________________
* गीता दर्शन भाग-42
उठाईं-चश्मा लग गया था सालभर में-चश्मे से गौर से देखा, हम सब के साथ ऐसा होता है। जरा-सा कुछ मिल जाए कि हम वही आदमी! दर्जी ने कहा कि फिर क्या वही झंझट लेकर आ गए? पागल हो जाते हैं। मन के अव्यक्त स्रोत से शक्ति जगती है, उस उसने कहा कि हम भी चकित हैं! झंझट कह रहे हो? दस लाख की | वक्त बहुत सावधान होने की जरूरत है। क्योंकि उस शक्ति का लाटरी फिर तुम्हें मिल गई! उस अधिकारी ने कहा, भगवान को | | उपयोग हो सकता है या तो शरीर की वासनाओं के लिए, तब आप धन्यवाद दो।
वापस गिर पड़ेंगे; या उसका उपयोग हो सकता है उस परम अव्यक्त उसने कहा, धन्यवाद पीछे दूंगा, पहले लाटरी के कागजात कहां की यात्रा के लिए ईंधन की तरह, पेट्रोल की तरह। उस शक्ति पर हैं? कागजात लेकर उसने कुएं में फेंक दिए। उसने कहा कि अब | आप सवार हो जाएं, परम अव्यक्त की यात्रा पर निकल जाएं। दुबारा उस नर्क में जाने की बिलकुल इच्छा नहीं। सालभर में दस | वह अव्यक्त, परम अव्यक्त, दि अल्टिमेट अनमैनिफेस्ट लाख ने जो नर्क दिया, अब दुबारा नहीं! इस जन्म में तो बिलकुल आपके भीतर इस क्षण भी उतना ही मौजूद है, जितना कभी था और नहीं! अगले जन्म में भूल जाऊं, फिर दूसरी बात है। और अपनी कभी होगा। दुकान पर बेचारा फिर अपने कपड़े काटने में लग गया। वह और जब तक आप अपने शरीर में होते हैं, तब तक दूसरा अधिकारी अवाक खड़ा है!
आदमी आपसे अलग है, सब शरीर आपसे अलग हैं। शरीर के क्या हुआ? लेकिन इतनी समझ बहुत कम लोगों में होती है। तल पर सब अलग हैं। जब आप मन के करीब आते हैं, तो शायद एक आदमी को दो दफे लाटरी मिलना इतना दुर्लभ नहीं है, | कभी-कभी मन के साथ दूसरे से तालमेल भी बैठ जाता है और लेकिन इतनी समझ आदमी में होनी बड़ी दुर्लभ है।
एकता भी अनुभव होती है। कभी कोई किसी के प्रेम में गिर जाता शक्ति मिलती है, हम उसे और निर्बल होने के काम में लाते हैं। | है। प्रेम में गिरने का केवल एक अर्थ है कि दोनों के मन ने कहीं बड़े मजे की बात है! शक्ति मिलती है, तो हम दुर्बल होने के काम | एकता का सूत्र खोज लिया। में लाते हैं उसे। और जो समझदार हैं, वे दुर्बल भी होते हैं, तो | शरीर के तल पर कोई एकता कभी नहीं हो पाती। मन के तल दुर्बलता को भी शक्ति की खोज बना लेते हैं।
| पर कभी-कभी एकता सध जाती है। लेकिन जो मन के भी पार उतर __ मन में अव्यक्त शक्तियां छिपी हैं। जैसे ही कोई व्यक्ति ध्यान में | | जाते हैं, वहां अनेकता नहीं रह जाती; वहां एकता सधी ही हुई है। उतरना शुरू होता है, मन की अव्यक्त शक्तियां प्रकट होने लगती | इसे हम ऐसा समझें कि मैं एक सर्किल खींचूं, एक वर्तुल खींचू, हैं। और तभी खतरे शुरू हो जाते हैं।
उसके बीच में सेंटर पर एक निशान बना दूं। फिर वर्तुल की परिधि एक महिला मेरे पास काम कर रही थी। एक छोटी-सी घटना | | से एक रेखा खींचं केंद्र की तरफ, फिर दूसरी रेखा खींचं, फिर एक ध्यान के शिविर में उसे घटी। ध्यान गहरा हुआ, थोड़ा ही गहरा | | तीसरी रेखा खींचूं। ये तीनों रेखाएं परिधि पर फासले पर होंगी और हुआ। ध्यान से लौटते वक्त साथ में किसी महिला के कंधे पर उसने जैसे-जैसे केंद्र की तरफ चलेंगी, पास होने लगेंगी। और जब केंद्र हाथ रख लिया चलते वक्त। उस महिला की कमर में दर्द था। पर पहुंचेंगी, तो एक हो जाएंगी। जो परिधि पर बिलकुल भिन्न-भिन्न उसके हाथ रखते ही दर्द विदा हो गया। बस उतनी-सी घटना, और | था, वही केंद्र पर एक हो जाता है।
गल हो गई। पागल इस अर्थ में कि अब वह इसी काम जो लोग शरीर से बंधे हैं, वे इस जगत को अणुओं की तरह में लगी हुई है कि इसकी बीमारी ठीक कर देनी है, उसकी बीमारी देखेंगे अलग-अलग, आईलैंड की तरह। जो लोग थोड़ा मन में ठीक कर देनी है। ध्यान-व्यान समाप्त हो गया। उसने मेरे पास समर्थ हो जाते हैं—कवि हैं, चित्रकार हैं, संगीतज्ञ हैं—वे इस आना बंद कर दिया। उसने सोचा, मामला समाप्त हो गया, बात जगत में एकता का स्वर खोजने लगते हैं। लेकिन जो बिंदु पर, केंद्र खत्म हो गई; पा ली सिद्धि।
पर आ जाते हैं, परम केंद्र पर आ जाते हैं, उनके लिए अनेकता ऐसे अभी आ रहा था. उसके आठ दिन पहले उस महिला ने एक ही तिरोहित हो जाती है. जैसे प्रकाश जल जाए और अंधेरा खो मित्र को भेजा और पुछवाया कि मैं तो बहुत परेशान हो गई हूं, कहीं जाए; सुबह का सूरज निकल आए और रात कहीं खोजे से न मिले। मेरी शक्ति तो नहीं खो रही है यह इलाज करने में? और अब मेरे | ___ उस परम अव्यक्त में सब एक है, अद्वैत है। अर्ध अव्यक्त में फिर से ध्यान का क्या हो?
कभी-कभी एकता की झलक मिल जाती है। पूर्ण व्यक्त में एकता
104