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________________ ६ सृष्टि और प्रलय का वर्तुल * जिसके आगे रबर नहीं फूल सकेगी और गुब्बारा फूटेगा। उसी को | | किया और कहा, नालायक, बदतमीज! तूने मुझे पहले क्यों न हमने प्रलय कहा है। और हमने ब्रह्मांड कहा है अस्तित्व को। बताया? पांच दिन, न मालूम कितना भोजन छूट गया। यह तो मुझे ब्रह्मांड का अर्थ ही होता है, दैट व्हिच इज़ एक्सपैंडिंग कांसटेंटली। भी शक होता था कि जितना मैं खा रहा हूं, यह खाने की सीमा नहीं ब्रह्मांड शब्द का ही यही अर्थ होता है। ब्रह्म का अर्थ होता है, | | है। यह तो मुझे भी पता है कि खाने की आखिरी सीमा फूट जाना विस्तार। विस्तार और ब्रह्म एक ही चीज से बने हैं। हम कहते हैं, | है। लेकिन यह तरकीब मुझे पता न थी। वृहत, विस्तीर्ण, वे सब ब्रह्म से ही बने हैं। ब्रह्म का अर्थ होता है, खाने की आखिरी सीमा फूट जाना है, दि बर्ट! फैलने की जो फैलता ही चला जाता है, जो रुकता ही नहीं, फैलता ही चला| आखिरी सीमा फूट जाना है, दि बट। जो बहुत फैलेगा, जल्दी फूट जाता है। ब्रह्मांड का अर्थ है, जो सदा फैलता चला जाता है। | जाएगा। जो जल्दी फैलना चाहेगा, उतनी जल्दी फूट जाएगा। जो लेकिन जो भी चीज सदा फैलती रहेगी, एक दिन विस्फोट को बहुत जल्दी बढ़ना चाहेगा, वह जल्दी मर जाएगा। क्योंकि जल्दी उपलब्ध होगी। और वह घड़ी आ जाएगी, जहां सब टूटकर बिखर | | बढ़ने का और कोई मतलब नहीं होता, सिर्फ जल्दी मर जाना। जो जाएगा। वही प्रलय का दिन है। | जल्दी करेगा किसी चीज को पाने की, उतनी ही जल्दी खो देगा, बच्चा कब तक बढ़ता रहेगा? कभी आपने खयाल किया कि | क्योंकि पाने का अंत खोना है। बच्चा बढ़कर आखिर में करता क्या है? बच्चा बढ़-बढ़कर बस लेकिन ये दो विरोधी बातें हमें एक साथ दिखाई नहीं पड़तीं, बूढ़ा ही होता है। और क्या करेगा? बच्चा बढ़-बढ़कर बस बूढ़ा | कृष्ण को दिखाई पड़ती हैं। वे कहते हैं, वह अव्यक्त से जो पैदा ही होता है। और जब मां अपने बच्चे को बड़ा कर रही है, तो उसे | | होता है और फैलता है, वह ब्रह्मा का दिन। फिर अव्यक्त में कल्पना भी नहीं होती कि वह उसको बढ़ा कर रही है। बढ़ा ही कर सिकड़ने लगता है, वह रात। और फिर अव्यक्त में लीन हो जाता, रही है. कछ और उपाय नहीं है। हर मां अपने बच्चे को बढ़ा कर वह प्रलय है। और ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेशकाल में अव्यक्त में ही रही है। जो सहायता पहुंचा रही है, वह सब उसको बुढ़ापे की तरफ | सब कुछ लय हो जाता। ले जा रही है। और हर मां अपने बच्चे को बचाकर पहुंचाएगी| | और हे अर्जुन, वह ही यह भूत समुदाय उत्पन्न हो-होकर प्रकृति कहां? मौत के सिवाय कोई जगह तो है नहीं, जहां पहुंच जाए। | के वश में हुआ, रात्रि के प्रवेशकाल में लय होता और दिन के बचाओ, सम्हालो और मौत की तरफ ले जाओ। प्रवेशकाल में फिर उत्पन्न होता है। लेकिन मृत्यु से हम बचकर चलते हैं। हम सोचते ही नहीं | __ जैसे एक व्यक्ति के लिए मैंने कहा कि वह अपनी ही वासना के उसको, हम सोचते नहीं कि जन्म मृत्यु की शुरुआत है। हम सोचते | कारण, अपनी वासना के वश में हुआ, या वासना के कारण अवश ही नहीं कि प्रारंभ अंत है। हम सोचते ही नहीं कि फैलना फटने की हआ. अपने वश के बाहर हआ. फिर मरते क्षण में कामना करता तैयारी है। . | है, फिर-फिर जन्म पाऊं। फिर जन्म जाता है। फिर दौड़ता है, सुबह ___ मुल्ला नसरुद्दीन यात्रा के लिए गया है, धर्मतीर्थ। साथ में एक और रात, और फिर मरता है। शिष्य को भी ले लिया है, शागिर्द को, वह उसकी रास्ते में सेवा भी ठीक ऐसे ही यह पूरा ब्रह्मांड भी कृष्ण कहते हैं, हे अर्जुन, यह करता है। लेकिन मुल्ला बड़ा परेशान है उसकी एक हरकत से। जब पूरा ब्रह्मांड भी, यह समस्त भूत समुदाय, यह जो कुछ भी दिखाई भी वह खाना खाता है, तो बीच-बीच में शरीर को काफी हिलाता पड़ता है सब, इसको अगर हम इकट्ठा लें, तो यह भी वासना के है। फिर हिलाकर फिर खाना खाता है। फिर शरीर को हिलाता है, वश में हुआ, कामना से प्रेरित हुआ, अपने वश के बाहर हुआ, फिर खाना खाता है। दो-चार दिन मुल्ला ने बरदाश्त किया। फिर आकांक्षा में ग्रस्त हुआ, फिर-फिर पैदा होता है, फिर-फिर लय को मुल्ला ने कहा कि तू यह क्या करता है! यह करता क्या है | | उपलब्ध होता है। फिर होती है सृष्टि, फिर होता है प्रलय। और यह बार-बार? खेल इस भांति चलता रहता है। तो उस युवक ने कहा कि बात ऐसी है मुल्ला, कि हिलाकर मैं | । परंतु अव्यक्त से भी अति परे दूसरा अर्थात विलक्षण जो सनातन खाने को जरा ठीक जगह बिठा देता हूं। जगह थोड़ी ज्यादा हो जाती | अव्यक्त है, वह पूर्ण ब्रह्म परमात्मा सब भूतों के नष्ट होने पर भी है, फिर मैं खा लेता हूं। मुल्ला ने उसको खींचकर एक चांटा रसीद नष्ट नहीं होता है। 99]
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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