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* सृष्टि और प्रलय का वर्तुल
गहरा प्रवेश हो जाता है। जितनी क्षीण वासना होती है, उतना ही हम करीब होते हैं। और जो ज्यादा वासना में दौड़ते हैं, वे पानी की समय की परिधि पर आ जाते हैं।
गहराइयों में होते हैं। कम वासना में दौड़ने वाला आदमी झटके से सुना है मैंने कि एक ईसाई फकीर मरकर स्वर्ग पहुंचा। द्वार पर | | छलांग ले सकता है समय के बाहर। ज्यादा वासना में दौड़ने वाले ही सेंट पीटर उसे मिले। तो उस फकीर ने कहा, मैंने बड़ी-बड़ी बातें | | को उतना ही कठिन हो जाता है। समय ही नहीं मिलता कि समय स्वर्ग के संबंध में सुनी हैं। मैं सदा फकीर रहा; कौड़ी-कौड़ी | के बाहर निकल सके। मांगकर जीया। मैंने सुना है कि स्वर्ग की एक कौड़ी भी, एक पाई। समय के तत्व को जो समझ लेता है, वह यह भी समझ लेता है भी पृथ्वी के अरबों-खरबों रुपयों के बराबर होती है। सेंट पीटर ने कि अगर मुझे समय के बाहर होना है, तो मुझे वासना के बाहर हो कहा, तुमने ठीक ही सुना है। तो उस फकीर ने कहा, क्या कृपा | | जाना पड़ेगा। और अगर मुझे वासना के बाहर होना है या समय के करके एक छोटी-सी पाई मुझे उधार न दे सकेंगे!
बाहर होना है, तो क्या सूत्र होगा इसका? वे जो काल के तत्व को ___ फकीर ने सोचा कि एक पाई अगर अरबों-खरबों रुपयों के | | जान लेते हैं, किस सूत्र का प्रयोग करते हैं? बराबर होती है और एक पाई देने से सेंट पीटर जैसा भला आदमी | - एक छोटा-सा सूत्र आपसे कहता हूं। वे इसी का प्रयोग करते क्या इनकार करेगा। सेंट पीटर ने कहा, जरूर दूंगा। लेकिन एक | | हैं। वे क्षण में जीना शुरू करते हैं। समय में नहीं, क्षण में। नाट इन क्षण ठहर जाओ।
टाइम, बट इन दि मोमेंट। एक क्षण है अभी मेरे पास; और एक दिन बीतने के करीब आ गया। फकीर द्वार पर बैठा रहा। सांझ क्षण से ज्यादा किसी आदमी के पास कभी होता नहीं। कितना ही होने लगी। उसने कहा, एक क्षण कितना लंबा होता है यहां? सेंट | बड़ा आदमी हो, कितना ही छोटा आदमी हो, दीन हो, दरिद्र हो, पीटर ने कहा, पृथ्वी के अरबों-खरबों बरसों के बराबर। क्योंकि | सम्राट हो, कमजोर हो कि शक्तिशाली हो, अज्ञानी हो कि ज्ञानी हो, जब पाई अरबों-खरबों के बराबर होगी, तो क्षण भी अरबों-खरबों | एक क्षण से ज्यादा किसी के हाथ में कभी इकट्ठा नहीं होता। जब बरसों के बराबर होगा। अनुपात वही होता है।
| | एक क्षण सरक जाता है, तब दूसरा क्षण हाथ में आता है। एक क्षण अनुपात वही होता है। एक आदमी के पास एक कौड़ी है और | से ज्यादा किसी के पास नहीं होता। एक आदमी के पास एक करोड़ रुपए हैं, तो आप यह मत समझना ___ अगर कोई इस एक क्षण में ही जीना शुरू कर दे, आने वाले क्षण कि करोड़ रुपए वाले की आसक्ति ज्यादा होगी और एक कौड़ी | | की वासना न करे, चिंता न करे, आकांक्षा न करे; बीते हुए क्षण को वाले की आसक्ति कम होगी। नहीं, इस भूल में मत पड़ना। भूल जाए, छोड़ दे, स्मृति के बाहर कर दे; इस क्षण में ही ठहर आसक्ति का अनुपात वही होगा। एक कौड़ी पर भी उतनी ही होगी, | | जाए तो ऐसे आदमी को वासना में जाने का उपाय नहीं होगा। करोड़ रुपए पर भी उतनी ही होगी।
क्योंकि वासना इसी क्षण में नहीं हो सकती। इसे ऐसा समझें। एक आदमी एक घर से एक कौड़ी चुरा लाता | | इसी क्षण में तो केवल प्रार्थना ही हो सकती है। इसी क्षण में तो है, और एक आदमी एक लाख रुपए चुरा लाता है। क्या लाख रुपए केवल ध्यान ही हो सकता है। इसी क्षण में तृष्णा नहीं हो सकती। वाले की चोरी ज्यादा होगी? निश्चित ही जो रुपए गिनते हैं, वे तृष्णा के लिए एक क्षण से ज्यादा चाहिए। फैलाव के लिए, विस्तार कहेंगे, हो। लाख रुपए की चोरी लाख रुपए की चोरी है, और कौड़ी के लिए भविष्य चाहिए। और भविष्य के फैलाव के लिए अतीत में की चोरी कौड़ी की चोरी है।
| जड़ें और स्मृति चाहिए। अगर अतीत भी नहीं, भविष्य भी नहीं, लेकिन चोरी तो बराबर है। चोरी में कोई भेद पड़ता नहीं। कौड़ी यही क्षण है, तो समय गिर गया और वासना भी गिर गई। की चोरी उतनी ही चोरी है, जितनी लाख की चोरी चोरी होती है। | इसलिए ज्ञानी क्षण में जीना शुरू कर देता है, अभी और यहीं। चोरी में कोई अंतर नहीं पड़ता। क्या चुराया, यह गौण है। चुराया, | | और जैसे ही कोई अभी और यहीं जीता है, समय के बाहर हो जाता यही महत्वपूर्ण है। अनुपात वही होता है।
| है। क्षण जो है, समय के बाहर होने का द्वार है। वासना में जो बहुत दौड़ते हैं वे भी, वासना में जो कम दौड़ते हैं। इसे और तरह से भी समझ लें। वे भी. अनपात तो बराबर होता है। अनपात में फर्क नहीं पड़ता। | पिछले तीस वर्षों की वैज्ञानिक खोजों ने पदार्थ के अंतिम कण लेकिन फिर भी, जो कम वासना में दौड़ते हैं, वे पानी की सतह के पर मनुष्य को पहुंचा दिया, एटम पर, अणु पर पहुंचा दिया, परम
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