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* गीता दर्शन भाग-4 *
सहारा छोड़ना पड़ता है। एक ऐसी यात्रा, जिसमें हम चाक के घूमते । के एक विचार का खंडन कर दें, तो पीड़ा ज्यादा होती है। हुए रूप को छोड़कर धीरे-धीरे, धीरे-धीरे कील की तरफ सरकते। __ आदमी अपने विचार के लिए मरने को, कुर्बान होने को तैयार जाते हैं और एक दिन वहां पहुंच जाते हैं, जहां चाक नहीं है, कील | होता है। फांसी लग जाए, उसकी तैयारी है; लेकिन मेरा विचार नहीं ही है।
छोड़ सकता हूं। क्यों? क्योंकि विचार के साथ हमने बहुत गहरा वह कील प्रत्येक के भीतर है, क्योंकि प्रत्येक भी एक छोटा घूमता तादात्म्य बनाया है। असल में हमें ऐसा लगता है कि शरीर बाहर हुआ चाक है। जैसा मैंने कहा कि मल्टी-डायमेंशनल है गति। पृथ्वी की पर्त है और विचार मेरे भीतर का केंद्र है।
अपनी कील पर घूम रही है और साथ ही सूर्य का चक्कर भी लगा यह झूठ है। विचार भी मेरे भीतर का केंद्र नहीं है, विचार भी रही है। ठीक हममें से प्रत्येक व्यक्ति संसार के चारों तरफ घूम रहा बाहर की ही एक पर्त है। मेरे भीतर का केंद्र तो अक्षर है। विचार तो है और हमारे भीतर भी कील पर हमारे शरीर का चाक घूम रहा है। अक्षर नहीं है। विचार तो अभी है और क्षणभर बाद बदल जाता है। हमारी कील पर हमारे मन का चाक घूम रहा है। हमारी कील पर |सुबह जो था, दोपहर नहीं होता। दोपहर जो था, वह सांझ नहीं हमारी वासनाओं का चाक घूम रहा है। हमारी कील पर हमारी तृष्णा, | होता। इसलिए अगर आप विचार के लिए थोड़ी देर रुक जाएं, तो हमारी कामना, हमारा क्रोध, हमारा लोभ, उन सबके चाक पर्त दर । हो सकता है, वह काम करने की आपको कभी जरूरत ही न पड़े। पर्त घूमते चले जा रहे हैं। चाक के भीतर चाक हैं, वे घूमते चले जा बर्नार्ड शा कहता था कि जब मेरी टेबल पर बहुत चिट्ठी-पत्रियां रहे हैं। जिस व्यक्ति को अक्षर को पाना है, उसे धीरे-धीरे एक-एक इकट्ठी हो जाती हैं, पंद्रह-पंद्रह दिन बीत जाते हैं और सैकड़ों पत्र घमते चाक को छोड़कर भीतर सरकना है।
इकट्ठे हो जाते हैं और जवाब देना मुश्किल होता है, तब मैं सबसे ज्यादा कठिनाई हमारे भीतर सरकने में विचार के चक्र की | थोड़ी-सी शराब पी लेता हूं और सब काम निपट जाता है। है। क्योंकि विचार इतनी तीव्रता से घूम रहा है और न मालूम अज्ञान तो एक मित्र ने उससे पूछा कि क्या शराब पीकर फिर तुममें इतनी के किस गहन क्षण में हमने मान रखा है कि हम विचार ही हैं, तो ताकत आ जाती है कि तुम सारे पत्रों के उत्तर दे देते हो? बर्नार्ड शा शरीर से अपनी भिन्नता को समझ लेने में तो बहुत कठिनाई नहीं ने कहा, नहीं। शराब पीकर मैं उस हालत में हो जाता हूं कि पत्रों होती. लेकिन विचार से अपनी भिन्नता को समझने में बहत कठिनाई की फिक्र ही छट जाती है. उत्तर देने की जरूरत ही नहीं रहती। और होती है।
दो-चार दिन, आठ दिन, दस दिन, पंद्रह दिन, जब इतनी देर हो इसलिए अगर किसी आदमी का शरीर बीमार हो और हम कहें जाती है, तो फिर पत्र अपना जवाब खुद ही दे लेते हैं, फिर मुझे कि तुम्हारा शरीर बीमार है, तो वह नाराज नहीं होता। लेकिन किसी | | उनके देने की और जरूरत नहीं रह जाती। पंद्रह दिन तक जिस पत्र आदमी का दिमाग खराब हो और हम कहें कि तुम्हारा दिमाग खराब का जवाब न दिया हो, उसका जवाब लिखने वाले को मिल ही गया है, तो वह आदमी नाराज हो जाता है। क्योंकि शरीर से तो एक | होता है। फासला हमको लगता ही है। शरीर बीमार भी हो, तो भी मैं स्वस्थ बर्नार्ड शा को कोई अपना एक नाटक दिखाने ले गया था, कोई हो सकता हूं। लेकिन अगर मन बीमार हो, तो मैं ही बीमार हो गया। एक लेखक, जिसका नाटक प्रदर्शित हो रहा था। बर्नार्ड शा पूरे
इसलिए बीमार तो मान लेता है कि आप ठीक कह रहे हैं; पागल नाटक में सोया रहा। लेखक बहुत परेशान था! बर्नार्ड शा की स्तुति कभी नहीं मानता कि आप ठीक कह रहे हैं। अगर पागल से कहो | का एक शब्द भी मिल जाए, तो वह धन्य हो जाता. लेकिन परे वक्त कि पागल हो, तो पागल सब तरह के उपाय करेगा कि मैं पागल | | बर्नार्ड शा सोता रहा। दो-चार दफा उसने जगाने की भी कोशिश की, नहीं हूं। बीमार ऐसे उपाय नहीं करता। क्योंकि बीमार समझता है | | फिर सोचा कि कहीं जगाने से वह और उलटा नाराज न हो जाए। कि शरीर बीमार है, मैं बीमार नहीं हूं। सिर्फ ज्ञानियों से अगर कोई | | जब नाटक पूरा हुआ, बर्नार्ड शा ने कहा कि बड़ा आनंद हुआ। कह दे कि पागल हो, तो वे परेशान नहीं होते, क्योंकि मन से भी | | उस लेखक ने कहा, लेकिन मैं आशा करके लाया था कि आप दो उनकी दूरी स्थापित हो जाती है। अन्यथा किसी के भी मन को शब्द मेरे नाटक के संबंध में कहेंगे, कोई मत व्यक्त करेंगे, आप जरा-सी चोट, शरीर को लगी चोट से ज्यादा गहरी मालूम पड़ती| पूरे समय सोए रहे! बर्नार्ड शा ने कहा, सोया रहना भी एक प्रकार है। किसी का पैर काट डालें, तो इतनी तकलीफ नहीं होती; किसी का मत व्यक्त करना है, ए सार्ट आफ ओपीनियन। और जो मैंने
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