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________________ * गीता दर्शन भाग-4* होगा सत्य के! और फिर एक दिन वही आदमी चाय की दुकान में से बहुत बार महाकाव्य का जन्म होता है। चाय पीता और बीड़ी फूंकता मिल जाता है। और आप एकदम हैरान इसलिए हमने पुराने दिनों में एक और शब्द खोजा हुआ था, हो जाते हैं कि यही वह आदमी है, जिसने इतनी अदभुत कविता जिसका अर्थ कवि ही होता है, वह शब्द है, ऋषि। ऋषि का अर्थ लिखी! क्या यही वह आदमी है, जिससे ऐसी पंक्तियों का जन्म कवि ही होता है, लेकिन एक भिन्न गुण के साथ। ऋषि हम उस हुआ? क्या यही वह आदमी है, जिसके भाव ने इतनी गहराई और | कवि को कहते हैं, जो उस जगह से गा रहा है, जहां से वापस ऊंचाई को स्पर्श किया? यह आदमी कैसे हो सकता है! लौटना असंभव है, प्वाइंट आफ नो रिटर्न। वह भी गीत को ही जन्म नहीं, यह आदमी नहीं है। यह निन्यानबे डिग्री पर किसी क्षण में देता है। रहा होगा। इसने आकाश का खुला रूप देखा, तारों में झांककर उपनिषद महाकाव्य हैं। गीता स्वयं महाकाव्य है। लेकिन कृष्ण देखा, आंखें मिलाई इसने बड़ी ऊंचाइयों से, लेकिन अब यह वापस उस जगह से इस गीत को जन्म देते हैं इसलिए उसका नाम है, अपनी जगह लौट आया है। भगवत्गीता; गीत भगवान का, गीत भागवत चैतन्य का—उस कूलरिज ने, मरने के बाद पता चला, कि कोई चालीस हजार जगह से इस गीत को जन्म मिलता है, जहां से लौटना संभव नहीं है। कविताएं अधूरी छोड़ी हैं। मित्र तो जानते थे और कूलरिज से कहते | फिर भगवत्गीता के न मालूम कितनी भाषाओं में रूपांतरण हुए थे कि इन कविताओं को पूरा कर दो। इतनी कविताएं अधूरी क्यों | हैं, लेकिन अब तक एक भी ऋषि उपलब्ध नहीं हुआ उसके कर रखी हैं? किसी कविता में सात कड़ी हैं, तो आठवीं कड़ी नहीं | रूपांतरण के लिए। कवियों ने रूपांतरण किए हैं। फासला ज्यादा है। बस, एक कड़ी खाली है। एक कड़ी पूरी हो जाती, तो शायद | नहीं है। फासला ज्यादा नहीं है। कभी-कभी तो कोई कवि.बिलकुल एक महान कविता का जन्म होता! कृष्ण के करीब पहुंच जाता है। अगर कृष्ण एक सौ डिग्री के पार लेकिन कूलरिज कहता था, सात कड़ी होते-होते मैं तो वापस से बोल रहे हैं, तो कभी-कभी कोई कवि ठीक निन्यानबे डिग्री के लौट गया। वह आठवीं कड़ी आई ही नहीं और मैं वापस जमीन पर पास से बोलता है। एक डिग्री का फासला कोई बड़ा फासला नहीं लौट आया। अब अगर मैं चाहूं, तो आठवीं कड़ी जोड़ सकता हूं। है, लेकिन उससे बड़ा कोई फासला नहीं है। वहां एक डिग्री भी लेकिन वह कड़ी उस ऊंचाई की न होगी, जिस ऊंचाई की सात बहुत कीमती है। कड़ियां हैं। और मैं भलीभांति जानता हूं कि वही कड़ी इस कविता कितना ही बड़ा कवि, कितनी ही बड़ी कविता को जन्म दे, वह की नाव को डुबाने वाली सिद्ध होगी। इसलिए मैं प्रतीक्षा करूंगा, ऋषि नहीं हो पाता, क्योंकि वापस-वापस गिर जाता है। और जब किसी दिन फिर उस निन्यानबे डिग्री पर चित्त होगा, और अगर कोई | कविता को जन्म देने वाला ही वापस गिर जाता हो, तो कविता में कड़ी उतर आई, तो जोड़ दूंगा, अन्यथा मैं नहीं जोड़ पाऊंगा। डाले गए जो अर्थ हैं, वे ऊर्ध्वगामी नहीं हो सकते; वे नीचे की इसलिए जगत के समस्त महान चित्रकार, कवि और संगीतज्ञ तरफ ही बहने वाले होते हैं, चाहे कितनी ही ऊंचाई की डिग्री क्यों निरंतर ऐसा अनुभव करते हैं कि जब उनसे काव्य का, चित्र का न रही हो।। जन्म होता है, तो वे मौजूद नहीं होते; कोई और! कोई और ही उनके इसलिए बड़े से बड़ा काव्य भी नीचे की तरफ ही बहता हुआ भीतर से बोल जाता है, कोई और ही उनके भीतर से गा जाता है, | मालूम पड़ता है। चाहे कालिदास का हो, तो भी नीचे की तरफ ही . कोई और ही उनकी अंगुलियों में थिरकता है और उनके सितार को बहता हुआ मालूम पड़ता है। बड़े से बड़ा काव्य भी मनुष्य की बजा जाता है। यह कोई और नहीं है, यह उनका ही एक ऊंचा उठा कामवासना की तरफ ही बहता हुआ मालूम पड़ता है। हुआ रूप है, जिसकी उन्हें स्वयं भी खबर नहीं। लेकिन वापस गिर ऋषि हमने उसे कहा है, जो चेतना की उस जगह से गीत को जाते हैं। जन्म देता है या किसी भी चीज को जन्म देता है, जहां से लौटना काव्य और धर्म में यही अंतर है, आर्ट और रिलीजन में यही | संभव नहीं। अंतर है। काव्य निन्यानबे डिग्री के इस पार गिर जाता है। धर्म सिर्फ | | एक क्रिस्टलाइजेशन का, एक स्वयं के भीतर संगठित हो जाने एक डिग्री और ऊपर छलांग लेता है और सौ डिग्री के पार हो जाता | का एक क्षण है, जिसके पार गिरना नहीं होता। इस जिस सनातन है। इसलिए काव्य बहुत बार धर्म के निकट पहुंचता है, और धर्म | | अव्यक्त को प्राप्त होकर मनुष्य पीछे नहीं आते, वही मेरा परम धाम 112
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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