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________________ * अक्षर ब्रह्म और अंतर्यात्रा * कहा कि बड़ा आनंद आया, वह इसीलिए कहा कि दो-तीन रात से जिस सनातन अव्यक्त को प्राप्त होकर मनुष्य पीछे वापस नहीं मैं बिलकुल सोया नहीं था। तुम्हारे नाटक ने ऐसी गहरी नींद ला दी | | आते! एक ऐसी जगह है चेतना के विकास की, जिसे हम प्वाइंट कि मन बड़ा तृप्त हो गया! | आफ नो रिटर्न कहें, जहां से कोई पीछे वापस नहीं लौटता। __पंद्रह दिन अगर पत्र का उत्तर न दें, तो उत्तर नकारात्मक है, ऐसा | हम पानी को गरम करते हैं, निन्यानबे डिग्री तक भी पानी गरम लिखने वाले को मिल ही जाता है। बर्नार्ड शा कहता था, पंद्रह दिन | | हो जाए, तो भी पीछे वापस लौट सकता है। लेकिन सौ डिग्री तक तक हिम्मत जुटानी पड़ती है न देने की, फिर विचार इतना पुराना | गरम होकर भाप बन जाए, तो फिर पीछे वापस नहीं लौट पाएगा पड़ जाता है और समय इतना व्यतीत हो जाता है कि कोई प्रेरणा भी | है। सौ डिग्री पार कर ले, तो भाप बनकर आकाश में उड़ जाएगा। नहीं रह जाती है भीतर। अब यह बड़े मजे की बात है! पानी की गति नीचे की तरफ है, इसीलिए ज्ञानियों ने कहा है, अगर बुरा विचार उठे, तो थोड़ी देर | | भाप की गति ऊपर की तरफ है। अगर पानी को बहा दें, तो गड्डे की रुक जाना, क्योंकि उतनी देर रुकने में वह विचार ही जा चुका होगा। तलाश करेगा। अगर भाप को छोड़ दें, तो आकाश की खोज अगर हत्याएं करने वाले लोग दो क्षण भी रुक जाएं, तो हत्याएं नहीं | करेगी, जितने ऊपर जा सके। और एक बिंदु है सौ डिग्री का, सौ हो। आत्महत्याएं करने वाले लोग एक क्षण के लिए ठहर जाएं, तो डिग्री तापमान पर पानी भाप बन जाता है। उसके स्वभाव में एक आत्महत्या न हो। इसलिए ज्ञानियों ने यह भी कहा है कि जब अच्छा | मौलिक परिवर्तन होता है. गणात्मक. कि वह नीचे की तरफ जाना विचार उठे, तो तत्काल उसे पूरा कर लेना, एक क्षण मत रुकना, छोड़कर ऊपर की तरफ जाना शुरू कर देता है। लेकिन अगर क्योंकि एक क्षण रुकने पर वह भी बदल जाएगा। निन्यानबे डिग्री तक गरम किया हो और फिर पानी को वैसी ही विचार इतनी तेजी से बदल रहा है, फिर भी हम विचार को | गरमी पर छोड़ दें, तो पानी वापस लौट जाएगा—अट्ठानबे, अपना स्वभाव मान लेते हैं। स्वभाव का तो अर्थ ही होता है, जो सत्तानबे, नब्बे-नीचे गिर जाएगा और पानी पानी ही रहेगा। . बदले नहीं। क्या आपको पता है, बचपन के आपके विचारों का ___ अब यह भी मजे की बात है कि शून्य डिग्री पर ठंडा पानी भी क्या हुआ? क्या आपको पता है, आपके जवानी के विचारों का | नीचे की तरफ बहेगा, निन्यानबे डिग्री पर गरम पानी भी नीचे की क्या हुआ? कहां खो गए? किस रास्ते पर पड़े रह गए? आज | | ही तरफ बहेगा। लेकिन एक डिग्री और, सौ डिग्री, और पानी ऊपर उनका कोई भी पता नहीं है। और कल जो बात बहुत महत्वपूर्ण | की तरफ यात्रा शुरू कर देता है। पानी पानी ही नहीं रह जाता, भाप मालूम होती थी, क्या आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण मालूम होती है? | हो जाता है; विराट आकाश में खोने के लिए तैयार हो जाता है। कल जिसके लिए जान दे सकते थे, क्या आज भी उसके लिए जान __ मनुष्य की चेतना की भी ऐसी एक स्थिति है, एक सौ डिग्री का देना उचित मालूम पड़ेगा? बिंदु है, उस डिग्री के पहले आदमी कितना ही ऊंचा चेतना को ले सब बदल रहा है। विचार भी इतनी तेजी से घूम रहे हैं, जिसका जाए, बार-बार गिरता रहता है। आप भी कई बार स्वर्ग के इतने कोई हिसाब नहीं, लेकिन फिर भी हम विचारों से अपने को एक | करीब मालूम पड़ते हैं कि एक कदम और, और भीतर प्रवेश कर मान लेते हैं, क्योंकि हम कभी विचारों के भीतर और प्रवेश नहीं | | जाएंगे। लेकिन जब तक आप यह सोचते हैं, पाते हैं कि आप काफी किए। जो विचार के भी भीतर प्रवेश करेगा, निर्विचार को पाएगा, | दूर हट चुके, स्वर्ग काफी फासले पर है। वही उस अक्षर को अपने भीतर अनुभव कर पाता है, उस कील | हममें से सभी लोग कभी-कभी निन्यानबे डिग्री तक भी पहुंच को, जिस पर विचार का चाक घूमता है, शरीर का चाक घमता है, | जाते हैं। कभी किसी प्रार्थना के क्षण में, कभी किसी पूजा के भाव वासना का चाक घूमता है; और फिर बड़े संसार का चाक, और | | में, कभी किसी प्रेम की स्थिति में, कभी किसी संगीत को सुनकर, फिर और बृहत ब्रह्मांड का चाक। कभी किसी सुगंध के सहारे, कभी किसी सौंदर्य के निकट, कभी प्रत्येक व्यक्ति के भीतर वह कील है। उस कील को पा लेने से | | हम निन्यानबे डिग्री तक भी पहुंच जाते हैं और ऐसा लगता है कि कृष्ण कहते हैं, परम गति उपलब्ध होती है। अक्षर को, अव्यक्त | | बस...। लेकिन फिर वापस गिर जाते हैं। को पा लेना, परम गति को पा लेना है। तथा जिस सनातन अव्यक्त । आपने शायद अनुभव किया हो, कविता पढ़ते हैं किसी कवि की को प्राप्त होकर मनुष्य पीछे नहीं आते हैं, वही मेरा परम धाम है। और ऐसा लगता है कि यह आदमी कितना निकट नहीं पहुंच गया וור
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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