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________________ गीता दर्शन भाग-4* अणु पर पहुंचा दिया। फिर परम अणु का भी विभाजन हो गया और समय के रहस्य को जानने वाले के लिए कृष्ण कहते हैं, जो परम अणु का भी विभाजित हिस्सा इलेक्ट्रान हाथ में आ गया। समय के, काल के इस तत्व को जान लेता है, इस क्षण के द्वार को लेकिन एक बड़ी अदभुत घटना घटी, परमाणु के टूटते ही पदार्थ | पहचान लेता है और समय के बाहर होने की कला जिसे आ जाती खो जाता है। परमाणु के टूटते ही पदार्थ खो जाता है। और इधर | है, वह संपूर्ण दृश्यमात्र भूतगण ब्रह्मा के दिन के प्रवेशकाल में बीस वर्षों में विज्ञान की जो बड़ी से बड़ी उपलब्धि है, वह यह है अव्यक्त से उत्पन्न होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेशकाल में उसी कि अब पदार्थ जगत में नहीं है। अव्यक्त में लय होते हैं—इस तत्व का भी ज्ञाता हो जाता है। तीन सौ वर्ष पहले जो विज्ञान सोचकर चला था कि परमात्मा यहां दो-तीन बातें, जो कि मैंने आपसे अभी-अभी कहीं, वे जगत में नहीं है, कोई सोच भी नहीं सकता था...अगर आज पुराने | खयाल में ले लें। कृष्ण कहते हैं, वह व्यक्ति जो समय को जान वैज्ञानिकों को कब्रों से उखाड़ा जाए, न्यूटन को उखाड़ा जाए कब लेता है, वह इस सत्य को भी जान लेता है कि यह जगत कहां से से या गैलीलियो को, तो वे विश्वास न कर सकेंगे कि यह विज्ञान | | पैदा होता है और कहां लीन होता है। इस जगत के पैदा होने के लिए ने कौन-सी उपलब्धि कर ली। सोचते थे कि ईश्वर खो जाएगा, | कृष्ण ने कहा है, समस्त दृश्यमात्र भूत, सब मैटर, सब पदार्थ, आत्मा खो जाएगी। इस सदी के प्राथमिक समय में भी सभी | ब्रह्मा के दिन के प्रवेशकाल में, ब्रह्मा के प्रथम मुहूर्त क्षण में, जब वैज्ञानिक इस खयाल से भरे थे कि आत्मा-परमात्मा के बचने की | | ब्रह्मा का दिन शुरू होता है...। कोई जगह नहीं। पदार्थ ही सत्य है, मैटर इज़ दि ओनली रियलिटी। | हमने कल समझा कि चौबीस घंटे हमारे जैसे हैं, बारह घंटे का लेकिन इधर उन्नीस सौ पचास के करीब जो प्रतीति गहन होने दिन और बारह घंटे की रात भी मान लें, तो ब्रह्मा की जब सुबह लगी, वह यह है कि मैटर इज़ दि मोस्ट अनरियल थिंग, पदार्थ है | | होती है, ब्रह्ममुहूर्त! अभी भी हम सुबह के क्षण को ब्रह्ममुहूर्त कहते ही नहीं। जैसे ही परमाणु टूटता है, पदार्थ खो जाता है और परमाणु | हैं, सिर्फ इस याददाश्त में कि कभी हमें वास्तविक ब्रह्ममुहूर्त का भी के टूटते ही पदार्थ के बाहर प्रवेश हो जाता है, अपदार्थ में, पता चल जाएगा। जिसे हम ब्रह्ममुहूर्त कहते हैं, वह ब्रह्ममुहूर्त नाम नान-मैटीरियल में प्रवेश हो जाता है। मात्र को है। ठीक ऐसे ही समय का जो आखिरी टुकड़ा है, उसका नाम क्षण ब्रह्ममुहूर्त का अर्थ है, ब्रह्मा का वह क्षण, जब जगत शुरू होता है, कहें कि वह समय का परमाणु है, क्षण। जो व्यक्ति क्षण में ठहर | | है, जीवन प्रारंभ होता है, पदार्थ आविर्भूत होते हैं, व्यक्त होते हैं जाता है, वह समय के बाहर हो जाता है। जैसे परमाणु में जो व्यक्ति | और लीला शुरू होती है। सुबह वह लीला शुरू होती है, सांझ प्रवेश करता है, वह पदार्थ के बाहर हो जाता है, वैसे ही जो व्यक्ति | | होते-होते वह लीला अपने शिखर पर पहुंच जाती है। और जब भी क्षण में, समय के परमाणु में प्रवेश करता है, वह समय के बाहर | कोई चीज शिखर पर पहुंचती है, तो उतरना शुरू हो जाती है। फिर हो जाता है। | रात ब्रह्मा की, और सब चीजें बिखरती जाती हैं, उतरती चली जाती विज्ञान ने पदार्थ की खोज करके परमाणु पाया और परमाणु के हैं। और अंतिम क्षण में रात्रि के, जो जगत प्रकट हुआ था, वह पुनः बाहर द्वार पाया, जहां से अपदार्थ में, अव्यक्त में, अनमैनिफेस्टेड अप्रकट में लीन हो जाता है। और फिर सुबह, और फिर सांझ, और में प्रवेश हो जाता है। ठीक ऐसे ही पूरब के धर्म ने, पूरब के धर्म फिर सुबह, ऐसा वर्तुलाकार ब्रह्मा का समय चलता रहता है। के खोजियों ने, मिस्टिक्स ने समय की खोज की ज्यादा। क्योंकि ये पदार्थ अव्यक्त से उत्पन्न होते हैं। अव्यक्त का अर्थ है, दि उनके इरादे कुछ और थे; उनके इरादे उसको जानने के थे, जो अनमैनिफेस्टेड, जो प्रकट नहीं है। उससे प्रकट होता है सब। जो इटरनल है, शाश्वत है, सनातन है। उन्होंने समय की खोज की और छिपा है, उससे प्रकट होता है सब। जो गुप्त है, उससे प्रकट होता समय के आखिरी टुकड़े को खोजा, जिसका नाम उन्होंने क्षण दिया | | है सब। है। उसको कहें टाइम एटम, कहें समय का परमाणु। और जब वे अभी विज्ञान की खोज भी इसके करीब पहुंची है। शायद इस समय के इस परमाणु के भीतर प्रविष्ट हुए, खड़े हुए, उन्होंने पाया, वचन के समर्थन में शंकर जो नहीं कह सकते, रामानुज जो नहीं टाइम सिंपली डिसएपियर्स, समय खो जाता है। और फिर जो | | कह सकते, निंबार्क जो नहीं कह सकते, गीता के जो भी बड़े-बड़े बचता है, वही शाश्वत, सनातन, नित्य है। | चिंतक हुए वे नहीं कह सकते, वह शायद इस हमारी सदी का 94
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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