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________________ * अक्षर ब्रह्म और अंतर्यात्रा * है, वही मेरा घर है। बाकी सब रास्ते के पड़ाव हैं, जहां आदमी | | कुछ भी न कह सकूँगा, देन समथिंग हैज बीन सेड, तब कुछ कहा ठहरता है क्षणभर और आगे बढ़ जाता है, मंजिल नहीं है। परमात्मा | ही गया, तब कुछ कह ही दिया। और यह भी कहना ही है, प्रकट की मंजिल। और सबके भीतर परमात्मा छिपा है, उसी यात्रा पर, | | करना ही है। उसी परमात्मा की मंजिल के लिए। वह मंजिल कहां है? तो रहस्यवादी बड़ी मुश्किल में हैं कि वे क्या करें! या तो वे कृष्ण कहते हैं, सनातन अव्यक्त, तो जो सदा से अप्रकट है, जो | | कहना बंद कर दें; अगर वे सच में ही जानते हैं कि वह अव्यक्त सदा से ही छिपा है, इटरनली हिडेन, जिसे कभी कोई खोल नहीं। | है, प्रकट नहीं किया जा सकता, भाषा बोल नहीं सकती, वाणी के पाया, जिसे कभी कोई उघाड़ नहीं पाया, जिसके पर्दे कभी कोई गिरा पार है, तो चुप हो जाएं। नहीं पाया; उस सदा से, अनादि से, अनंत तक के लिए छिपे हुए लेकिन अगर वे चुप हो जाएं, तो इतना भी नहीं कह सकते कि को पा लेने वाला वापस नहीं लौटता। वही मेरा परम धाम है। | वह अव्यक्त है। और फिर चुप हो जाना भी तो एक तरह का कहना इसे जरा समझ लें। होगा, ए सार्ट आफ सेइंग। चुप होना भी एक तरह का कहना ही अगर हम ऐसा कहें कि परमात्मा सदा से ही छिपा हुआ है, तो | होगा। वह भी खबर होगी, सूचना ही होगी। अगर बर्नार्ड शा का जिन जानने वालों ने परमात्मा की बात कही है, उन्होंने जानी कैसे? | | सो जाना एक मत है, तो परमात्मा के संबंध में चुप हो जाना एक तर्कशास्त्री निरंतर ही ऋषियों के संबंध में, मिस्टिक्स के संबंध वक्तव्य है। मौन हो जाना, फिर भी वाणी का ही उपयोग है, में एक महत्वपूर्ण तर्क उठाते रहे हैं। तर्कशास्त्री सदा से ही कहते | | निषेधात्मक रूप से, निगेटिव ढंग से। रहे हैं कि ये मिस्टिक्स जो हैं, उनके वक्तव्य नानसेंस हैं; उनके । फिर ये रहस्यवादी क्या करें? चुप हों तो मुश्किल है, बोलें तो वक्तव्यों में अर्थ बिलकुल नहीं है। क्योंकि एक ओर वे कहते हैं, मुश्किल है। और साथ में उन्हें यह कहना ही है कि वह कभी भी हम उसके संबंध में कहने जा रहे हैं, जिसके संबंध में कुछ भी नहीं | | उघाड़ा नहीं गया। वह सदा से ढंका है, और सदा ढंका ही रहेगा। कहा जा सकता। और हम उसकी तुम्हें खबर देते हैं, जिसकी खबर | | ढंका होना ही उसका स्वभाव है। किसी को कभी नहीं मिली। और जो सदा से छिपा है, हम तुम्हारे __ अगर वह सदा से ढंका है, तो कृष्ण उसे कैसे उघाड़ते हैं? अगर सामने उसे प्रकट करते हैं। वह सदा से ढंका है, तो बुद्ध उसे कैसे जानते हैं? यह बड़े मजे की कृष्ण ने थोड़ी देर ही पहले अर्जुन को कहा है कि मैं संक्षिप्त में बात है, इसे थोड़ा खयाल में ले लेना चाहिए। उसके संबंध में तुझसे कहूंगा! और अब वे कहते हैं, वह है अगर संसार में किसी ढंकी हुई चीज को उघाड़ना हो, तो उसी सनातन अव्यक्त! चीज को उघाडना पडता है। अगर एक वैज्ञानिक किसी वस्त के जो सनातन अव्यक्त है, सदा से ही छिपा हुआ, कभी प्रकट नहीं | संबंध में खोज करता है, तो उस वस्तु को तोड़ता है, फोड़ता है, हुआ, कृष्ण उसे प्रकट कैसे करेंगे? और कृष्ण उसके संबंध में उसके भीतर प्रवेश करता है, उसे उघाड़ता है। सब पर्दे निकालकर अगर कुछ भी कह रहे हैं, तो वह प्रकट करना हो जाता है। यह अलग कर देता है, भीतर प्रवेश करता है। अगर उसे आदमी के कहना भी कि वह सनातन से अव्यक्त है, व्यक्त करने की बात हो | शरीर में पता लगाना है कि क्या बीमारी है, तो एक्स-रे से भीतर गई। इतना कहना भी, उसके संबंध में कुछ कहना है। तर्क निरंतर प्रवेश करता है; सब पर्दे तोड़ देता है, चीर-फाड़ करता है; मशीनों रहस्यवादियों पर हंसता रहा है और कहता रहा है, तुम्हारे वक्तव्य को भीतर ले जाता है, भीतर के चित्र लाता है; भीतर के संबंध में पागलों के वक्तव्य हैं। सब जानकारी पकड़ता है; सब पर्दे उघाड़ता है और भीतर की खोज विगिंस्टीन ने अपनी बहुत अदभुत किताब टेक्टेटस में कहा है | करता है। यह पदार्थ की खोज का ढंग है। कि जिस संबंध में न कहा जा सके, उस संबंध में न कहना ही उचित ___परमात्मा की भी खोज होती है और वह कभी उघाड़ा नहीं जाता। है। जिस संबंध में न कहा जा सके, उस संबंध में न कहना ही उचित | उसकी खोज बड़ी उलटी है। जिसे परमात्मा को उघाड़ना हो, उसे है, दैट व्हिच कैन नाट बी सेड मस्ट नाट बी सेड। न कहा जा सके, अपने सब पर्दे तोड़ देने पड़ते हैं। अपने! उसे अपने सब पर्दे तोड़ तो मत ही कहो। देने पड़ते हैं, अपने भीतर कोई भी छिपावट नहीं रखनी पड़ती, लेकिन अगर इतना भी कहा जा सकता है कि इस संबंध में मैं | | अपने भीतर कोई राज नहीं रखना पड़ता, अपने भीतर कुछ भी 1113
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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