकर, पता हो | परमात्मा से यह जगत परिपूर्ण है, वह सनातन अव्यक्त परम पुरुष जाएगा; और कोई भी फर्क नहीं पड़ेगा।
अनन्य भक्ति से प्राप्त होने योग्य है। बुद्ध ने अपने पिछले जन्म का स्मरण किया है और कहा है कि जिस परमात्मा के अंतर्गत सर्वभूत हैं! मेरे पिछले जन्म में, सुना मैंने—गौतम बुद्ध के जन्म के पहले जन्म निश्चित ही, भूतों के अंतर्गत परमात्मा नहीं है। पदार्थ के अंतर्गत में, जब वे बुद्ध नहीं हुए थे-तो बुद्ध ने कहा है कि मैंने सुना था | | परमात्मा नहीं है, लेकिन परमात्मा के अंतर्गत पदार्थ हैं। जैसे विराट अपने पिछले जन्म में कि कोई व्यक्ति ज्ञान को उपलब्ध हो गया है, | | आकाश सब पदार्थों को घेरे हए है. ऐसा ही विराट परमात्म-चैतन्य तो मैं उसके दर्शन करने को गया था। जब मैं उसके चरणों में झुका | | समस्त आकाशों को भी घेरे हुए है। चेतना इस जगत में सर्वाधिक और मैंने सिर उसके पैरों में रखा, और जब मैं उठकर खड़ा हुआ, | विस्तार है, सबसे बड़ा विस्तार है।
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