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* गीता दर्शन भाग-4 *
रहे हो!
अव्यक्त नहीं रखना पड़ता, सब भांति अपने को अभिव्यक्त कर | चले जा रहे हैं, दौड़ रहे हैं, परेशान हो रहे हैं, वही है हमारे भीतर, देना पड़ता है, द्वार-दरवाजे खुले छोड़कर।।
जिसे हम परेशान किए दे रहे हैं। जो व्यक्ति अपने को बिलकुल उघाड़ा कर लेता है...। जैसे मुल्ला नसरुद्दीन बहुत चिंतित है। उसका चिकित्सक उससे महावीर नग्न खड़े हो गए। वह नग्न खड़ा होना सिर्फ प्रतीक है इस कहता है, इतनी चिंता क्या? चिंता के कारण ही नसरुद्दीन तुम बूढ़े बात का कि जिसे भी परमात्मा को जानना हो, जिसे भी उस हुए जा रहे हो। नसरुद्दीन कहता है, यह मैं समझा। अब मैं आपको अनउघड़े हुए को उघाड़ना हो, उसे अपने को बिलकुल उघाड़कर अपनी चिंता बता दूं। कहीं मैं बूढ़ा न हो जाऊं, इसी की मैं चिंता में नग्न, वलनरेबल, सब तरह से खुला हुआ छोड़ देना चाहिए। जो लगा हूं। और तुम कहते हो कि चिंता के कारण ही तुम बूढ़े हुए जा व्यक्ति अपने को पूरी तरह उघाड़कर, सब द्वार-दरवाजे खोलकर,
ओपन, खुला हुआ हो जाता है, आकाश की भांति, परमात्मा जो ऐसा ही विशियस सर्किल है, ऐसा ही दुष्चक्र है। चिंता के कारण सनातन अव्यक्त है, उसके समक्ष–वह तो बचता ही नहीं इतने आदमी बूढ़ा हुआ जा रहा है। बूढ़ा हुए जाने के कारण चिंता कर उघड़ेपन में प्रकट हो जाता है। यह प्रकटीकरण बहुत और तरह रहा है। अब इसे कहां से तोड़ना है!
का प्रकटीकरण है। क्योंकि इसमें परमात्मा को हम उघाड़ते ही नहीं, किसे खोज रहे हैं आप? किसकी तलाश है? जो तलाश कर रहा सिर्फ अपने को उघाड़ते हैं।
| है, वही उसी की तलाश है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को छोड़कर और इसे हम ऐसा भी समझ लें कि ढंके हुए हम मनुष्य हैं, उघड़कर कुछ भी नहीं खोज रहा है। लेकिन स्वयं को कैसे खोज सकेगा? हम परमात्मा हो जाते हैं। ढंके हुए हम मनुष्य हैं, उघड़कर हम । मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन गया है अपने शराबघर में और उसने परमात्मा हो जाते हैं। कोई हमारे सामने नहीं आता, अचानक हम जाकर पूछा कि मैं पूछने आया हूं कि क्या शेख रहमान इधर अभी पाते हैं उघड़ते ही कि जिसे हम खोजते थे, वह तो मैं स्वयं हूं। जिस | थोड़ी देर पहले आया था? शराबघर के मालिक ने कहा कि हां, अक्षर की तलाश थी, वह तो मेरे भीतर बैठा है। जिस कील के लिए | घड़ीभर हुई, शेख रहमान यहां आया था। मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा हमने बैलगाड़ी पर बैठकर इतनी यात्रा की, उसी कील पर बैलगाड़ी कि चलो इतना तो पता चला। अब मैं यह पछना चाहता है कि क्या का चाक चलता था।
| मैं भी उसके साथ था? मुल्ला नसरुद्दीन भागा जा रहा है अपने गधे पर बैठा हुआ गांव | | काफी पी गए हैं। वे पता लगाने आए हैं कि कहीं शराब तो नहीं से, तेजी से। बड़ी तेजी में है, और कोड़े चला रहा है। बाजार में | पी ली! काफी पी गए हैं, अब पता लगाने आए हैं कि कहीं शराब लोग उससे पछते हैं कि नसरुद्दीन, कहां भागे जा रहे हो? वह तो नहीं पी ली। इतना खयाल है कि शेख रहमान के साथ थे। दूसरे कहता है, मेरा गधा खो गया। मैं जरा तेजी में हूं। मुझे रोको मत। का खयाल बेहोशी में बना रहता है, अपना भूल जाता है। शेख कोई आदमी चिल्लाता है कि नसरुद्दीन, लेकिन तुम गधे पर सवार रहमान साथ था, इतना खयाल है। तो शेख रहमान अगर यहां हो। नसरुद्दीन कहता है, तुमने अच्छा बता दिया। मैं इतनी तेजी में आया हो, तो मैं भी आया होऊंगा। और अगर वह पीकर गया है, था कि मुझे खयाल ही न आता। इतनी तेजी में था खोज की कि मुझे | तो मैं भी पीकर गया हूं। खयाल ही न आता!
__ दूसरे से हम अपना हिसाब लगा रहे हैं। हम सब को अपना तो हम जिसे खोज रहे हैं, जानने वाले कहते हैं, हम उसे कभी न कोई खयाल नहीं है, दूसरे का हमें खयाल है। इसलिए हम दूसरे की खोज पाएंगे, क्योंकि उस पर ही हम सवार हैं। लेकिन तेजी इतनी | तरफ बड़ी नजर रखते हैं। अगर चार आदमी आपको अच्छा आदमी है कि हम अनंत-अनंत यात्रा कर लेंगे, और तेजी इतनी है कि हमें कहने लगें, तो आप अचानक पाते हैं कि आप बड़े अच्छे आदमी हो स्मरण भी न आएगा कि जिसके ऊपर सवार होकर हम खोज रहे | गए। और चार आदमी आपको बुरा कहने लगें, आप अचानक पाते हैं, वही हमारी खोज है, वही हमारा गंतव्य है। जिसे हम पाने चले हैं, सब मिट्टी में मिल गया: बरे आदमी हो गए! आप भी कछ हैं? हैं, उसे हम पाए ही हुए हैं। जिसके लिए हम हाथ फैला रहे हैं, वही या ये चार आदमी जो कहते हैं, वही सब कुछ है? हमारे हाथों में फैला हुआ है। और जिसके लिए हमने तृष्णा के जाल | इसलिए आदमी दूसरों से बहुत भयभीत रहता है कि कहीं कोई बोए, वही हमारी तृष्णाओं का तंतु है। और जिसके लिए हम भागे | निंदा न कर दे, कहीं कोई बुराई न कर दे, कहीं कोई कुछ कह न दे
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