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________________ * सृष्टि और प्रलय का वर्तुल * भौतिकविद, फिजिसिस्ट कह सकता है। आइंस्टीन कह सकता है आता कि यह क्या है! कि यह वक्तव्य न केवल धर्म का वक्तव्य है, यह वक्तव्य विज्ञान | | आपमें से बहुत-से लोगों ने शिक्षा के समय में ज्यामेट्री पढ़ी का भी वक्तव्य है। क्योंकि परमाणु के विभाजन के बाद विज्ञान ने होगी यूक्लिड की, लेकिन इधर निरंतर नान-यूक्लिडिअन ज्यामेट्री पाया कि वह जो प्रकट परमाणु था, अचानक अप्रकट में लीन हो | | महत्वपूर्ण होती जा रही है। यूक्लिड की सारी परिभाषाएं गलत हो जाता है। | गईं, क्योंकि अस्तित्व में उनसे कहीं मेल नहीं है। इसके पहले तक कभी विज्ञान को खयाल नहीं था और यह यूक्लिड कहता है, दो समानांतर रेखाएं कहीं नहीं मिलती। जो इल्लाजिकल भी है। यह वक्तव्य बहुत अतार्किक है, तर्कहीन है। | | गैर, यूक्लिड के विपरीत खड़ी हुई ज्यामेट्री है, वह कहती है, दो बुद्धिमत्ता इसका समर्थन न करेगी, बुद्धि इसके सहयोग में खड़ी न | समानांतर रेखाएं भी मिलती हैं। यूक्लिड कहता है, दो समानांतर होगी। क्यों? क्योंकि व्यक्त अगर प्रकट होता है अव्यक्त से, तो | रेखाएं कैसे मिल सकती हैं? वे बिलकुल समानांतर हैं, इसलिए इसका तो अर्थ हुआ कि शून्य से पूर्ण का जन्म होता है। इसका तो | | कहीं भी बढ़ जाएं, समानांतर ही रहेंगी। मिलेंगी कैसे? अर्थ हुआ कि जो नहीं है, उससे, जो है, वह निकल आता है। नान-यूक्लिडिअन ज्यामेट्री कहती है, हम परिभाषाएं नहीं इसका तो अर्थ हुआ, जो कहीं नहीं पाया जाता, उससे भी, सारा जो | मानते। हम कहते हैं, दो समानांतर रेखाएं खींचो और बढ़ाते चले सब जगह पाया जाता है, उसका फैलाव है। यह तो बहुत तर्क में | जाओ, अगर वे न मिलें, तो हम मान लेंगे। बात आती नहीं। विचार इसको पकड़ नहीं पाता। यह तो ऐसा ही | ___ अब बड़ी मुश्किल है, रेखाएं मिल जाती हैं। तो वे कहते हैं, हुआ कहना कि आउट आफ नथिंग, ना-कुछ से, सब कुछ का | हम यूक्लिड को मानें कि इन रेखाओं को मानें, जो मिल जाती हैं! जन्म है। इन रेखाओं को यूक्लिड का कोई भी पता नहीं है। या, • लेकिन परमाणु के विघटन ने इस गीता के वक्तव्य को वैज्ञानिक | नान-यूक्लिडिअन ज्यामेट्री कहती है, कि अगर तुम जिद्द ही करते प्रामाणिकता भी दे दी। क्योंकि परमाणु के विघटन के बाद कोई | हो, तो उसका मतलब यह हुआ कि दो समानांतर रेखाएं खींची ही उपाय न रहा। और जब किसी ने बहुत बड़े भौतिकविद प्लांक से | | नहीं जा सकतीं। एक ही बात है। जो भी खींची जा सकती हैं, वे पूछा कि यह तुम कैसी तर्कहीन बातें कर रहे हो! कि परमाणु के मिल जाती हैं। और जो खींची नहीं जा सकतीं, उनके मिलने न नीचे उतरते ही परमाणु का जो पदार्थ है, वह अपदार्थ हो जाता है, मिलने का पता कैसे चलेगा! मैटर इम्मैटर हो जाता है, यह तुम कैसी तर्कहीन और अवैज्ञानिक __ यूक्लिड कहता है कि हम सीधी रेखा उसे कहते हैं, जो दो बातें कर रहे हो! तो प्लांक का उत्तर बहुत अदभुत है। बिंदुओं के बीच सबसे कम जगह में प्रवेश करती है। और यूक्लिड प्लांक ने कहा, जब तक मुझे पता नहीं था, प्रयोग में जाना नहीं कहता है कि सीधी रेखा सीधी है। सीधी रेखा को किसी वर्तुल का था, तब तक मैं भी यही कहता। अब मैं तुमसे इतना ही कहूंगा, हिस्सा नहीं बनाया जा सकता है। इट कैन नाट बी सेग्मेंट आफ ए हमारे वश के बाहर है। परमाणु का जो व्यवहार है, वह यही है कि सर्किल। नान-यूक्लिड की ज्यामेट्री कहती है, तुम कोई सीधी रेखा उसके टूटते ही वह नीचे अव्यक्त में खो जाता है। अब अगर वह खींचो; और हर सीधी रेखा को किसी बड़े वर्तुल का हिस्सा बनाया अतर्क है, तो हम अपने तर्क को बदल डालें, और कोई उपाय नहीं। जा सकता है। क्योंकि नान-यूक्लिडिअन ज्यामेट्री कहती है, जिस नाउ लेट अस चेंज अवर होल लाजिक! लेकिन हम अस्तित्व को | | जमीन पर बैठकर तुम रेखा खींचते हो, वह गोल है। उस पर खींची नहीं बदल सकते। अगर हमारे तर्क में बात नहीं बैठती है, तो भी गई कोई भी रेखा, अगर पूरी तरह दोनों तरफ बढ़ा दी जाए, तो अस्तित्व राजी नहीं होगा कि हमारे तर्क के अनुसार चले। हम अपने जमीन को घेरकर वर्तुल बन जाएगी। तर्क को ही बदल लें। और तो कोई उपाय नहीं है। | यूक्लिड का बिलकुल सफाया हो गया, उसको अब कोई जगह इसलिए पचास वर्षों में पिछले एक नए तर्क का जन्म हुआ है, | नहीं बची। पश्चिम में नए गणित का जन्म हुआ है, नई ज्यामिति का जन्म हुआ। पुराना गणित कहता है, दो और दो मिलकर चार होते हैं। नया है, जिनको कि सुनकर पुराने ज्यामिति के विद्यार्थी को, पुराने गणित गणित कहता है कि दो और दो मिलकर चार कभी नहीं होते, कभी के विद्यार्थी को, पुराने तर्क के विद्यार्थी को कुछ भी समझ में नहीं | | इंचभर इस तरफ होते हैं, कभी इंचभर उस तरफ होते हैं। क्योंकि 95
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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