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________________ *गीता दर्शन भाग-44 दो और दो कभी बराबर नहीं होते। दो और दो बराबर कभी नहीं | आंशिक मृत्यु है; मृत्यु पूर्ण निद्रा है। रोज आदमी को मरना पड़ता होते। आप कहेंगे, दो और दो तो बराबर होते हैं। नया गणित कहता है, इसीलिए सुबह वह पुनः जीवित हो पाता है। रात अंधेरे में डूब है कि सिर्फ परिभाषा में। सिर्फ परिभाषा में। जाते हैं, सुबह फिर पुनरुज्जीवित होते हैं, ताजे, प्रफुल्लित; फिर कोई दो चीजें बराबर नहीं होती। कोई दो पत्थर बराबर नहीं होते। | काम में लग जाते हैं। कोई दो पत्ते बराबर नहीं होते। अस्तित्व में दो चीजें एक्जेक्टली | ठीक ब्रह्मा की यह पूरी सृष्टि भी दिनभर में थक जाती है, सांझ अलाइक एंड ईक्वल होती ही नहीं। कोई उपाय नहीं है दो चीजों को | होने के करीब हो जाती है। फिर मृत्यु, फिर पुनर्जन्म। ठीक चौबीस बराबर, ठीक बराबर करने का। थोड़ा-सा अंतर शेष रह ही जाता | घंटे के दिन की भांति ब्रह्मा का भी बड़ा वर्तुलाकार दिन घूमता है। और वह अंतर जोड़ में फर्क करेगा। लेकिन दो और दो चार रहता है। होते हैं। दो और दो चीजें अगर जोड़ी जाएं, तो कभी चार नहीं होती; इसलिए एक बात और बहुत मजे की है और वह यह कि सिर्फ कुछ कम या कुछ ज्यादा। पूरब के मुल्कों में और विशेषतया भारत में समय की एक धारणा प्लांक ने कहा है कि हम अपने गणित को बदल लें, अपने तर्क | विकसित की, जो सरकुलर है, वर्तुलाकार है। हम समय को हमेशा को बदल लें; लेकिन अस्तित्व हमारे तर्क को मानकर चलने के वर्तुल में सोचते रहे। पश्चिम में समय की धारणा लीनियर है, एक लिए राजी नहीं है। | रेखा में, सीधी। पश्चिम को वर्तुल का खयाल ही अभी-अभी आना इधर बीस वर्षों ने खुद विज्ञान की आधारशिलाओं को बहुत ही | | शुरू हुआ। नहीं तो पश्चिम सोचता है, एक रेखा में इतिहास चलता हिला दिया है। एक नया शब्द विज्ञान में प्रवेश किया जो कभी भी | | है। हम सोचते हैं कि रेखा में नहीं, गोल वर्तुल में चलता है। नहीं था। हमेशा समझा जाता था, साइंस इज़ दि मोस्ट सर्टेन थिंग।। | इसलिए हम जानते हैं कि सब चीजें फिर लौटकर आ जाती हैं। किसी ने नहीं सोचा था कि अनसटी, अनिश्चय विज्ञान का केंद्रीय | | अगर एक ही रेखा में चलता हो, तो चीजें लौटकर नहीं आ सकतीं। शब्द बन जाएगा। इधर बन गया है। अनसोटी, अनिश्चय ही इसलिए पश्चिम ने इतिहास लिखा, पूरब ने कभी इतिहास नहीं विज्ञान का केंद्रीय शब्द बन गया है। क्योंकि कुछ भी निश्चित नहीं लिखा। क्योंकि जब सभी चीजें बार-बार लौट आती हों, तो मालूम पड़ता, सब डांवाडोल हो गया है। इस डांवाडोल होने में जो | इतिहास की लिखने की व्यर्थ की झंझट में क्यों पड़ना? फिर-फिर · सबसे बड़ी घटना घटी है, यह वचन उसी घटना के लिए है। | यही होगा। फिर राम होंगे, फिर कृष्ण होंगे, फिर बुद्ध होंगे; चीजें कृष्ण कहते हैं, अव्यक्त से व्यक्त का जन्म होता है ब्रह्ममुहूर्त | | वर्तुलाकार लौटती रहेंगी; तो क्या प्रयोजन है बार-बार लिखने से में, ब्रह्मा के पहले क्षण में। और फिर पुनः यह व्यक्त जब थक | कि बुद्ध कब हुए, कैसे हुए, किस तिथि में हुए, किस समय में हुए। जाता, जीर्ण-शीर्ण हो जाता, जरा-जीर्ण हो जाता, वृद्ध हो जाता, | ईसाइयत ने समय का नान-सर्कुलर दृष्टिकोण पकड़ा है, तो पुनः लीन हो जाता है अव्यक्त में। गैर-वर्तुल, रेखाबद्ध। इसलिए ईसा का जन्मदिन इतिहास की इसे हम अपने से समझें तो शायद आसान हो जाए। | शुरुआत बन गया। वह ईवेंट बन गया, घटना बन गई। इसलिए सुबह आप उठते हैं ताजे, लेकिन कभी आपने खयाल किया, | | उचित ही है कि सारी दुनिया में हम ईसा के जन्मदिन के हिसाब से यह ताजगी कहां से आती है? निश्चित ही, रातभर आपने ताजगी | | समय को मापते हैं। हमारे पास ऐसा समय-माप नहीं है। और हमने के लिए कुछ भी नहीं किया; न कोई व्यायाम किया, न कोई भोजन | जो समय-माप गढ़े भी हैं, वे भी ईसा की नकल में गढ़े हैं। और लिया। रातभर अगर आपने कुछ भी किया, तो इतना ही किया कि हमने बहुत दफे बहुत-से समय-माप शुरू किए, लेकिन हमारी अपने को सब करने से रोका। रातभर आप सोए रहे। सोने में आप | चेतना से मेल नहीं पड़ा और वे छूट गए। पुनः अव्यक्त में गिर जाते हैं। व्यक्त से हट जाते हैं, अव्यक्त में | | हमने पुराण तो लिखा है, इतिहास नहीं लिखा। पुराण का अर्थ गिर जाते हैं। उसी अव्यक्त से ताजगी लेकर सुबह पुनः उठ आते है, वह जो सदा लौटता है, उसमें तिथियों के हिसाब की जरूरत हैं। सांझ होते-होते फिर थक जाते हैं; दिन ढल जाता है, रात शुरू नहीं, कथा का सार ही काफी है। इसलिए ईसाइयत कहती है कि हो जाती है। फिर...। जीसस इज़ दि फर्स्ट हिस्टारिक पर्सन। वे ठीक कहते हैं कि जीसस इसलिए पुराने शास्त्र कहते हैं, निद्रा छोटी मृत्यु है, निद्रा | पहले ऐतिहासिक पुरुष हैं। वे कहते हैं, तुम्हारे सब पुरुष-कृष्ण
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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