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गीता दर्शन भाग-4*
रहेंगे कि चीन ने हमला किया। और सदियों तक ये दोनों इतिहास चलते रहेंगे । और कभी तय होने वाला नहीं कि हमला किसने किया। इतिहास, जो घट चुका, वह भी तय नहीं होता।
और अभी पश्चिम का बहुत बड़ा विचारशील इतिहासविद टायनबी कहता है कि मैं इतना ही कह सकता हूं इतिहास के संबंध में कि ज्यादा से ज्यादा हम इतना ही मान सकते हैं कि जिस पर भी हम सब सहमत हो जाते हैं, एक बात पर, वह सबसे कम असत्य होगी, बस। और सत्य होगी, इस पर नहीं हो सकते तय। कम से कम असत्य यह बात होगी, इस पर हम तय हो सकते हैं ज्यादा से ज्यादा। इस पर भी विवाद जारी रहेगा। इस पर भी निर्णय नहीं हो सकता।
एक तो यह स्थिति है और एक स्थिति वह है कि पहले लिखी जाती है कथा और राम का आचरण उसके अनुसार हो जाता है। और राम के आचरण में अगर थोड़ा-बहुत भेद भी रहा होगा, तो उस भेद को हटा दिया गया। उस भेद का कोई मूल्य नहीं है। राम उतने निर्णायक नहीं हैं, जितने निर्णायक वाल्मीकि हैं। क्योंकि राम की जो ऊपरी घटनाएं हैं, नान - एसेंशियल हैं, कि वह किसके घर में पैदा हुए, कि उन्होंने कितनी रोटी एक दिन खाईं, कि किससे क्या बात की, यह बेमानी है। उनका रामपन कैसे प्रकट हुआ, वही महत्वपूर्ण है।
पुराण का अर्थ यह है। अव्यक्त से व्यक्त का जो जन्म है, अगर वह वर्तुलाकार है, तो हम भविष्य के ज्ञाता हो सकते हैं। और अतीत के संबंध में भी हमारी निष्पत्ति सत्य हो सकती है। कम से कम असत्य नहीं, पूर्णतः सत्य हो सकती है।
लेकिन समय की इस वर्तुलाकार दृष्टि का अगर खयाल हो, तो दो बातें स्मरण रख लेनी चाहिए। वह यह कि जो भी शुरू होता है, वह समाप्त होता है। पश्चिम को खयाल ही नहीं है प्रलय का । पश्चिम में खयाल है क्रिएशन का। ईश्वर ने जगत बनाया। लेकिन पश्चिम यह सोच ही नहीं सकता कि वही ईश्वर इस जगत को मिटाएगा भी। क्योंकि यह मिटाना, बनाने वाले के साथ संगत नहीं मालूम पड़ता, इनकंसिस्टेंट मालूम पड़ता है। पश्चिम सोच सकता है कि पिता है ईश्वर जगत का, लेकिन यह नहीं सोच सकता कि वही विध्वंसक और हत्यारा भी होगा।
हम सोच सके। सच तो यह है कि हमसे ज्यादा हिम्मतवर सोचने वाले लोग जमीन पर फिर नहीं हुए। यह बड़ी हिम्मत की बात है यह सोचना कि जिसने बनाया है इस जगत को, वही इसे विनाश में
ले जाएगा। क्योंकि हमें एक सत्य दिखाई पड़ गया कि जो भी चीज बनती है, वह मिटती है। और जो बनाने वाला है, वही मिटाने वाला भी है । और मिटने और बनने में हमने विरोध नहीं देखा, एक ही | प्रक्रिया के दो हिस्से देखे। सुबह और सांझ में हमने विरोध नहीं देखा। सुबह जिसे उगते देखा, सांझ उसे डूबते देखा । वही सूरज सांझ को डूबता है, जो सुबह उगा था।
कभी आपने खयाल किया कि जिस सूरज के उगने से सुबह जन्मती है, उसी सूरज के डूबने से रात का अंधेरा उतरता है। वह एक ही सूरज दोनों काम करता है दो छोरों पर।
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तो ब्रह्मा के मुहूर्त क्षण में तो सृजन होता है और ब्रह्मा के अंतिम | मुहूर्त में विनाश होता है, सब पुनः खो जाता है। और फिर सब ताजा और नया होकर फिर जन्मता है । और यह जन्म की प्रक्रिया अंतहीन चलती रहती है।
अभी ज्योतिष की नवीनतम खोजों ने बताया कि जगत स्थिर नहीं है, ठहरा हुआ नहीं है, एक्सपैंडिंग है, फैलता हुआ है, विस्तार कर रहा है। यह आपके खयाल में एकदम से नहीं पकड़ेगा। जैसे कि कोई बच्चा अपने रबर के गुब्बारे में, फुग्गे में हवा भर रहा हो; और फुग्गा बड़ा होता जाए, और बड़ा होता जाए, और बड़ा होता जाए, | ऐसा ही यह अस्तित्व रोज बड़ा हो रहा है; रोज फैलता जा रहा है। और छोटी-मोटी गति से नहीं, बड़ी तीव्र गति से । एक सेकेंड में लाखों मील का फैलाव हो जाता है। हर तारा दूसरे तारे से दूर भागा जा रहा है। रात को जो आप तारे देखते हैं, जहां आप उन्हें आज | देखते हैं, कल आप उन्हें वहीं नहीं देखेंगे। वे दूर हटते जा रहे हैं।
पुरानी कथाओं में यह बात है कि कभी जमाना था कि तारे बिलकुल आदमी के मकान के छप्परों के निकट थे। वह पहले तो | कथा थी, लेकिन अब वैज्ञानिक कहते हैं कि वह कथा कभी सच रही होगी। चाहे आदमी न रहा हो, छप्पर न रहे हों, लेकिन कभी तारे इतने करीब जरूर रहे होंगे। कभी ऐसा जरूर रहा होगा कि हवा का जो गुब्बारा है, बिलकुल बंद था, हवा उसमें थी ही नहीं, सब सिकुड़ा हुआ पड़ा था।
तो यह हो सकता है कि यह सारा विराट शून्य रहा हो और जरा-सी जगह में सब तारे इकट्ठे रहे हों। फिर वे फैलते चले गए हैं, बड़े होते चले गए हैं। र रोज बढ़ते जा रहे हैं। तो पश्चिम में एक सवाल रहा है ज्योतिष के सामने कि आखिर ये कहां तक फैलेंगे ?
फैलने का आखिरी अंत एक्सप्लोजन ही हो सकता है। अंगर | बच्चा गुब्बारे को फुलाए ही चला जाए, तो एक सीमा आ जाएगी,