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* सृष्टि और प्रलय का वर्तुल १
पता नहीं है।
हूं कि अब मुझे दस घंटों के लिए भूख-प्यास की फिक्र न करनी इस मन के पास अनूठी-अनूठी–शक्तियां हैं, लेकिन हम | पड़ेगी। अब ये दस रुपए मेरे पास हैं, अब मुझे शरीर की दस घंटे क्षुद्र चमत्कारों से दीवाने हो जाते हैं। एक आदमी हाथ उठा दे और | तक चिंता नहीं करनी है; मैं दस घंटे तक शरीर को अब भूल सकता राख आपके हाथ में दे दे, तो हम पागल हो जाते हैं कि मिरेकल हो | | हूं। और इन दस रुपयों का सहारा लेकर कोई आदमी दस घंटे के गया. चमत्कार हो गया। यह ऐसे ही है कि जिसके घर में |
ध्यान में चला जाए, तो ध्यान से जो मिलेगा, वह दस रुपयों से हीरे-जवाहरातों का ढेर लगा है, वह किसी के द्वार पर जाए, और | अनंतगुना ज्यादा है, उसका कोई हिसाब नहीं। और जो मिलेगा, एक आदमी उसे खीसे से निकालकर एक नया पैसा दे दे, और वह वह कभी खोता नहीं। कहे, चमत्कार! बस, ये सब चमत्कार ऐसे ही हैं। आपको अपने | __ अब दस रुपए का हम दोनों उपयोग कर सकते हैं। क्षुद्र वासना मन की शक्ति का कोई पता नहीं कि मन क्या कर सकता है। | में करेंगे, तो वासना पुनरुक्ति वाली है, वह कल फिर खड़ी हो
पतंजलि ने जिसे सिद्धियां कहा है, वे सब मन की छिपी हुई | | जाएगी, दस रुपयों को खाकर फिर खड़ी हो जाएगी। शक्तियां हैं। वे आठ शक्तियां मन की शक्तियां हैं। और मन मैं कल ही एक कहानी कह रहा था। कहानी एक वास्तविक अनमैनिफेस्ट, अव्यक्त है, बीज की भांति। वे सब प्रकट हो सकती घटना है। स्विटजरलैंड में एक आदमी को, एक गरीब दर्जी को दस हैं। हम तो उनके धुएं में एकदम अंधे हो जाते हैं। कभी किसी आदमी | लाख रुपए की लाटरी मिल गई। दूसरे महायुद्ध के पहले की घटना में छोटी-मोटी कोई शक्ति प्रकट हो जाती है, तो हम बिलकुल अंधे | | है, बहुत अदभुत घटना बनी। दस लाख की लाटरी मिल गई। सांझ
और पागल हो जाते हैं। कुछ मूल्य नहीं है उनका, क्योंकि मन से जो को वह अपनी दुकान पर कपड़े सी कर दुकान बंद करने की तैयारी शक्तियां प्रकट होती हैं, वह संसार का हिस्सा है।
में था कि लाटरी की खबर देने वाले अधिकारी आए। उन्होंने इसलिए पतंजलि ने अपने सिद्धियों के विवरण में स्पष्ट कहा कि जांच-पड़ताल की और पक्का पाया कि यही आदमी है। उस दर्जी इनका मैं वर्णन सिर्फ इसलिए करता हूं योग-सूत्र में, ताकि तुम्हें | को उन्होंने कहा कि तुम्हें दस लाख की लाटरी मिल गई, भगवान पता हो कि तुम्हारे भीतर क्या छिपा है। लेकिन न तो ये पाने योग्य को धन्यवाद दो। हैं, न ये चाहने योग्य हैं; और जो इन्हें पाने और चाहने में लग जाता उसने कहा, धन्यवाद तो पीछे दूंगा! पहले उसने चाबी लगाकर है, उसकी परम यात्रा में बाधा पड़ती है।।
दरवाजा बंद किया और चाबी सामने के कुएं में फेंक दी। उसने परम यात्रां तो अव्यक्त से भी अव्यक्त में जाना है, मन के भी कहा कि अब खत्म; यह दर्जी की दुकान बंद। अब इससे कोई पार। लेकिन मन की ये छिपी हुई शक्तियां अगर जगा ली जाएं और लेना-देना नहीं। आदमी समझदार हो और इन शक्तियों के मोह में ग्रस्त न हो | एक साल में उस आदमी को पहचान नहीं सकते थे कि वह क्या जाए-जो कि अति कठिन है तो इन शक्तियों के द्वारा वह उस | हो गया। वह बिलकुल करीब-करीब पागल, रुग्ण, सब कुछ हो अव्यक्त की, अव्यक्त से भी जो अव्यक्त है, उसकी खोज पर | | गया, जो हो सकता था। रुपया, जो नासमझ के हाथ में करता है, निकल सकता है।
| वह सब कर दिया। शराब पी, वेश्याओं के पास भटका। शायद ही शक्तियों के दो उपयोग हो सकते हैं। या तो हम उस शक्ति से | सोया सालभर। सब तरह बर्बाद हो गया और दस लाख रुपए भी अपने क्षुद्र तल पर खड़े होकर कोई काम ले लें; और या उस शक्ति उसने सालभर में बर्बाद कर दिए। सालभर बाद एक पैसा उसके से कोई काम न लें, केवल जिस तल पर वह शक्ति है, उसके पार | पास नहीं था। वापस आकर अपनी दुकान का ताला तुड़वाकर फिर जाने के लिए धक्का ले लें।
दुकान पर बैठा। एक साल में दस साल बूढ़ा हो गया। सब तरफ मुझे दस रुपए मिल जाएं, तो इन दस रुपयों से मैं अपनी किसी जीर्ण-जर्जर हो गया। वासना को भी तृप्त कर सकता हूं। और ये रुपए खो जाते हैं। और | लेकिन बड़ा मजा जो हुआ वह यह कि एक साल बाद फिर उसे मेरी वासना दो दिन बाद फिर वापस अपनी जगह लौट आएगी। | लाटरी मिल गई। फिर दस लाख रुपए की लाटरी, जो कि मुश्किल इसलिए रुपए मिले या न मिले, बराबर हो गए। मैं इन दस रुपयों से होता है कि एक आदमी को दो बार लाटरी मिल जाए। और से दस घंटे के लिए बाहर के जगत की चिंता से भी मुक्त हो सकता | | जब अधिकारी उसके सामने आया, तो उसने अपनी आंखें
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