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________________ * गीता दर्शन भाग-42 अव्यक्तात् व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे । लेकिन जब तक हमें उस सत्य का पता न हो जो दर्पण के बाहर है, रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ।।१८।। तब तक हमें यह भी एहसास न हो सकेगा कि जो हम देख रहे हैं भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते । समय के भीतर, वह माया है। रात्र्यागमेश्वशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे ।। १९ ।। सुना है मैंने, रमजान के उपवास के दिन हैं और मुल्ला नसरुद्दीन परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः। | एक रास्ते के किनारे से निकलता है। प्यास लगी है, तो उसने कुएं यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ।। २० ।। में झांककर देखा, देखा कि चांद कुएं में पड़ा है। सोचा उसने कि इसलिए काल के तत्व को जानने वाले यह भी जानते हैं कि | चांद यहां फंसा पड़ा है! उपवास के दिन हैं, और अगर चांद बाहर संपूर्ण दृश्यमात्र भूतगण ब्रह्मा के दिन के प्रवेशकाल में न निकाला गया, तो लोग उपवास कर-करके मर जाएंगे, उपवास अव्यक्त से उत्पन्न होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेशकाल | का अंत कैसे आएगा? में उस अव्यक्त में ही लय होते हैं। भागा हुआ पास के गांव में गया, रस्सी लेकर आया। रस्सी को और हे अर्जुन, वह ही यह भूत समुदाय उत्पन्न हो-होकर डाला कुएं में चांद को फंसाने के लिए और निकालने के लिए। फंस प्रकृति के वश में हुआ रात्रि के प्रवेशकाल में लय होता है भी गया चांद। मुल्ला ने बड़ी ताकत लगाई। बड़ी मुश्किल में पड़ा; और दिन के प्रवेशकाल में फिर उत्पन्न होता है। क्योंकि रस्सी उसकी कुएं में जाकर एक पत्थर से फंस गई थी। बहुत परंतु उस अव्यक्त से भी अति परे दूसरा अर्थात विलक्षण | खींचा, फिर सोचा भी कि चांद जैसी चीज है, मुश्किल तो होगी ही। जो सनातन अव्यक्त भाव है, वह पूर्ण ब्रह्म परमात्मा सब | लेकिन हजारों-लाखों लोगों का सवाल है, मुझे मेहनत करके भूतों के नष्ट होने पर भी नहीं नष्ट होता है। | निकाल ही देना चाहिए। बहुत ताकत लगाई, तो रस्सी टूट गई। मुल्ला धड़ाम से कुएं के नीचे गिरा। घबराहट में आंखें बंद हो गईं। | सिर लहूलुहान हो गया। जब आंख खुली, तो चांद आकाश में 27 स्तित्व की व्याख्या, कैसे यह अस्तित्व पैदा होता है| दिखाई पड़ा। उसने कहा कि चलो, कोई हर्ज नहीं। थोड़ी हमें 1 और कैसे लीन होता है। इसके पहले कि हम कृष्ण के | मुश्किल भी हुई, तो कोई बात नहीं, लेकिन चांद मुक्त हो गया! . वचन पर विचार करें, कुछ और प्राथमिक बातें जान समय की झील में जो हमें दिखाई पड़ता है, वही संसार है। समय लेनी जरूरी हैं। में पकड़ा हुआ जो हमें दिखाई पड़ता है, वही संसार है। लेकिन एक तो कि काल के तत्व को जो जान लेते हैं, वे ही आने वाली समय के बाहर हम देख ही नहीं पाते हैं। हम बिलकुल कुएं पर झुके इस व्याख्या को समझ पाएंगे। काल के तत्व के संबंध में एक बहुत | खड़े हैं। और जो हमें कुएं में दिखाई पड़ता है, वही दिखाई पड़ता मौलिक बात स्मरण कर लेनी जरूरी है और वह यह है कि समय | है। समय के मीडियम में, समय के माध्यम में जो झलकता है, उसे के भीतर जो भी प्रकट होता है, वह स्वप्नवत है, ड्रीमलाइक है। ही हम जानते हैं। और हम किसी चीज को जानते नहीं। इसे हम ऐसा समझें कि जैसे कोई व्यक्ति दर्पण में अपनी तस्वीर | तो समय के तत्व को जो जान लेता है, वह यह भी जान लेता देखे, तो दर्पण में जो दिखाई पड़ता है, वह स्वप्नवत है। दर्पण में | है, यह जगत सिर्फ एक माया है, यह जगत सिर्फ एक प्रतिबिंब है, वस्तुतः होता नहीं, सिर्फ दिखाई पड़ता है। लेकिन दिखाई पूरा पड़ता | | यह जगत सिर्फ एक स्वप्न है। और जो समय से मुक्त हो जाता है, है। दिखाई पड़ने में कोई कमी नहीं है। या जैसे कोई रात चांद वह जगत से भी तत्क्षण मुक्त हो जाता है। या जो जगत से मुक्त हो निकला हो आकाश में और झील की शांत सतह में उसका | जाता है, वह समय से मुक्त हो जाता है। अगर इसे हम और भी प्रतिफलन बन जाए। कोई झील में झांककर देखे, तो चांद परा सक्षम में कहें. तो कह सकते हैं. समय ही संसार है। समय के बाहर दिखाई पड़ता है, वैसे वहां है नहीं। हो जाना संसार के बाहर हो जाना है। ठीक समय के भीतर भी प्रतिफलन ही उपलब्ध होते हैं। समय लेकिन यह समय का तत्व बहुत अदभुत है। हम सभी अपनी दर्पण है या पानी की झील है, उसमें जो हमें दिखाई पड़ता है, वह | कामना की गहनता के अनुसार अधिक या कम समय के भीतर हो वास्तविक नहीं है, स्वप्नवत है। यही अर्थ है माया का, इलूजन का। | सकते हैं। जितनी तीव्र वासना होती है, समय के भीतर उतना हमारा
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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